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(घ) ऐतरेय ब्राह्मण ७ ॥ १८ ॥ में लिखा है* -- ओमित्यूचः प्रतिगर एवं तथेति गाथायाः। ओमिति वै दैवं, तथेति मानुषम् । पुनः काठक साहता १४ । ५ !! में कहा है--- अनृतं हि गाथानृतं नाराशंसी।
और शंतपथब्राह्मण १।१। । ४ ॥ में कहा हैअनृतं मनुष्याः ।
इस से निश्चय होता है कि जो बात पूर्वोक्त ऐतरेय ब्रा० के प्रमाण से स्पष्ट होती है, वही सिद्धान्त काठक संहिता से प्रकाशित किया गया है । ऐतरेय ब्रा० में
*श्रौतसूत्रों में भी यही बात कही गयी है । आश्वलायन श्रौतसूत्र ९ । ३ ॥ में कहा है
ओमित्यचः प्रतिगर एवं तथेति गाथायाः । ओमिति वै दैवं तथेति मानुषम् ॥
शाङ्खायन श्रौतसूत्र में अनेक गाथाओं को उद्धृत करके १५ । २७ ॥ में कहा है
तदेतच्छौनाशेपमाख्यानं पर शतपथमपरिमितम् ।
......हिरण्यकशिपावासीनः प्रतिगृणाति ओमित्यूचः प्रतिगरः । एवं तथेति गाथायाः । ओमिति वै दैवं तथेति मानुषम्।।
कात्यायन श्रौतसूत्र अध्याय १५ में कहा हैशौनःशेषश्च प्रेष्यति ॥ १५४ ॥ ओ३मित्यूचां प्रतिगरस्तथेति गाथानाम् ॥ १५६ ॥ आपस्तम्ब श्रौतसूत्र १८ । १९ ॥ में लिखा हैशौनः शेपमाख्यायते । ऋचो गाथामिश्राः परःशताः परःसहस्रा वा ॥१०॥ हिरण्यकूर्चयोस्तिष्ठनध्वर्युः प्रतिगृणाति ॥ १२॥ ओमित्यूचः प्रतिगरः । तथेति गाथायाः ॥ १३ ॥
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