________________
२३४
(द्रमुखपोतिका)
मुखानन्तक
वह मुखवस्त्र, जो चार अंगुल की चौड़ाई और एक वितस्ति की लम्बाई वाला और चतुष्कोण होता है अथवा जो मुखप्रमाण होता है।
चत्वार्यङ्गुलानि वितस्तिश्चेति एतच्चतुरस्त्रं मुखानन्तकस्य प्रमाणम्, अथवा इदं द्वितीयं प्रमाणं यदुत मुखप्रमाणं कर्त्तव्यं मुहणंतयं । (ओनि ७११ वृ) (द्र मुखपोतिका)
मुधावी
वह मुनि, जो जाति, कुल आदि के सहारे नहीं जीता, भिक्षा ग्रहण नहीं करता ।
मुहाजीवि नाम जं जातिकुलादीहिं आजीवणविसेसेहिं परं न जीवति । (द ५.१.१०० जिचू पृ १९० )
मुधादायी
प्रतिफल की कामना किए बिना निःस्वार्थ भाव से मुनि को दान देने वाला । (द ५.१.१००)
मुधालब्ध
वह भिक्षा, जो तंत्र, मंत्र, औषधि आदि के द्वारा इष्ट सिद्धि किए बिना प्राप्त हो जाए ।
जं कोंटलवेंटलादीणि मोत्तूणमितरहा लद्धं तं मुहालद्धं । (द ५.१.१०० जिचू पृ १९० )
मुनि
१. जो ज्ञानी है, अपनी प्रज्ञा से लोक को जानता है, जगत् की त्रिकालावस्था का मनन करता है। पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं, मुणीति वच्चे। (आ ३.५) मन्यते जगतस्त्रिकालावस्थामिति मुनिः । (दहावृ प २६२ ) २. वह साधु, जो सावद्य कार्यों की प्रेरणा नहीं देता । सावज्जेस मोणवतीति मुणी । (दअचू पृ २३३) ३. वह साधु, जो मौन रहता है तथा सर्वविरति का संकल्प करता है ।
मुणति - प्रतिजानीते सर्वविरतिमिति मुणिः ।
मुसल
Jain Education International
(उशावृ प ३५७ )
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
माप का एक प्रकार, जो छियानवे अंगुल के बराबर होता है।
( अनु ४०० )
(द्र युग)
मुहूर्त्त
दो घड़ी (दो नाली) अथवा अड़तालीस मिनिट का कालमान । मुहूर्त्तो घटिकाद्वयम् । (तभा १.७ वृ) (त्रिप्र ४.२८७ )
....बे णालिया मुहुत्तं च ॥
मुहूर्त्तान्तः भिन्न (अपूर्ण) मुहूर्त्त । मुहूर्त्तान्तः - भिन्नं मुहूर्त्तम् । (द्र अन्तर्मुहूर्त्त )
मूढ
१. वह जीव, जो मोहग्रस्त होता है - हित और अहित, कार्य और अकार्य, वर्ज्य और अवर्ज्य के विवेक से शून्य होता है।
(विभा ६०९ वृ पृ २७३ )
मुह्यते स्म अस्मिन्निति मूढः । (निचू १ पृ १७) हिताहितयोः कार्याकार्ययोः वर्ज्यावर्ज्ययोरविवेकः मोहः । मोहं प्राप्तो मूढः ।
(आभा २.१५१) (स्थावृ प १५६)
मूढो - गुणदोषानभिज्ञः ।
२. मन की एक अवस्था, दृष्टिमोह और चारित्रमोह से परिव्याप्त चेतना, जो ध्यान के योग्य नहीं होती । दृष्टिचारित्रमोहपरिव्याप्तं मूढम् ॥ अनर्हमेतद् योगाय ॥
(मनो २.२,३)
मूढनय
वह श्रुत, जिसमें नयविभाग से सब नयों के भेद - प्रभेदों द्वारा विस्तृत निरूपण नहीं है ।
अविभागत्था मूढा नय त्ति' । ( विभा २२८० ) मूढाः - विभागेनाव्यवस्थापिता नया यस्मिन् तद् मूढनयम् । (बृभा ५२३५ वृ)
(द्र मूढनयिक)
मूढनयिक कालिक श्रुत, किया जाता।
For Private & Personal Use Only
जिसकी व्याख्या में नयों का समवतार नहीं
मूढनइयं सुयं कालियं तु न नया समोयरंति इहं ।
( विभा २२७९)
www.jainelibrary.org