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४-चूड भागवित्ति
(७)
५-जानकि आयस्थूण
. ६--सत्यकाम जाबाल
७-अनेक अन्तेवासी
संख्या (२) का श्वेतकेतु आरुणेय संख्या (५) के उद्दालक आरुणि का पुत्र है । अतः वह याज्ञवल्क्य का गुरु-पुत्र होने से भ्राता* ही है।
(ग) इस में प्रमाण छान्दोग्य उपनिषद् का है.----
श्वेतकेतुर्हारुणेय आस । तर पितोवाच...।६।१।१॥ उद्दालको हारुणिः श्वेतकेतुं पुत्रमुवाच । ६ । ८।१॥
(घ) जनक की महती सभा में गुरु उद्दालको भी शिष्य याज्ञवल्क्य से प्रश्न पृछता हैअथ हेनमुद्दालक आरुणिः पप्रच्छ याज्ञवल्क्याश०१४।६।७।१॥
(ङ) संख्या (९) का सत्यकाम जाबाल' ही जनक को कुछ उपदेश दे गया था । उसी उपदेश को याज्ञवल्क्य जनक से सुन रहा है
अब्रवीन्मे सत्यकामो जाबालः । शतपथ १४।६।१०।१४॥ (च) इसी संख्या (९) वाले सत्यकाम जाबाल का एक गुरुस (सत्यकामो जाबालः) ह हारिद्रुमतं गौतममेत्योवाच ।
छां० उ० ४।४॥३॥ * याज्ञवल्क्य के समान यह भी संन्यासी होगया था। देखो जाबाल उपनिषद् -
परमहंसानाम संवर्तक-आरुणिःश्वतकेतुः ॥६॥ इसी उद्दालक को चित्र गार्यायाणि ने स्वयज्ञार्थ वरा थाचित्रो ह वै गाायणिर्यक्ष्यमाण आरुणिं ववे । स ह पुत्रं श्वतकेतुं प्रजिगाय याजयेति । कौषीतकि उप० २१॥ इसी का पिता अरुण औपवाश था । देखो शतपथ १४।९।४।३३।। तथाऐतद्ध स्म वा आहारुण औपवेशिः । मै० सं० १।४।१०॥३६॥४॥ + इसी का कथन शतपथ १३।५।३।१॥ में किया गया हैइति ह स्माह सत्यकामो जाबालः ।
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