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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
नाणावरणचउक्कं दंसणतिगनोकसाय विग्घपाणं। संजलण देसघाई...॥
(पंसं ३.१८,१९)
देशघाति स्पर्धक वह कर्मशक्ति, जो आत्मगुणों के एक देश को आच्छादित करती है। विवक्षितैकदेशेनात्मगुणप्रच्छादिकाः शक्तयो देशघातिस्पर्धकानि भण्यन्ते।
(बृद्रसं ३४ वृ पृ७९)
देवायुष्क आयुष्य कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव देवअवस्था का अनुभव करता है। आयुरेवायुष्कम्"देवानां भवनवास्यादिभेदानामिदं दैवम्।
(तभा ८.११७) देवेन्द्र वह इन्द्र, जो वैमानिक देवों अथवा ज्योतिष्क देवों का अधिपति होता है। तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा-देविंदे असुरिंदे मणुस्सिंदे। देवा-वैमानिका ज्योतिष्कवैमानिका वा रूढेः असुरा:-- भवनपतिविशेषा भवनपतिव्यन्तरा वा सुरपर्युदासात्।
(स्था ३.३ वृ प ९८) देवेन्द्रस्तव उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार। वह अध्ययन, जिसमें देवेन्द्रों की स्थिति, भवन, विमान, नगर, उच्छवास-नि:श्वास आदि का वर्णन है।
(नन्दी ७७) देवेन्द्रोपपात कालिक श्रुत का एक प्रकार । वह अध्ययन, जिसका परावर्तन करने से देवेन्द्र उपस्थित हो जाता है। (नन्दी ७८) (द्र अरुणोपपात)
देशचारित्र अपूर्ण चारित्र। अणुव्रत और शिक्षाव्रत। देशतश्चाणुव्रतशिक्षाव्रते।
(जैसिदी ६.२२) (द्र देशव्रत) देशविरत जीवस्थान संयताऽसंयतो देशविरतः।
(जैसिदी ७.७) देशेन-अंशरूपेण व्रताराधक इत्यर्थः। (जैसिदी ७.७ वृ) (द्र विरताविरत)
देश
वस्तु का वह अंश, जो वस्तु से पृथक् नहीं होता, किन्तु उपयोगितावश बुद्धि द्वारा उसके अंश होने की कल्पना की। जाती है। वस्तुनोऽपृथग्भूतो बुद्धिकल्पितोंऽशो देश उच्यते।
(जैसिदी १.३० वृ) देशकालज्ञता लोकोपचारविनय का एक प्रकार। देश और काल का ज्ञान होना, अवसरज्ञ होना। देशकालज्ञता-अवसरज्ञता। (स्था ७.१३७ वृप ३८८)
देशविराधक १. वह व्यक्ति, जो शीलसम्पन्न नहीं है किन्तु श्रुतसम्पन्नधर्म को जानने वाला है। पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं-अणुवरए, विण्णाय-धम्मे एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते।
(भग ८.४५०) २. वह मुनि, जो चतुर्विध धर्मसंघ के अप्रिय व्यवहार को सम्यक सहन करता है किन्तु अन्यतीर्थिक और गृहस्थ को सम्यक् सहन नहीं करता। जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं य सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ-एस णं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते।
(ज्ञा ११.३)
देशघाति घातिकर्म की वह प्रकृति, जो ज्ञान आदि आत्म-गुणों के एक देश का घात करती है, जैसे–मतिज्ञानावरण आदि। ..."तस्सेस देसघाइत्तणा उ पण देसघाईओ॥
देशव्रत श्रावक के लिए निर्धारित आचारसंहिता।
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