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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
सिंहनिष्क्रीडितादिमहोपवासानुष्ठानपरायणा यतयो महा(तवा ३.३६ पृ २०३)
तपसः ।
महातमः प्रभा
नरक की सप्तम पृथ्वी का (माघवती) का गोत्र। यह अतीव कृष्ण अन्धकारमय है 1 (देखें चित्र पृ ३४६)
(द्र रत्नप्रभा)
अतीवकृष्णमहत्तम इवाभाति महातमः प्रभा। (अनुचू पृ ३५) महानिधि
राज्यव्यवस्था, समाजव्यवस्था आदि विद्याओं के आकर ग्रन्थ, जो देवताधिष्ठित होते हैं। प्रत्येक चक्रवर्ती के नौ महानिधि होते हैं- नैसर्प, पाण्डुक, पिंगल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक, शंख ।
पण्णत्ता ।
एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहिओ (स्था ९.२२) पलिओवमट्ठिया, णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा । (जं ३.१६७.१३)
महानिमित्तज्ञता
अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न और स्वप्नइस अष्टांग महानिमित्त में प्राप्त निपुणता ।
अष्टौ महानिमित्तानि अन्तरिक्ष - भौम- अङ्ग - स्वर - व्यञ्जन - लक्षण- छिन्न-स्वप्ननामानि । एतेषु महानिमित्तेषु कौशलमष्टाङ्गमहानिमित्तज्ञता । (तवा ३.३६) (द्र निमित्त )
महानिर्जर
वह व्यक्ति, जो अपने आचरण से महान् निर्जरा करता है । महानिर्जरो - बृहत्कर्मक्षयकारी । (स्थावृ प २८५)
महानिशीथ
कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें निशीथ की अपेक्षा विस्तृत वर्णन है।
जं इमस्स निसीहस्स सुत्तत्थेहिं वित्थिण्णतरं तं महाणिसीहं । (नन्दी ७८ चूं पृ ५९)
महापद्म
महानिधि का एक प्रकार । वस्त्रनिर्माण की विधि का प्रतिपादक शास्त्र ।
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वत्थाण य उप्पत्ती, णिष्फत्ती चेव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धोयाण य, सव्वा एसा महापउमे ॥ (स्था ९.२२.६)
महापान
वह ध्यान, जिसमें पूर्वगत श्रुत के अर्थपदों का पान/ज्ञान / मनन किया जाता है। आचार्य भद्रबाहु ने चौदह पूर्वो का अध्ययन कर यह साधना की थी।
इय पुव्वगताधीते, बाहु सनामेव तं मिणे पच्छा। पियति त्ति व अत्थपदे, मिणति त्ति व दो वि अविरुद्धा ॥ पिबति अर्थपदानि यत्रस्थितस्तत्पानं, महच्च तत्पानं च महापानम् । (व्यभा २७०३ वृ)
(द्र महाप्राण)
महाप्रज्ञ
१. वह मुनि, जिसने महान् प्रज्ञा - केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया है।
'महापण्णे' त्ति महती - निरावरणतयाऽपरिमाणा प्रज्ञाकेवलज्ञानात्मिका संवित् अस्येति महाप्रज्ञः ।
(उ५.१ शावृ प २४१ ) २. वह भिक्षु, जिसकी बुद्धि विपुल होती है । महती प्रज्ञा यस्यासौ महाप्रज्ञो - विपुलबुद्धिः ।
(सूत्र १.११.१३ वृ प २०४) ३. वह व्यक्ति, जिसकी प्रज्ञा महान् होती है, जो सम्यक् ज्ञान- दर्शन सम्पन्न होता है।
महती प्रज्ञा यस्यासौ महाप्रज्ञः सम्यग्दर्शनज्ञानवान् । (सूत्र १. ११.३८ वृ प २१० )
महाप्रज्ञापना
उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें प्रज्ञापना की अपेक्षा प्रज्ञापनीय विषय विस्तार से बतलाए गए हैं। पण्णवणत्थो सवित्थरो । अण्णे य सवित्थरत्था जत्थ भणिता सा महापण्णवणा । (नन्दी ७७ चू पृ ५८)
महाप्रत्याख्यान
उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें चरम अवस्था में कराए जाने वाले प्रत्याख्यान का विस्तृत वर्णन है ।
लढा हा वि जहाजुत्तं संलेहं करेत्ता निव्वाघातं सचेट्ठा चैव भवचरिमं पच्चक्खंति, एतं सवित्थरं जत्थऽज्झयणे
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