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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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पर्याय
एताओ पज्जत्तीओ पज्जत्तयणामकम्मोदएणं णिव्वत्तिजंति, ता जेसिं अस्थि ते पज्जत्तया। (नंदी २३ चू ५२२) यत्र भवे येन यावत्यः पर्याप्तयः करणीयाः तावतीष्वसमाप्तासु सोऽपर्याप्तः समाप्तासु च पर्याप्त इति। (जैसिदी ३.११ वृ) (द्र अपर्याप्तक)
पर्याप्तकनाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करने में समर्थ होता है। पर्याप्तकनामयदयात् स्वयोग्यपर्याप्तिनिवर्त्तनसमर्थो भवति, तत्पर्याप्तिनाम-आहारादिपुदगलग्रहणपरिणमनहेतरात्मनः शक्तिविशेषः। तदविपरीतमपर्याप्तकनाम।
(प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७४) (द्र अपर्याप्तकनाम)
तीर्थंकर के केवलित्व काल के आश्रित अन्तकरभूमि-समय, जैसे-अर्हत मल्लि को कैवल्य प्राप्त हए जब दो वर्ष सम्पन्न हुए, तब उनके तीर्थ में साधु सिद्ध हुए-सिद्धत्वप्राप्ति का क्रम प्रारंभ हुआ। परियायतकरभूमीति पर्यायः-तीर्थकरस्य केवलित्वकालस्तमाश्रित्यान्तकरभूमिर्या सा। (ज्ञा १.८.२३३ वृप १६१) (द्र युगान्तकरभूमि) पर्यायार्थिक नय भेदग्राही नय, जैसे--- ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नय। प्राधान्येन अभेदग्राही द्रव्यार्थिकः भेदग्राहीच पर्यायार्थिकः।
(भिक्षु ५.२ वृ) ऋजुसूत्रः शब्दः समभिरूढ एवंभूतश्चेति चतुर्धा पर्यायार्थिकः।
(भिक्षु ५.९)
पर्याप्ति जन्म के प्रारम्भ में होने वाला पौद्गलिक शक्ति का निर्माण। पज्जत्ती णाम सत्ती सामत्थं । सा य पुग्गलदव्वोवचया उप्पजति।
(नंदीचू पृ २२) . भवारम्भे पौदगलिकसामर्थ्यनिर्माणं पर्याप्तिः।
(जैसिदी ३.१०) पर्याप्तिका भाषा जिस भाषा के द्वारा प्रतिनियत अर्थ का अवधारण किया जा सके। सत्य भाषा और असत्य भाषा पर्याप्तिका भाषा है। या प्रतिनियतरूपतया अवधारयितुं शक्यते सा पर्याप्ता, सा च सत्या मृषा वा।
(प्रज्ञा ११.३१ वृ प २५७)
जीवो गुणो पडिवन्नो, नयस्स दव्वट्ठियस्स सामाइयं। सो चेव पज्जवट्ठियनयस्स जीवस्स एस गुणे॥
(विभा २६४३) (द्र पर्यव नय) पर्युषणाकल्प १. आचारदशा (दशाश्रुतस्कंध) की आठवीं दशा, कल्पसूत्र, जिसमें तीर्थंकरचरित्र, गणधरावलि आदि का वर्णन है। आयारदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता"पज्जोसवणाकप्पो"।
(स्था १०.११५) २. वर्षावासीय आवास की व्यवस्था। वर्षाकालस्य चतुर्यु मासेषु एकत्रैवावस्थानं भ्रमणत्यागः।
(भआवृ पृ ६१६)
पर्याय १. जीवनकाल अथवा प्रव्रज्याकाल। पर्यायो जन्मकाल: प्रव्रज्याकालो वा।
(स्था ५.३२ वृ प ३४०) २. पूर्व अवस्था का परित्याग और उत्तर अवस्था की प्राप्ति। पूर्वोत्तराकारपरित्यागादानं पर्यायः। (जैसिदी १.४०) पर्याय स्थविर वह श्रमण-निर्ग्रन्थ, जिसका संयम-पर्याय बीस वर्ष हो चुका है। वीसवासपरियाए णं समणे निग्गंथे परियायथेरे।
(स्था ३.१८७)
पल्य एक योजन लम्बा-चौड़ा, एक योजन ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला कोठा। (देखें चित्र पृ ३४१) ....."जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उई उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, सेणं पल्ले। (अनु ४३१) पल्योपम पल्य से उपमित काल, जिसका प्रमाण संख्या से नहीं जाना
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