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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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बाला शतायु जीवन की एक दशा, प्रथम दशक। इस शिशुवय में सुख-दुःख की अनुभूति तीव्र नहीं होती। जायमित्तस्स जंतुस्स, जा सा पढमिया दसा। ण तत्थ सुहदुक्खाई, बहुं जाणंति बालया।
(दहावृ प८)
वह विद्या, जिसके माध्यम से बाहु पर देवता को अवतीर्ण कर प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया जाता है। 'पसिणाई' ति प्रश्नविद्याः यकाभिः क्षौमकादिषु देवतावतार: क्रियत इति,"तत्र बाहवो-भुजा इति।
(स्था १०.११६ वृ प ४८५) बाह्य तप वह तप, जो स्थूल शरीर के माध्यम से कर्म-शरीर (सूक्ष्म शरीर) को प्रभावित कर कर्म-क्षय का हेतु बनता है। बाह्यतपः बाह्यशरीरस्य परिशोषणेन कर्मक्षपणहेतुत्वात्।
(समवृ प १२)
बालाग्र क्षेत्र-मापन का एक प्रकार। मनुष्य के बाल का अग्रभाग। ८ रथरेणु-१ देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र। ८ देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र = १ हरिवास-रम्यकवास के मनुष्यों का बालाग्र । ८ हरिवास-रम्यकवास के मनुष्यों का बालाग्र = १ हेमवत-हैरण्यवत के मनुष्यों का बालाग्र। ८ हेमवत-हैरण्यवत के मनुष्यों का बालाग्र = १ पूर्वविदेह-अपरविदेह के मनुष्यों का बालाग्र। ८ पूर्वविदेह-अपरविदेह के मनुष्यों का बालाग्र = १ भरत-ऐरवत के मनुष्यों का बालाग्र। ८ भरत -ऐरवत के मनुष्यों का बालाग्र -१लिक्षा। अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं । वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अढ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवयहेरण्ण- वयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ट हेमवयहेरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा भरहेरवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ भरहेरवयाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा।
(अनु ३९९)
बाह्याबाह्य द्रव्यानुयोग का एक प्रकार । बाह्य-विशेष तथा अबाह्यसामान्य गुण के आधार पर पदार्थों का विचार करना। जीवद्रव्यं बाह्यं चैतन्यधर्मेणाकाशास्तिकायादिभ्यो विलक्षणत्वात् तदेवाबाह्यममूर्त्तत्वादिना धर्मेण अमूर्त्तत्वादुभयेषामपि।
(स्था १०.४६ वृप ४५७) बिन्दुसार पूर्व (द्र लोकबिन्दुसार) जो चोद्दसपुव्वी तस्स सामादियादि बिंदुसारपज्जवसाणं सव्वं नियमा सम्मसुतं।
(नंदी ६६ चू पृ ४९) बीजबुद्धि लब्धि का एक प्रकार। एक अर्थपद के आधार पर शेष अर्थपदों को जानने वाली योगज विभूति। जो अत्थपएणत्थं अणुसरइ स बीयबुद्धी उ॥ (विभा ८००)
बालुकाप्रभा नरक की तीसरी पृथ्वी (शैला) का गोत्र, जो बालुका रूप में प्रख्यात है।
(देखें चित्र पृ ३४६) (द्र रत्नप्रभा) बालुका त्ति बालुकारूपेण प्रख्यातेति बालुकाप्रभा।
(अनुचू पृ ३५)
बीजरुचि १. रुचि का एक प्रकार। सत्य के एक अंश के सहारे अनेक अंशों में फैलने वाली रुचि। २. बीजरुचि से सम्पन्न व्यक्ति। एगेण अणेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं। उदए व्व तेल्लबिंदू सो बीयरुइत्ति नायव्वो॥
(उ २८.२२) यथोदकैकदेशगतोऽपि तैल-बिन्दुः समस्तमुदकमाक्रामति तथा तत्त्वैकदेशोत्पन्नरुचिरप्यात्मा तथाविधक्षयोपशमवशादशेषतत्त्वेषु रुचिमान् भवति, स एवंविधो बीजरुचितिव्यः।
(उशावृ प ५६५)
बाहुप्रश्न
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