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शङ्कर बालकृष्ण दीक्षित ने ज्योतिष शास्त्र का इतिहास मराठी भाषा में लिखा है । उस में उन्होंने ब्राह्मण-ग्रन्थों के काल निरूपण का भी यत्न किया है । शतपथ ब्राह्मण २ | १ | २ | ३ || मे ऐसा पाठ है
एता (कृत्तिकाः ) ह वै प्राच्यै दिशो न च्यवन्ते | सर्वाणि ह वा अन्यानि नक्षत्राणि प्राच्यै दिशश्च्यवन्ते ||
इस पाठ में कहा है कि नक्षत्रसंसार में कभी ऐसी अवस्था थी, जब कि कृत्तिका नक्षत्र को छोड़ कर शेष सब नक्षत्र प्राची दिशा में जाते थे । दीक्षित महाशय ने ज्योतिष के अनुसार गणना कर के यह दिखाया है कि ऐसी अवस्था अनेक वार हो चुकी होगी । परन्तु अन्तिम दशा जो इस समय से पहले हो चुकी है विक्रम से लगभग ३००० वर्ष पहले हुई थी । शतपथ आदि ब्राह्मणों में इसी का उल्लेख है । अतः शतपथादि ब्राह्मण अवश्य ही इतने पुराने हैं । जो परिणाम हमने ऐतिहासिक दृष्टि से निकाला है, वही परिणाम दीक्षित महाशय ने ज्योतिष की गणनाओं से निकाला है । ब्राह्मण ग्रन्थों में और भी ऐसे अनेक पाठ हैं, जिन्हें यदि ज्योतिष की दृष्टि से देखा जांब, तो हम इसी परिणाम पर पहुंचाते हैं । अतएव ब्राह्मण-ग्रन्थों का सङ्कलन महाभारत काल में हुआ, ऐसा कहना निर्विवाद है ।
पाश्चात्य लेखकों में से रोथ, वेबर, मैक्समूलर, मैकडानल, ब्लूमफील्ड कीथ आदि सज्जनों ने भी ब्राह्मणों के काल पर लेख लिखे हैं । उन सब लेखों का आधार उन की निज की कल्पनायें हैं । कल्पनाएं प्रमाण नहीं हुआ करतीं । इस लिये हम ने उन सबको उपेक्षा-दृष्टि से देखा है । हमारा सारा कथन आर्य ऐतिह्य के अनुकूल है । ऐतिह्य को त्याग कर कल्पना का आधार लेना पाश्चात्यों को ही प्रिय है । विद्वान् इसकी अवहेलना ही करते हैं ।
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ब्राह्मण-ग्रन्थ ब्रह्मा के काल से बनने आरम्भ हुए और उन का अन्तिम संग्रह महाभारत काल में हुआ, इस विषय में भगवान् दयानन्द सरस्वती स्वामी की भी यही सम्मति हैं । वे ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के भाग्यकरणशङ्कासमाधानादिविषय के आरम्भ में लिखते हैं
यानि पूर्वैर्देवैर्विद्धर्ब्रह्माणमारभ्य याज्ञवल्क्य - वात्स्यायन जैमिन्यन्तैर्ऋऋषिभिश्चैतरेय - शतपथादीनि भाष्याणि रचितान्यासन् ।
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