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सकता इस पर हम पूछते हैं कि महामोहविषार्णव का जी ! कहिये तो सही न्यायदर्शन में यह कौन प्रकरण है ? क्या आपने इसको वेदप्रामाण्य परीक्षा प्रकरण समझा है ? वा अन्य कोई । यदि वेद परीक्षा प्रकरण समझा है तो कहिये कि वेद परीक्षा प्रकरण के होने में क्या नियम है ? तत् शब्द से पूर्व प्रतिपादित विषय लेना यह तो सब आपों का सिद्धान्त हो है पर आप कहिये कि “ तद् प्रामाण्यम् ० " इस सूत्र से पहिले वेदशब्द किस सूत्र में पढ़ा है ? जो तत् शब्द से लेना चाहिये । ___... इन लोगों ने विश्वनाथ भट्टाचार्य कृत न्यासूत्र की वृत्ति भी नहीं देखी ? जो प्रकरण का नाम तो मालूम हो जाता । ... विश्वनाथ ने इस प्रकरण का नाम "शब्दविशेषपरीक्षा" प्रकरण रक्खा है । सो न्यायभाष्य के अनुकूल है ।* और भाष्यकार वात्स्यायन ऋषि ने भी लिखा है कि "तस्य शब्दस्य प्रमाणत्वं न सम्भवति" उस पूर्वोक्त शब्द का प्रमाण मानना ठीक नहीं है अर्थात् उक्त सूत्र में तत् शब्द करके शब्दप्रमाण का आकर्षण करना चाहिये, और पूर्व से शब्दपरीक्षा का प्रसङ्ग भी चला ही आता है। यद्यपि शब्द प्रमाणान्तर्गत वेद भी आता है इसी लिये हम यह प्रतिज्ञा नहीं करते कि शब्द विशेष परीक्षा कहन में वेद की परीक्षा न आवेगी परन्तु यह प्रतिज्ञा अवश्य करते हैं कि शब्द विशेष परीक्षा में केवल मूलवेद ही लिये जावें और ब्राह्मणादि न लिये जावें यह कोई सिद्ध नहीं कर सकता क्योंकि शब्द सामान्य में हम लोगों के विश्वास योग्य व्यवहार के शब्द भी आ सकते हैं और शब्द विशेष कहने से श्रुति स्मृति ही ली जावेंगी । इस में भी मूल वेद सूर्य के समान स्वतः प्रकाश स्वरूप है उस की परीक्षा करना सर्वाश में ठाक नहीं । जैसे सूर्य को देखने के लिये द्वितीय सूर्य्य वा दीपकादि की अपेक्षा नहीं होती वैसे किसी अन्य प्रमाण से वेद की परीक्षा करना नहीं बनता । इसी कारण शब्द विशेष परीक्षा में महर्षि वात्स्यायन जी ने विशेष कर ब्राह्मण भागों के उदाहरण दिये हैं । जो कुछ वेद परीक्षा हो सकती है तो वेद से ही हो सकती है । और बड़ा भारी आश्चर्य तो यह है कि महामोहविषार्णवकर्ता जिन न्यायकर्ता महर्षि के प्रमाण से अपने पक्ष को सिद्ध करना चाहते हैं उन्हीं ऋषि के उसी प्रमाण से इन का पक्ष खण्डित होता है किन्तु सिद्ध कुछ भी नहीं होता । सूत्रकार और भाष्यकार ऋषियों ने “ तद प्रामाण्यम् ० ' इस सूत्र से पूर्व कहीं भी वेद शब्द का नाम नहीं लिया । इसी से इस सूत में तत् शब्द से वेद का परामर्श नहीं किया किन्तु शब्द का परामर्श किया । और ऋषि लोग ऐसा अप्रसङ्ग वर्णन इन लोगों के तुल्य
* वात्स्यायन भाष्य के भी अनेक छपे ग्रन्थों में इस प्रकरण को "शब्दविशेष परीक्षा प्रक..ग ही लिखा है । भ०दत्त ।
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