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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश २२७ १. संबोधि का मार्ग। सिद्धि का मार्ग। बड़े शरीर का निर्माण किया जा सकता है। महावीधिं..जो हेट्ठा संबोहणमग्गो भणितो "तत्र द्रव्यवीधी मेरोरपि महत्तरशरीरविकरणं महिमा। (तवा ३.३६) नगर-ग्रामादिपथाः, भाववीधी तु सिद्धिपन्थाः। महैषी __ (सूत्र १.२.२१ चू पृ७४) वह व्यक्ति, जो महान् मोक्ष की एषणा करने वाला होता है। २. अहिंसा और समता का पथ, जिसके प्रति पराक्रमशाली वीर समर्पित होते हैं। महानिति मोक्षो तं एसंति महेसिणो। (द ३.१ अचू पृ५९) पणया वीरा महावीहिं॥ महोरग अहिंसा महती वीथिर्विद्यते। (आभा १.३७) वानमन्तर देवों का तीसरा प्रकार। इस जाति के देव श्याम ३. कुण्डलिनी-प्राणधारा। आभा वाले होते हैं। उनकी गति त्वरित और शरीर विशाल महाव्रत होता है। वे नाना प्रकार के विलेपन, नाना प्रकार के आभूषणों हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का तीन योग का प्रयोग करते हैं। उनका चिह्न होता है-नागवक्ष।। महोरगा: श्यामावदाता महावेगा: सौम्याः सौम्यदर्शना महा(करना, कराना और अनुमोदन करना) और तीन करणमन, वचन और काया से परित्याग। कायाः पृथुपीनस्कन्धग्रीवा विविधविलेपना विचित्राभरणमनोवाक्कायकृतकारितानुमत्या हिंसा-असत्य-स्तेयाब्रह्म भूषणा नागवृक्षध्वजाः। (तभा ४.१२ वृ) परिग्रहेभ्यो विरतिर्महाव्रतम्। (जैसिदी ६.६७) माकार प्राचीन दण्डनीति का एक प्रकार। 'आगे ऐसा मत करना' महाशुक्र सातवां स्वर्ग। कल्पोपपन्न वैमानिक देवों की सातवीं आवास कहना। 'मा' इत्यस्य निषेधार्थस्य करणं-अभिधानं माकारः। भूमि। (उ ३६.२११) (देखें चित्र पृ ३४६) (स्था ७.६६ वृ प ३७८) (द्र हाकार) महास्थण्डिल शवपरिष्ठापनभूमि। माघवती 'महास्थण्डिलं'शवपरिष्ठापनभूमिलक्षणं"। अधोलोक (नरक) की सातवीं पृथ्वी का नाम। (बृभा १५०५ वृ) (स्था ७.२३) (द्र अञ्जना) महाहिमवान् वर्षधर वह वर्षधर पर्वत, जो हरिवर्ष के दक्षिण में, हैमवतवर्ष के माणवक उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवण- महानिधि का एक प्रकार । राजनीति, युद्धनीति, दण्डनीति समुद्र के पूर्व में अवस्थित है। यह हैमवत और हरिवर्ष- तथा आयुधनिर्माण की विधि का प्रतिपादक शास्त्र। इन दोनों के मध्य विभाजन-रेखा का काम करता है। जोधाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च। हरिवासस्स दाहिणेणं, हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं पुरस्थिम- सव्वा य जुद्धनीती, माणवए दंडणीती य॥ लवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं पच्चस्थिमलवणसमुद्दस्स (स्था ९.२२.१०) पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते। (जं ४.६२) माण्डलिक दोष हैमवतस्य हरिवर्षस्य च विभक्ता महाहिमवान्। (द्र परिभोगैषणा) (तभा ३.११ वृ) मातृकानुयोग महिमा द्रव्यानुयोग का एक प्रकार, उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप विक्रिया ऋद्धि का एक प्रकार, जिसके द्वारा मेरु पर्वत से भी मातृकापद के आधार पर द्रव्यों की विचारणा करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org बाना
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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