________________
७७
इन पांचों में से पहले चार तो अनेक ऋग्वेदीय सूक्तों के द्रष्टा हैं। और अन्तिम व्यास जी सब शाखाओं ( चारों वेदों को छोड़ कर ) और ब्राह्मणों के प्रधान प्रवक्ता हैं | इन्हीं व्यास जी के समकालान याज्ञवल्क्य आदि हैं । ये भी ब्राह्मणों के प्रवक्ता हैं । ऐसा हम ब्राह्मणों के सङ्ककलन-काल प्रकरण में स्पष्ट कर चुके हैं। इस विषय के और प्रमाण निम्नलिखित हैं
__ (क) शतपथ ब्राह्मण ११ । ६ । २ | १ ॥ में कहा है---
जनको ह वै वैदेहो ब्राह्मणैर्धावयद्भिः समाजगाम श्वेतकेतुनारुणेयेन, सोमशुष्मेण सात्ययज्ञिना याज्ञवल्क्येन | तान् होवाच-कथं कथमग्निहोत्रं जुहुथ-इति ।
इस से स्पष्ट नात होता है कि(१) जनक। (२) श्वेतकेतु आरुणेय । (३) सोमशुष्म सात्ययनि* | और (४) याज्ञवल्क्य समकालीन थे। यही परिणाम और प्रकार से भी निकलता है।
(ख) शतपथ ब्राह्मण १४ । ९ । ३ । १५-२० ॥ में निम्नलिखित वाक्य से आरम्भ करके एक गुरु-शिष्य परम्परा दी है--
त हैतमुद्दालक आरुणिः वाजसनेयाय याज्ञवल्क्यायान्तेवासिन उक्त्वोवाच
इस परम्परा का चित्र नीचे दिया जाता है
१-उद्दालक आरुणि
२-वाजसनेय याज्ञवल्क्य
(४)
३–मधुक पैङ्ग्य।
(६) * सम्भवतः इसी सात्ययन्नि का उल्लेख शतपथ १३ । ५ । ३ ॥ ९ ॥ में है
तदु होवाच सात्ययक्षिः। * सम्भवतः यही पेय शतपथादि ब्राह्मणों में उद्धृत हैं। देखो शतपथ १२ । ३ । १। ८ ॥ तथा मधुक नाम से इसी का उल्लेख को० १९।९॥ में है
पतद्ध स्म वै तद्विद्वानाह. पैङ्ग्यः । यह जानते हुए पेङग्य बोला ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org