________________
से यह भी सिद्ध होगा कि मन्त्र समूह ही वेद हैं, ब्राह्मण आदि नहीं | *
गोपथ ब्राह्मण पू० १ । ५ ॥ में कहा हैयान् मन्त्रानपश्यत् स आथर्वणो वेदो ऽभवत् ।
क्या इस से बढ़ के और स्पष्ठ प्रमाण की भी आवश्यकता है। यहां सारा सिद्धान्त विवाद से ऊपर कर दिया गया है । मन्त्र समूह का ही नाम वेद है, और वहीं आदि सृष्टि में प्रकाशित हुआ | वही अपौरुषेय है। उसकी आनुपूर्वी नित्य है । शेष शाखायें कृत तो नहीं, पर आनुपूर्वी अनित होने से प्रोक्त हैं |
प्रश्न--चरणव्यूह कण्डिका द्वितीय में यह क्या लिखा है कि मन्त्र ब्राह्मण वेद है। देखो
त्रिगुणं पठयते यत्र मन्त्रब्राह्मणयोःसह । यजुर्वेदः स विज्ञेयः शेषाः शाखान्तराः स्मृताः ॥
उत्तर–साम्प्रतिक दशा में चरणव्यूह कोई विश्वसनीय ग्रन्थ नहीं हैं । इस के आठ नौ भेद तो हम ने ही देखे हैं । वैबर साहब का चरणव्यूह और, काशी का छपा और । हस्तलिखितो के भेद का तो कहना ही क्या । ऐसी अवस्था में कौन कह सकता है कि मूल ग्रन्थ कितना था । और यह श्लोक तो किसी तैत्तिरीयसाखा-भक्त का मिलाया हुआ प्रतीत होता है ।
चरणव्यूह का टीकाकार महिदास इस श्लोक को ऐसे पढ़ता हैमन्त्रंब्राह्मणयोर्वेदः त्रिगुणं यत्र पठ्यते । यजुर्वेदः स विज्ञेय अन्ये शाखान्तराः स्मृताः ।।
* यद्यपि बौद्ध ग्रन्था का हम सांग प्रमाण नहीं करत, तो भी महावस्तु में "ब्राह्मणवेदेषु" पद बहुत स्पष्ट है । इससे ज्ञात होता है कि बौद्ध विद्वानी को जो परम्परा विदित थी, तदनुसार ब्राह्मण वेद नहीं थे । देखो
__ तस्य राज्ञो पुरोहितो ब्रह्मायुः नाम त्रयाणां वेदानां पारगो सनिघण्ठकैटभानां इतिहासपंचमानां अक्षरपदव्याकरणे अनल्पको। सोऽयमाचार्यः कुशलो ब्रामणवेदेषु पि शास्त्रषु दानसंविभागशीलो दश कुशलकर्मपथां समादाय वर्तति ।
भाग २ | पृष्ठ ७७ । पंक्ति ८-११ । महावस्तु में ऐसा ही प्रयोग कई स्थलों पर आया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org