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(२) क्या ब्राह्मण वेद हैं ? शबर, पितृभूति, शक्कर, कुमारिल, विश्वरूप, मेधातिथि, कर्क, वाचस्पतिमिश्र, रामानुज, उव्वट, सायण प्रभृति सवहीं बड़े २ आचार्य मन्त्र ब्राह्मण दोनों को वेद मानते आये हैं । गत ३००० वर्ष में आर्यावर्त के किसी विद्वान् को इस बात का सन्देह नहीं हुआ कि ब्राह्मण ग्रन्थ वेद नहीं हैं । इतने काल से आर्यों के हृदयों में ब्राह्मणों की श्रुतियों का उतना ही मान रहा है, जितना संहिताओं के मन्त्रों का । आर्यों के समस्त श्रौतकर्म इन दोनों को तुल्य मान कर ही होते चले आये हैं ।
__यह सब कुछ ही था, पर इस बीसवीं शताब्दी विक्रम में दयानन्द सरस्वती ने इन सब के विरुद्ध इस बात का प्रकाश किया कि ब्राह्मण-ग्रन्थ वेद नहीं हैं । वे ऋषिप्रोक्त हैं, ईश्वरोक्त नहीं । इत्यादि । दयानन्द सरस्वती ने स्वपक्ष पोषणार्थ अनेक युक्तियां दीं। वे युक्तियां इस बात को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त ही हैं । उन के विरुद्ध जो उचित पूर्वपक्ष उठाया गया है, हम उसका उत्तर तो दें ही गे, पर कुछ एक सर्वथैव नये प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं । इन प्रमाणों से ब्राह्मणों का अनीश्वरोक्त होना सिद्ध होजायगा । अन्त में हम यह भी बतावेंगे कि इतने बड़े २ पुराने आचार्यों को इस बात में क्यों भ्रम होगया । लो अब प्रमाणों के बल को देखो, और सत्य को ग्रहण करो।
(क) गोपथ ब्राह्मण पू० २ । १० ॥ में कहा है--
एवमिमे सर्वे वेदा निर्मिताः सकल्पाः सरहस्या:* सब्राह्मणा:* सोपनिषत्काः सेतिहासाः सान्वाख्यानाः सपुराणाः सस्वराः ससंस्काराः सनिरुक्ताः सानुशासनाः सानुमानाः सवाकोवाक्याः ।
यहां ब्राह्मणकार स्वयं कह रहे हैं कि (१) कल्प (२) रहस्य (३) ब्राह्मण (४) उपानषत् (५) इतिहास (६) अन्वाख्यान (७) पुराण (८) स्वर- (ग्रन्थ ) (९) संस्कार (ग्रन्थ) (१०) निरुक्त (११) अनुशासन (१२) अनुमार्जन और (१३) वाकोवाक्य आदि ग्रन्थ वेद नहीं हैं । जब ब्राह्मणकार स्वयं इन्हें वेद नहीं मानते, तो फिर हम क्यों इन्हें वेद माने ।
* प्रतीत होता है, इन साम्प्रतिक ब्राह्मणों से पहले, रहस्य अर्थात् आरण्यकादि और उपनिषद् ब्राह्मणों का भाग नहीं थे।
प्रातिशाख्यादि।
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