________________
१५०
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
२. धारणा की दूसरी अवस्था, जिसमें अवधारित विषय अनुपयोग के कारण विच्युत हो जाता है। तमेव अत्थं अणुवयोगत्तणतो विच्चुतं जहण्णेणं अंतमुहुत्तातो परतो दिवसादिकालविभागेस संभरतो य धारणा भण्णति।
(नन्दी ४९ चू पृ ३७) ३. योग साधना का एक प्रकार, जिसमें चित्त को किसी एक ध्येय में सन्निविष्ट किया जाता है। ध्येये चित्तस्य स्थिरबन्धो धारणा। (मनो ४.१५)
माण्डलिक दोष का एक प्रकार, जो अरस भोजन और उसके दाता की निन्दा करने से उत्पन्न होता है। इस दोष का सेवन करने वाला मुनि चारित्ररूपी ईंधन को जलाकर धुआं पैदा कर देता है। निन्दन् पुनश्चारित्रेन्धनं दहन् धूमकरणाद् धूमो दोषः।
_(योशा १.३८ वृ पृ १३८)
धूमनेत्र
धृति
धारणा व्यवहार
अनाचार का एक प्रकार, जिसमें नलिका द्वारा औषधीय व्यवहार का एक प्रकार। संविग्न गीतार्थ के द्वारा विधि
धूम्रपान किया जाता है, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। निषेध तथा प्रायश्चित्त के लिए प्रयुक्त विधि का अवधारण
'धूमणेत्ति' धूमपाणसलागा। (द ३.९ अचू पृ ६२) कर वैसा व्यवहार करना। गीतार्थसंविग्नेन द्रव्याद्यपेक्षया यत्रापराधे यथा या विशुद्धिः धूमप्रभा कता तामवधार्य यदन्यस्तत्रैव तथैव तामेव प्रयुङ्क्ते सा नरक की पांचवीं पृथ्वी (रिष्टा) का गोत्र, जहां धूम जैसी धारणा। (स्था ५.१२४ वृ प ३०२) आभा होती है।
(देखें चित्र पृ ३४६) धिक्कार
धूमाभा-धूमप्रभा।
(अनुचू पृ ३५) प्राचीन दण्डनीति का एक प्रकार। ‘धिक्कार है तुझे, तूने ।
(द्र रत्नप्रभा) ऐसा किया!' कहना। धिगधिक्षेपार्थ एव तस्य करणम-उच्चारणं धिक्कारः।
१. अरति मोहकर्म के क्षयोपशम से निष्पन्न होने वाली (स्था ७.६६ वृ प ३७८)
नियंत्रण की शक्ति। हक्कारे मक्कारे, धिक्कारे चेव दंडनीईओ....
धिती तु मोहस्स उवसमे होति।
(निभा ८५) (आवनि १६७)
२. चित्त की स्वस्थता, अनुद्विग्नता धीर
धृतिश्च चित्तस्वास्थ्यमनुद्विग्नत्वमित्यर्थः। १. वह मुनि, जो अक्षोभ्य है, भूख, प्यास आदि कष्टों से
(उ ३२.३ शावृ प ६२२) क्षुब्ध नहीं होता।
३. अनुयोगकृत् (आचार्य) का एक गुण, जिसके कारण वह २. उत्तम बुद्धि से सम्पन्न।
सूत्र के अति गहन अर्थों में भ्रमित नहीं होता, निःशंक और धी:-बुद्धिस्तया राजत इति धीरः, परीषहोपसर्गाक्षोभ्यो वा।।
निर्धान्त होता है। (सूत्र १.११.३८ वृ प २१०) धृतियुतो नातिगहनेष्वर्थेषु भ्रममुपयाति। धीर:-अक्षोभ्यः सबुद्ध्यलंकृतो वा।।
(बृभा २४१ वृ पृ७५) (सूत्र १.१३.२१ वृ प २४६) धृतिमति
योगसंग्रह का एक प्रकार । धैर्ययुक्त बुद्धि, अदीनता। वैराग्य का प्रयोग, जो कर्म को प्रकंपित करता है।
'धिइमई य'त्ति धृतिप्रधाना मतिभृतिमतिः-अदैन्यम्। धुतं णाम येन कर्माणि विधूयन्ते, वैराग्य इत्यर्थः ।
(सम ३२.१.३ वृ प५५) (सूत्र १.२.८ चू पृ ५३)
ध्यान आभ्यन्तर तप का एक प्रकार।
धुत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org