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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
परमाणुपुद्गल
(भग १८.१११)
(द्र परमाणु)
परमोहिन्नाणविओ केवलमंतोमुहुत्तमित्तेण।..
(विभा ६८९) परमोही अंतोमुहुत्तं भवति।ततो परं केवलज्ञानं समुप्पज्जति।
(आवचू १ पृ ४०) परम्परपर्याप्त वह जीव, जिसे पर्याप्त हुए दो आदि समय हो चुके हैं। अनन्तर पर्याप्तका: प्रथमसमयपर्याप्तका इत्यर्थः, इतरे त परम्परपर्याप्तकाः। (स्था १०.१२३ वृ प ४८७) (द्र अनन्तरपर्याप्त)
परम्परावगाढ विवक्षित क्षेत्र से व्यवहित आकाश-प्रदेशों में अवस्थित जीव। विवक्षितप्रदेशापेक्षया अनन्तरप्रदेशेष्ववगाढा-अवस्थिता अनन्तरावगाढा:एतद्विलक्षणा: परम्परावगाढाः, अयं क्षेत्रतो भेदः।
(स्था १०.१२३ वृ प ४८७) (द्र अनन्तरावगाढ)
परमात्मा १. जो आत्मा अत्यंत निर्मल है। परमात्मातिनिर्मलः।
(सश ५) २. वह आत्मा, जो तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में विद्यमान है, सिद्ध के तुल्य है। ३. सिद्ध, जो साक्षात् परमात्मा है। सयोग्ययोगिगुणस्थानद्वये "सिद्धसदृशः परमात्मा, सिद्धस्तु साक्षात् परमात्मा।
(बृद्रसंवृ पृ ३८) ४. परम अर्हतासम्पन्न अर्हत् और परम सिद्धिसम्प्राप्त सिद्ध। परमप्पा वि य दुविहा अरहंता तह य सिद्धा य॥
(काअ १९२) परमाधार्मिक देव वह असुर देव, जो प्रथम तीन पृथ्वियों में नारकीय जीवों को यातना देता है। परमाश्च तेऽधार्मिकाश्च संक्लिष्टपरिणामत्वात्परमाधार्मिका:-असुरविशेषाः, ये तिसृषु पृथिवीषु नारकान् कदर्थयन्तीति।
(सम १५. १ वृ प २८) परमावधि १. वह अवधिज्ञान, जो जघन्यतः एक प्रदेश अधिक लोकक्षेत्र को तथा उत्कृष्टतः असंख्यात लोकों को जानने की क्षमता रखता है। सव्वबहुअगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भरिजंसु। खेत्तं सव्वदिसागं, परमोही खेत्तनिहिद्रो।
(नंदी १८.२) जघन्यस्य परमावधेः क्षेत्रं प्रदेशाधिको लोकः।"उत्कृष्टपरमावधेः क्षेत्रं सलोकालोकप्रमाणा असंख्येया लोकाः"" अग्निजीवतुल्याः"त्रिविधोऽपि परमावधिः उत्कृष्टचारित्रयुक्तस्यैव भवति नान्यस्य। वर्धमानो भवति, न हीयमानः। अप्रतिपाती, न प्रतिपातीr"द्रव्यक्षेत्रकालभावैः सर्वावधेरन्तःपाती परमावधिः, अतः परमावधिरपि देशावधिरेव।
__ (तवा १.२२.४) २. वह अवधिज्ञान, जिसके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है।
परम्पराहारक १. वह जीव, जो पूर्व में व्यवहित और पश्चात् अपने क्षेत्र में आए हुए पुद्गलों का आहार करता है। २. वह जीव, जो उत्पन्न होने के बाद दूसरे, तीसरे आदि समयों में आहार लेता है। ये तु पूर्वव्यवहितान् सतः पुद्गलान् स्वक्षेत्रमागतानाहारयन्ति ते परम्पराहारकाः, अथवा प्रथमसमयाहारका अनन्तराहारकाः इतरे त्वितरे।
(स्था १०.१२३ वृ प ४८७) (द्र अनन्तराहारक) परम्परोपपन्न वह जीव, जिसे उत्पन्न हुए दो या उससे अधिक समय हुए
हों।
येषां तत्पन्नानां द्वयादयः समया जातास्ते परम्परोपपन्नकाः।
(स्था १०.१२३ वृ प ४८७) (द्र अनन्तरोपपन्न)
परलोकभय विजातीय से होने वाला भय, जैसे-मनुष्य को तिर्यञ्च, देव
आदि से होने वाला भय। विजातीयात्-तिर्यग्देवादेः सकाशान्मनुष्यादीनां यद्भयं तत् परलोकभयम्।
(स्था ७.२७ वृ प ३६९)
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