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बादरवनस्पतिकायिक
बादरनामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीरवाले वन
(प्रज्ञा १.३० )
स्पतिकायिक जीव । (द्र बादरपृथ्वीकायिक)
बादरवायुकायिक
बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीरवाले वायुकायिक जीव, जो अलग-अलग होने पर दृश्य नहीं होते, असंख्य शरीर समुदित होने पर दृश्य बन जाते हैं।
( प्रज्ञा १.२७)
(द्र बादरपृथ्वीकायिक)
बादरसम्पराय संयत
प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिबादर और अनिवृत्तिबादरइन चार जीवस्थानों में वर्तमान मुनि, जिसके स्थूल कषाय उदय में रहता है।
सम्परायः ।
बादरः - स्थूलः सम्परायः - कषायस्तदुदयो यस्यासौ बादर(तभा ९.१२ वृपृ २३० ) प्रमत्तादीनां संयतानां सामान्यग्रहणम् - बादरः साम्परायो यस्य सोऽयं बादरसाम्परायः । ( तवा ९.१२)
बाल
१. वह जीव, जो सर्वथा अविरत है, व्रत की चेतना से शून्य है.
अविरई पडुच्च बाले आहिज्जइ । (सूत्र २.२.७५) बालः - अज्ञस्तद्वद् यो वर्त्तते विरतिसाधकविवेकविकलत्वात् स बालः - असंयतः । (स्था ३.५१९ वृ प १६५ ) २. वह व्यक्ति, जिसका आशय मिथ्याज्ञान से उपरक्त होने के कारण शिशु की तरह हित की प्राप्ति और अहित के परिहार से विमुख होता है ।
(द्र बालतप)
बालतप
मिथ्याज्ञान से उपरक्त आशय वाले तपस्वियों द्वारा किया जाने वाला अग्निप्रवेश आदि तप । मिथ्याज्ञानोपरक्ताशया बालाः शिशव इव हिताहितप्राप्तिपरिहारविमुखाः, तपो – जलानलप्रवेशे भृगुप्रपातादिलक्षणं, तेन तादृशा तपसा बालानां योगो बालसम्बन्धित्वाद्वा तपोऽपि बालम् । (तभा ६.१३ वृ)
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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
बालपण्डित
संयतासंयत, वह जीव, जो आंशिक रूप में विरत है, व्रताव्रती है ।
विरयाविरइं पडुच्च बालपंडिए आहिज्जइ । ( सूत्र २.२.७५) अविरतत्वेन बालत्वाद् विरतत्वेन च पण्डितत्वाद् बालपण्डितः - संयतासंयत इति । (स्था ३.५१९ वृप १६५) (द्र विरताविरत)
बालपण्डितमरण
देशविरत - व्रताव्रती का करण ।
.....बालपंडियमरणं पुण देसविरयाणं ॥
( उनि २२२ )
बालपण्डित वीर्य
वीर्यलब्धि का एक प्रकार । देशविरत का संयमासंयममय पुरुषार्थ ।
(द्र बालवीर्य)
बालमरण
मरण का एक प्रकार । १. असंयति का मरण ।
अविरयमरणं बालं मरणं विरयाण पंडियं विंति ।
( उनि २२२)
२. बाल व्यक्ति अथवा अविरत व्यक्ति के आत्मघाती प्रयत्न, निदान और आर्त्त - रौद्रध्यान की दशा में होने वाला मरण । (भग २.४९ भा)
बालवीर्य
का एक प्रकार । अविरत का असंयममय पुरुषार्थ और सामर्थ्य, जो चारित्रमोह के उदय और वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से प्राप्त होता है।
बालस्य - असंयतस्य यद्वीर्यं - असंयमयोगेषु प्रवृत्तिनिबन्धनभूतं तस्य या लब्धिश्चारित्रमोहोदयाद् वीर्यान्तरायक्षयोपशमाच्च सा तथा, एवमितरे अपि यथायोगं वाच्ये, नवरं पण्डितः - संयतो, बालपण्डितस्तु संयतासंयत इति ॥ (भग ८.१४५ वृ)
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बालवैयावृत्त्यकर
वह मुनि, जो बाल- शैक्ष साधु-साध्वियों की सेवा में नियुक्त होता है। (व्यभा १९४३)
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