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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
जाते हैं।
जीवप्रदेशेभ्यश्चलितं- तेष्वनवस्थानशीलं तदितरत्त्वचलि
(भग १.२८ वृ)
तम् ।
अचित्त
वह वस्तु, जो जीव-रहित है ।
(द ५.१.८६)
अचित्तमहास्कन्ध
वह पौद्गलिक महास्कन्ध, जिसमें सर्वाधिक परमाणुओं का संचय होता है, जो पूर्ण लोकव्यापी और चतुःस्पर्शी है। अयमेव सर्वोत्कृष्टपरमाणुसंख्याप्रचितो एष पुनरचित्तमहास्कन्धो यस्माच्चतुःस्पर्श इष्यते ।
(विभा ६४४,६४६ मवृ पृ २८२, २८३)
अचित्त योनि
वह योनि (उत्पत्तिस्थान), जो जीव के प्रदेशों से शून्य होती है, जैसे- देव और नैरयिक की योनि ।
(स्था ३.१०१ )
(द्र मिश्रयोनि)
अचेलक
१. साधना की वह व्यवस्था, जिसके अनुसार मुनि वस्त्र नहीं रखता ।
२. साधना की वह व्यवस्था, जिसके अनुसार मुनि श्वेत और साधारण वस्त्र रखता है।
अचेलक:- अविद्यमानचेलकः कुत्सितचेलको वा ।
( उ २३.१३ शावृ प ५०० )
अचेल परीषह
परीषह का एक प्रकार ।
१. अचेल अवस्था में होने वाली लज्जा, जो मुनि के द्वारा सहनीय है।
२. वस्त्र की प्राप्ति न होने पर उस विषय में चिंता न करना । परिजुण्णेहिं वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अचेलए। अदुवा सचेलए होक्खं इइ भिक्खू न चिंतए ॥ गया होइ, सचेले यावि एगया। एयं धम्महियं नच्चा, नाणी नो परिदेवए ॥
( उ २. १२, १३)
अचौर्य महाव्रत
(द्र अदत्तादानविरमण)
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(उ २१.१२)
५
अच्छवी
स्नातक निर्ग्रन्थ की एक अवस्था, जो उसके आंशिक काययोग के निरोध की सूचक है।
छविः - शरीरं तदभावात्काययोगनिरोधे सति अच्छविर्भवति । (स्था ५. १८९ वृ प ३२० )
अच्छिन्नछेदनयिक
सूत्र
सूत्र - रचना की वह परिपाटी, जिसमें पूर्ववर्ती सूत्र और अर्थ का उत्तरवर्ती और अर्थ के साथ संबंध रहता है। यो नयः सूत्रमच्छिन्नं छेदेनेच्छति सोऽच्छिन्नछेदनयो यथा 'धम्मोमंगलमुक्किट्ठ' मित्यादिश्लोकोऽर्थतो द्वितीयादिश्लोकमपेक्षमाण इत्येवं यान्यच्छिन्नच्छेदनयवन्ति तान्यच्छिन्नच्छेदनयिकानि । (सम २२.२ वृ प ४० )
अच्युत
बारहवां स्वर्ग । कल्पोपपत्र वैमानिक देवों की बारहवीं आवासभूमि । ( उ ३६.२११)
(देखें चित्र पृ ३४६)
अजीव
तत्त्वों में एक तत्त्व, जिसमें चैतन्य न हो। उसके पांच प्रकार हैं- धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल । (जैसिदी ३.१९ )
अचेतनः अजीवः । अज्जीवो पुण ओ, पुग्गल धम्मो अधम्म आयासं । कालो......... ॥ (बृद्रसं १५)
अजीव अप्रत्याख्यान क्रिया
अप्रत्याख्यान क्रिया का एक प्रकार । प्रत्याख्यान के अभाव से अजीव के संबंध में होने वाली प्रवृत्ति । यदजीवेषु – मद्यादिष्वप्रत्याख्यानात् कर्मबन्धनं सा अजीवाप्रत्याख्यानक्रिया | (स्था २.१३ वृप ३८)
अजीवआज्ञापनिका क्रिया
आज्ञापनिका क्रिया का एक प्रकार। अजीव के विषय में आज्ञा देने से होने वाली क्रिया ।
अजीवविषया अजीवाऽऽज्ञापनी अजीवानायनी वा ।
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(स्था २.३० वृ प ३९ )
अजीवआरम्भिकी क्रिया आरम्भिकी क्रिया का एक प्रकार । अजीव के उपमर्दन से
होने वाली प्रवृत्ति ।
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