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(१०) हारिद्रुमत गौतम था। (छ) श्वेतकेतु आरणेय ही (११) पश्चालाधिपति प्रवाहण जैबलि के समीप गया ५।
श्वेतकेतुर्हारुणेयः पञ्चालाना समितिमेयाय । तरह प्रवाहणो जैबलिरुवाच । छा० उ० ५।३।१।।*
लगभग ऐसा ही पाठ बृहदारण्यक ६।२।१॥ में भी है । (ज) यही श्वेतकेतु जब ब्रह्मचारी था, तब
(१२) अश्विद्वय ने इसकी चिकित्सा की थी । देखा विश्वरूपाचार्य कृत बालक्रीडा टीका ९॥३२॥ पर चरकों का पाठ
तथा च चरकाः पठन्ति
श्वेतकेतुं हारुणेयं ब्रह्मचर्य चरन्तं किलासो जग्राह । तमश्विनावूचतुः। 'मधुमांसौ किल ते भैषज्यम्' इति ।
(स) संख्या (११) वाले प्रवाहण जैबाल का, (१३) शिलक शालावत्य, और
(१४) चैकितायन दाल्भ्य से परस्पर संवाद हुआ था । क्योंकि बृहदारण्यक में निम्नलिखित वाक्य से आरम्भ कर के उन का संवाद कहा है
त्रयो होडीथे कुशला बभूवुः । शिलकः शालावत्यः । चकितायनो दाल्भ्यः । प्रवाहणो जैवलिः । ६।२।३॥
(अ) संख्या (१४) वाले चकितायन का भ्राता (१५) बको दाल्भ्य प्रतीत होता है । (ट) इस बक दाल्भ्य तथा (१६) ग्लाव मैत्रेय उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद् में है
अथात शौव उद्गीथः । तद्ध बको दाल्भ्यो ग्लावोवा मैत्रेयः स्वाध्यायमुहबाज । १।१२।१॥
(ठ) इन्हीं (१४) और (१५) सख्या वाले दोनों व्यक्तियों का भ्राता * तुलना करो शतपथ १४ । ९ । १ । १ ॥ + इसी व्यक्ति का कथन छा० उ० १८१॥ में किया गया है।
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