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( ९ ) कंकति ब्राह्मण । आपस्तम्ब श्रौत १४ । २० । ४ ॥ पर उद्धत है। महाभाष्य ४ । २ । ६६ ।। कीलहान सं० पृ० २८६, पं० १२ पर कांकताः प्रयोग है । इस से भी कंकति शाखा के अस्तित्व का पता लगता है।
(१०) सौलभ ब्राह्मण । महाभाष्य ४ । २ । ६६ ॥ ४ । ३ । १०५ ॥ पर इसका उल्लेख है।
(११) कालबवि ब्राह्मण । (सामवेदीय ) आपस्तम्ब श्रौत २०।९।९॥ पर उद्धृत है । पुष्पसूत्र प्रपाठक ८ । ८ । २८४ ॥ पर भी यह उद्धृत है।।
(१२) शैलालि ब्राह्मण । आपस्तम्ब श्रौत ६।४।७॥ पर उद्धृत है । (१३ ) रौताकै बाह्मण !* गोभिलगृह्य सूत्र ३।२५।पर उद्धृत है।
(१४) खाण्डिकेय ब्राह्मण । ( यजुर्वेदीय ) भाषिकसूत्र ३ । २६ ॥ पर उद्धृत है।
(१५) औखेय ब्राह्मण । ( यजुर्वेदीय ) भाषिक सूत्र ३ | २६ ।। पर उद्धृत है।
( १६ ) हारिद्रविक ब्राह्मण । ( १७) तुम्बरु ब्राह्मण ।
(१८) आरुणेय ब्राह्मण । ये अन्तिम तीनों ब्राह्मण महाभाष्य ४ । ३ । १०४ ॥ पर उल्लिखित हैं।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि यन करने पर इन में से भी कुछ ब्राह्मणों के हस्तलेख अभी प्राप्त होसकते हैं। यदि कहीं से धन मिल जावे, तो उन के खोजने के लिये यत्न किया जा सकता है।
५-मुद्रित ब्राह्मणों में भ्रष्टपाठ। मुद्रित ब्राह्मणों में भ्रष्टपाठ पर्याप्त हैं । गोपथ के योरुपीय संस्कर्ता ने यद्यपि बहुत परिश्रम से लाईडन संस्करण छापा है तो भी अभी तक उस में अशुद्धियों की कमी वहीं । तुलना करो गोपथ उ०३ । ३ ॥ से ऐ० ३ । ७ ॥ की इत्यादि ।
ऐ० ३ । ११ ॥ में एक पाठ हैसौर्या वा एता देवता यनिविदः। यहाँ देवता के स्थान में देवतया पाठ ब्राह्मण शैली के आधिक समीप है।
• क्या धर्मस्कन्ध ब्रा०, अन्तर्यामी बा०, दिवाकीर्त्य ब्रा०, धिष्णय या०, शिंशुमार या०, आदि के समान यह भी किसी ब्राह्मण का अवान्तर विभाग तो नहीं है।
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