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___ प्रमाणेन खलु ब्राह्मणनेतिहासपुराणस्य प्रामाण्यमभ्यनुज्ञायते । ४ । १ । ६२॥
अर्थात् प्रमाणरूप ब्राह्मण से इतिहास और पुराण की प्रामाणिकता ज्ञात होती है।
फिर शतपथ ब्रा० १३ । ४ । ३ । १२, १३ ॥ में कहा हैअथाष्टमेहन् । 'किंचिदितिहासमाचक्षीत ।
अथ नवमेऽहन् । 'तानुपदिशति पुराणं वेदः सोऽयमिति किंचित् पुराणमाचक्षीत ।
उत्तर-हम ने कब कहा है कि इन ब्राह्मणों से पूर्व कोई इतिहास और पुराण न थे । प्रत्युत हम तो पृ० २९ पर स्वयं अनेक प्रमाणों से इन का अस्तित्व स्वीकार कर चुके हैं । इन्हीं की बहुत सी सामग्री का प्रवचन की भाषा में इन ब्राह्मणों म समावेश किया गया है । इसी कारण इन ब्राह्मणों की इतिहासादि भी संज्ञा है। और इसी कारण पुराण शब्द अनक स्थलों में विशेषणरूप से ब्राह्मणों का द्योतक बना ।
यास्काचार्य ने निरक्त ३ | १८ || में--- पुराणं कस्माद् । पुरा नवं भवति ।
पुराने अथवा पुराण का यह निर्वचन किया है कि."प्रथम होते समय नया हो ।" ऐसी वार्ताएं बाह्मणों में सर्वत्र पाई जाती हैं । इस लिये भी पुराण का लक्षण ब्राह्मण में चरितार्थ हो जाता है । मन्त्रों में सब सामान्य वर्णन है। अतः ब्राह्मण आदि वंद नहीं हो सकते । मन्त्रसहिताएं ही वेद हैं ।
(ज) भगवान् पाणिनि ने अपन अष्टक में ये मूत्र कहे हैंदृष्टं साम । ४ । २ । ७॥ तेन प्रोक्तम् । ४ । ३ । १०१॥ पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु । ४ । ३ । १०५ ॥ उपज्ञाते । ४ । ३ । ११५ ॥ कृते ग्रन्थे । ४।३।११६ ॥ इनका अभिप्राय यह है कि१-मन्त्र दृष्ट हैं। २-शाखाएं ( मृल बंदों को छोड़ कर ), ब्राह्मण और कल्प प्रोक्त हैं।
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