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कठश्रुत्युपनिषत् छपा है, वह इसी ब्राह्मण का कोई अन्तिम भाग अथवा खिल प्रतीत होता है । उस के वचनों को यतिधर्म संग्रह का कर्ता विश्वेश्वर सरस्वती आनन्दाश्रम पूना के संस्करण (सन् १९०९ ) के पृ० २२ पं० २६, पृ० ७६ पं० ९ आदि पर काठक ब्राह्मण के नाम से भी उद्धृत करता है ।
( ४ ) मैत्रायणी ब्राह्मण । (यजुर्वेदीय ) बौधायन श्रौतसूत्र ३० | ८ || में उद्धृत | नासिक के वृद्ध से वृद्ध मैत्रायणी शाखा अध्येतृ ब्राह्मणों ने कहा था कि उन्हें इस के अस्तित्व का कोई ज्ञान नहीं रहा । उनके कथनानुसार उन की संहिता में ही ब्राह्मण सम्मिलित है । परन्तु पूर्वोक्त बौधायन श्रौत का प्रमाण मुद्रित ग्रन्थ में नहीं मिला । इसलिये ब्राह्मण पृथक् ही रहा होगा । मैत्रायणी उपनिषद् का अस्तित्व भी इस ब्राह्मण का होना बता रहा है। फिर भी पूरा निर्णय होने के लिये मैत्रा० संहिता का पुनः छपना आवश्यक है । बड़ोदा के सूचीपत्र ( सन् १९२५ ) सं० ७९ में कहा गया है कि उनका हस्तलेख मुद्रित मै० सं० से कुछ भिन्न है । बालकड़ा भाग २ पृ० २७ पं० ३ पर एक श्रुति उद्धृत है । उसी श्रुति को विश्वेश्वर यतिधर्मसंग्रह पृ० ७६ पर मैत्रा० श्रुति के नाम से उद्धृत करता है ।
( ५ ) भाल्लवि ब्राह्मण । बृहद्देवता ५ | २३ || भाषिक सूत्र ३ | १५ || नारद शिक्षा १ | १३ || महाभाष्य ४ । २ । १०४ ॥ में इस का मत वा नाम कहा है।
(६) जाबाल ब्राह्मण । (यजुर्वेदीय ) जाबाल श्रुति का एक लम्बा उद्धरण बालक्रीडा भाग २, पृ० ९४, ९५ पर उद्धृत है। यह सम्भवतः ब्राह्मण का पाठ होगा । बृहज्जाबालोपनिषद् नवीन है, परन्तु जाबाल उप० प्राचीन प्रतीत हो है । इस शाखा का एक गृह्य ( जाबालि गृह्य ) गौतम धर्मसूत्र के मस्करी भाष्य के पृ० २६७, ३८९ पर उद्धृत है 1
( ७ ) पैद्री ब्राह्मण । इसका ही दूसरा नाम पैङ्गय ब्रा० वा पैङ्गायनि ब्रा० भी है । यह आपस्तम्ब श्रौत ५ | १८ | ८ || ५ | २९ | ४ || में उद्धृत है आचार्य शङ्करस्वामी भी इसे शारीरिक सूत्र भाष्य में उद्धृत करते हैं । पैंगी कल्प का उल्लेख महाभाष्य ४ । २ । ६६ ॥ पर है |
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(८) शाट्यायन ब्राह्मण । (सामवेदीय ? ) आपस्तम्ब श्रौत १० । १२ | १३, १४ || २१ | १६ | ४, १८ ॥ पुष्पसूत्र ८ । ८ । १८४ ॥ में उद्धृत है। सायण अपने ऋग्वेद भाष्य और ताण्ड्य ब्राह्मण भाष्य म इसे बहुत उद्धृत करता है । इसी का कल्प बालक्रीडा भाग १, पृ० ३८ पर उद्धृत है 1
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