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विद्यां नक्षत्रविद्यां सर्पदेवजनविद्यामेतद्भगवोऽध्येमि ।
१४- भूत विद्या
१५ - क्षत्र विद्या
१६ - नक्षत्र विद्या
१७ - सर्पदेवजनादि विद्या
३०
और मुण्डकोपनिषद् १ । ५ के प्रमाण से --
शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तम् छन्दो ज्योतिषम् इति ।
१८ - शिक्षा
१९- कल्प
२०- व्याकरण
२१ - निरुक्त
२२ - छन्दः शास्त्र
२३- ज्योतिष
तथा तैत्तिरीयारण्यक २ । ९ । के अनुसार
ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नाराशं
सीरिति ।
२४ - ब्राह्मण ( मौलिक ब्राह्मण ) ।
भाकवि को हम बहुत प्राचीन मानते हैं । कई विद्वान् उसे नवीन भी मानते हैं । पर एक बात निश्चित है । कोई विद्वान् नाटककार, और फिर भास जैसा कवि अपने पात्र के मुख से असमयोचित शब्द नहीं निकलवा सकता । प्रतिमा नाटक में जो वाक्य रावण के मुख से कहाया गया है वह महाभारत काल से सहस्रों वर्ष पहले का इतिहास बताता है । तदनुसार
रावणः – “ ... काश्यपगोत्रोऽस्मि साङ्गोपाङ्गं वेदमधीये, मानवीयं धर्मशास्त्रं, माहेश्वरं योगशास्त्रं, बार्हस्पत्यमर्थशास्त्रं, मेधातिथे न्यायशास्त्र, प्राचेतसं श्राद्धकल्पं च । प्रतिमा नाटक पृ० ७९
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२५-उपाङ्ग ग्रन्थ
२६ - माहेश्वर योगशास्त्र
२७ - बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र
२८ - न्याय शास्त्र मेधातिथि विरचित
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