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नहीं है । ब्राह्मणों में तो ऋषियों की वंशावलियां दी हैं । पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आदि का इतिहास है। अतएव ब्राह्मणों की इतिहासादि भी संज्ञा है, और ब्राह्मण वेद नहीं। (छ) ब्राह्मणों की इतिहासादि संज्ञा में और भी प्रमाण देखो । महर्षि गोतमः कहते हैंस्तुतिर्निन्दा परकृतिः पुराकल्प इत्यर्थवादः।
२। १ । ६४ ॥ पुराकल्प शब्द पर भाथ्यकर्ता वात्स्यायन लिखता हैऐतिह्यसमाचरितो विधिः पुराकल्प' इति ।
तस्माद्वा एतेन ब्राह्मणा बहिष्पवमानं सामस्तोममस्तौषन्। योनेर्यशं प्रतनवामहा इत्येवमादिः ।
अर्थात् ऐतिश अर्थात् इतिहासयुक्त कथन पुराकल्प कहाता है । वात्स्यायन पुराकल्प के उदाहरण में किसी ब्राह्मणपाठ को ही उद्धृत करता है। यहां प्रकृत विषय भी शब्द विशेष परीक्षा प्रकण में ब्राह्मण-वाक्य-विभाग का चल रहा है । अतएव जब वात्स्यायन आदि मुनि ब्राह्मणों में स्वयं इतिहास को मानते हैं तो हम यदि उन को इतिहास भी एक संज्ञा मान लें, तो इस में क्या दोष है।
प्रश्न-जब अनेक ऋषि मुनि मन्त्र ब्राह्मणों को वेद मानते आए हैं, तो फिर तुम ऐसी आपत्तियां उठा के क्या सिद्ध करना चाहते हो । देखो
___ * वंश आदि वर्णन पुराण का एक अंग है । यह ब्राह्मणों में प्रायः मिलता है। इसी लिये पुराण शब्द कहीं २ ब्राह्मणों का विशेषण है।
+ गोतम साधारण अन्धकार नहीं, प्रत्युत ऋषि है । अतएव महाभारत-काल का वा उस से भी बहुत पहले का है। वात्स्यायन २ । १ । ५७ ।। सूत्र पर स्वयं कहता है
तस्येति शब्दविशेषमेवाधिकुरुते भगवानृषिः ।
पाश्चात्य लेखक वा उन के कतिपय एतद्देशीय शिष्य जो गोतम-सूत्रों को ईसा की प्रथम शताब्दी के समीप का मानते हैं, तो यह उनकी सरासर भूल है। ईसा से सहस्रों वर्ष पहले तो न्याय भाष्यकार वात्स्यायन ही हो चुका था।
* तुलना करो महाभाष्य ( कील० सं० भाग १ पृ० ५) पुराकल्प एतदासीत्-संस्कारोत्तरकालं ब्राह्मणा व्याकरणं स्माधीयते।
तुलना करो वाक्यपदीय टीका १ । १५६ ।। श्रूयते हि पुराकल्पे ।
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