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अयं वा इन्द्रो यो ऽयं पवते । श० १४।२।२६॥ अब रहे ओल्डनबर्ग और मैकडानल । ये दोनों परस्पर पूर्ण सहमत नहीं ।
ओल्डनबर्ग यज्ञ का sacrifice और अध्वर का worship अर्थ करता है। इस के विपरीत मैकडानल यज्ञ का worship और अध्वर का sacrifice अर्थ करता हैं। खिन्नमना ओल्डनबर्ग धीमी स्वर से इन दोनों को पर्याय भी मानता है । यदि वह पर्याय न मानता, तो भारी आपत्ति से बच भी न सकता । इसी लिये आगे चल कर वह अर्थ पलटता है।
सत्यधर्माणमध्वरे । ऋ० १।१२।७।। whose ordinances for the sacrifice are true. आनिर्यज्ञस्याध्वरस्य चेतति । ऋ० १११२८॥४॥ Agni watches sacrifice and service.* यज्ञानामध्वरश्रियम् । ऋ० ११४४॥३॥ the beautifierf of sacrifices. अब रहे, हमारे पूर्वपक्षी मैकडानल महाशय । ये श्रीमान् यज्ञ का worship
और अध्वर का sacrifice अर्थ मानते हैं । पर इन का भी इस से काम नहीं चला । देखो यज्ञस्य देवमृत्विजाम् ।।१।१॥ the divine ministrant of the sacrifice. यज्ञैः विधेम । ऋ० २।३५ । १२ ॥ we offer worship with sacrifices. यज्ञस्य हि स्थ ऋत्विजा । ऋ० ८।३८ । १॥ ye two (Indra-Agni) are ministrants of the sacrifice. I इन मन्त्रों में इन्हें यज्ञ का sacrifice ही अर्थ मानना पड़ा। अब यदि ब्राह्मण ने
अध्वरो वै यज्ञः। श०१।२।४।५॥ * यह अनुवाद मावशून्य है।
+ अध्वरश्रियम्, द्वितीयान्तपद है। क्या इसका यह अर्थ पाश्चात्यों की शोभा बढ़ाता है।
* यह मन्त्रभाग मैकडानल ने ऋ० १।१।१॥ के टिप्पण में उद्धृत किया है।
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