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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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२. पद्मलेश्या के परिणमन में आधारभत पीत वर्ण वाले परपरिवाद पाप पुद्गल।
पापकर्म का पन्द्रहवां प्रकार। पर-निंदा करने की प्रवृत्ति से हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसंनिभा।
होने वाला अशुभ कर्म-बंध। (आवृ प ७२) सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उवण्णओ॥
'परपरिवाए'विप्रकीणं परेषां गुणदोषवचनम्। (उ ३४.८)
(भग १.२८६ वृ) (द्र द्रव्यलेश्या)
परपरिवाद पापस्थान पद्मासन
वह कर्म, जिसके उदय से जीव परपरिवाद में प्रवृत्त होता बैठने की वह मुद्रा, जिसमें एक जंघा (पिंडली) के मध्यभाग है।
(झीच २२.२२) में दूसरी जंघा का संश्लेष होता है। जङ्घाया मध्यभागे तु संश्लेषो यत्र जङ्घया।
परपाषण्डप्रशंसा पद्मासनमिति प्रोक्तं तदासनविचक्षणैः॥ (योशा ४.१२९)
सम्यक्त्व का एक अतिचार । लक्ष्य के प्रतिकल चलने वालों
की प्रशंसा। पनकसूक्ष्म
परपाषण्डप्रशंसा-लक्ष्यप्रतिगामिनां प्रशंसा। वर्षा में भूमि, काठ, उपकरण (वस्त्र) आदि पर उत्पन्न
(जैसिदी ५.१० वृ) फफूंदी, जो उस द्रव्य के समान वर्ण वाली होती है।
परपाषण्डसंस्तव पणगसुहुम णाम पंचवण्णो पणगो वासासु भूमिकट्ठउवगरणादिसु तद्दव्वसमवण्णो पणगसुहुमं।
सम्यक्त्व का एक अतिचार । लक्ष्य के प्रतिकूल चलने वालों (र १५ जिचू पृ २७८) का परिचय (घनिष्ठता)।
परपाषण्डसंस्तवः-लक्ष्यप्रतिगामिनां परिचयः। पर
(जैसिदी ५.१० वृ) १. आप्त, तीर्थंकर, जिनसे उत्कृष्ट अन्य नहीं है। .."जिणा परं नथि।
(आनि ६६)
परप्रतिष्ठित क्रोध 'पर' शब्द उत्कृष्टतावाचकोऽस्ति।धर्मक्षेत्रे तीर्थंकरा उत्कृष्टाः
दूसरे के निमित्त से उत्पन्न होने वाला आवेश। वर्तन्ते।
(आभा १.३)
यदा पर उदीरयति आक्रोशादिना कोपं तदा किल तदविषयः २. गृहस्थ, जिसकी मुनि की अपेक्षा 'पर' संज्ञा है।
क्रोध उपजायते इति स परप्रतिष्ठितः। परा गिहत्था। (निभा ४३२ चू)
(प्रज्ञा १४.३ वृ प २९०)
परभाववक्रता क्रिया परकायशस्त्र
मायाप्रत्यया क्रिया का एक प्रकार । परभाव-वञ्चना, कूटलेख वह सजीव अथवा निर्जीव द्रव्य. जिसके प्रयोग से अपने से
आदि के द्वारा दूसरों को छलने की प्रवृत्ति । भिन्न जाति के प्राणी के प्राण का वियोजन होता है, जैसे
परभावस्य वङ्कनता-वञ्चनता या कूटलेखकरणादिभिः, अग्नि मिट्टी के जीवों का शस्त्र है। (आभा १.१९)
सा परभाववङ्कनता। (स्था २.१८ वृ प ३८) (द्र स्वकायशस्त्र)
परमाणु परच्छन्दानुवर्तिता
वह पुद्गलद्रव्य, जिसका विभाग नहीं हो सकता और जो लोकोपचार विनय का एक प्रकार । दूसरों के अभिप्राय के । एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श युक्त होता है। अनुसार वर्तन करना।
जं दव्वं अविभागी, तं परमाणु विजाणीहि। (तवा ५.२५) 'परच्छंदाणुवत्तिय' त्ति पराभिप्रायानुवर्त्तित्वम्।
परमाणुपोग्गले"एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पण्णत्ते॥ (स्था ७.१३७ वृ प ३८८)
(भग १८.१११) (द्र द्रव्यपरमाणु) For Private & Personal Use Only
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