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(२४) प्राचीनशाल औपमन्यव । (२५) सत्ययज्ञ* पौलुषि । (२६) इन्द्रद्युम्न भाल्लवेय । (२७) जन शार्कराक्ष्य ।
(२८) बुडिल आश्वतराश्वि ।। ये पांच महाश्रोत्रिय गये थे। क्योंकि छान्दोग्य उपनिषद् में लिखा है
प्राचीनशाल औपमन्यवः सत्ययज्ञः पौलुपिरिन्द्रद्युम्नो भाल्लवयो जनः शार्कराक्ष्यो बुडिल आश्वतराश्विः ॥१॥ ते ह संवादयां चक्रुरुद्दालको वै भगवन्तोऽयमारुणिः संप्रतीभमात्मानं वश्वानरमभ्येति ॥२॥५॥११॥ (न) इन पांचों को साथ लेकर उद्दालक आरुणि
(२९)* महाराज अश्वपति के समीप गये थे-- तान् होवाचाश्वपतिर्वै भगवन्तोऽयं कैकेयः संप्रतीममात्मानं वैश्वानरमध्येति । छा० उ० ५.११॥४॥
अब कहां तक लिखें । सैकड़ों और नाम भी लिखे जा सकते हैं। ये उनास * संख्या (३) वाला सोमशुष्म इसी सत्ययन का पुत्र प्रतीत होता है । + इसी का संख्या (१) वाले जनक से संवाद हुआ था । देखोएतद्ध वै तजनको वैदेहो बुडिलमाश्वतराश्विमुवाच । श . १४।८।१५। ११ ॥ * इन में से कुछ नाम पारजिटर ने अपने ग्रन्थ A.I.II. Tradition पृ. ३२७ और ३२८ पर दिये हैं । $उदाहरणार्थ (३०) हिरण्मय शकुन ( कौ० ७ । ४ ॥) (३१) आसोलो वाणिवृद्ध (३२) इटन् काव्य । (३३) शिखण्डी याशसेन । " (३४) गौश्र । ( कौ० १९ । ९) मधुक से वार्तालाप करने से। . (३५) उपकोसल कामलायन । छां. उप. ४ । १० १॥ सत्यकाम जाबाल
का शिष्य होने से ।
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