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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उड्डुं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले
गाहा
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्म सन्निचिते,
भरिए वालग्गकोडीणं ॥
जेणं तस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना, तओ णं समए - समए एगमेवं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे ।
एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवमसागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णव पण्णविज्जइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओ मे ॥
से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे ? सुहुमे खेत्तपलिओवमे, से जहानामए पल्ले सिया - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले
गाहा
एगाहिय - बेयाहिय- तेयाहिय,
उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचिते,
भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ । जेणं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं बालग्गेहिं अप्फुन्ना अन्नावा, ओणं समए- समए एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे ॥
( अनु ४३४, ४३६-४३८)
क्षेत्र लोक
लोक का वह स्वरूप, जिसकी व्याख्या क्षेत्र के आधार पर की जाती है।
'खेत्तलोए' त्ति क्षेत्ररूपो लोकः । (भग ११.९० वृ)
क्षेत्रवास्तु प्रमाणातिक्रम इच्छापरिमाण व्रत का एक अतिचार । अनजान में अथवा अतिलोभ के कारण खेत, घर आदि के प्रमाण का अतिक्रमण करना।
क्षेत्रवस्तुनः प्रमाणातिक्रमः, प्रत्याख्यानकालगृहीतमानो
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लङ्घनमित्यर्थः, एतस्य चातिचारत्वमनाभोगादिनाऽतिक्रमादिना वा । (उपा १.३६ वृ पृ १३ )
क्षेत्रविपाकिनी
वह कर्म-प्रकृति, जो अंतरालगति में उदय में आती है, शेष काल में नहीं ।
क्षेत्रे गत्यन्तरसंक्रमणहेतुनभः पथे विपाकः फलदानाभिमुख्यं यासां ताः क्षेत्रविपाकिन्यः । (कप्र पृ ३५)
क्षेत्रवृद्धि
दिग्व्रत का एक अतिचार। एक दिशा का परिमाण घटाकर उसे दूसरी दिशा के परिमाण में संयोजित कर उसका विस्तार करना ।
'खेत्तवुड्डि' त्ति एकतो योजनशतपरिमाणमभिगृहीतमन्यतो दशयोजनान्यभिगृहीतानि, ततश्च यस्यां दिशि दश योजनानि तस्यां दिशि समुत्पन्ने कार्ये योजनशतमध्यादपनीयान्यानि दश योजनानि तत्रैव स्वबुद्ध्या प्रक्षिपति, संवर्धयत्येकतः । (उपा १.३७ वृ पृ १४ )
क्षेत्र सागरोपम
क्षेत्र सागरोपम के दो प्रकार हैं-व्यावहारिक और सूक्ष्म । दस कोटिकोटि व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम का एक व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम होता है। इसका कोई प्रयोजन नहीं है, केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है।
दस कोटाकोटि सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम का एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम होता है। ( अनु ४३४, ४३१)
क्षेत्रोपपातगति
उपपातगति का एक प्रकार। जिस क्षेत्र में नारक आदि जीव, मुक्त जीव अथवा पुद्गल अवस्थित रहते हैं, उस क्षेत्र से संबंधित गति ।
क्षेत्र - आकाशं यत्र नारकादयो जन्तवः सिद्धाः पुद्गला वा अवतिष्ठन्ते । (प्रज्ञा १६.२४ वृप ३२८)
(द्र उपपातगति)
क्षौमकप्रश्न
वह विद्या, जिसके द्वारा वस्त्र पर देवता को अवतीर्ण कर प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया जाता है।
'पसिणाई' ति प्रश्नविद्याः यकाभिः क्षौमकादिषु देवतावतारः क्रियते । (स्था १०.११६ वृ प ४८५ )
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