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२-श्रुतत्वाच्च । १ । १ । ११ ॥ ३-मान्त्रवर्णिकमेव च गीयते । १।१ । १५॥ ४-अन्तर्याम्यधिदैवादिषु तद्धर्मव्यपदेशात् ।।२।१८॥ ५-शारीरश्चोभयेऽपि हि भेदेनैनमधीयते । १ ।२।२० ॥ ६-आमनन्ति चैनमस्मिन् । १ । २ । ३२ ॥ ७-परात तच्छ्रुतेः । २ । ३ । ४१ ॥ ८-अग्न्यादिगतिश्रुतेरिति चेन्न भाक्तत्वात् । ३।१।४॥ ९-पुरुषविद्यायामिव चेतरेषामनाम्नानात् । ३।३।२४॥ १०-शब्दश्चातोऽकामकारे । ३।४ । ३१ ॥
___ इन सूत्रों में छान्दोग्य उप०, श्वेताश्वतर उप०, तेत्तिरीय उप०, बृहदारण्यक उप०, काण्व और माध्यन्दिन शतपथ ब्रा०, जाबाल उप०, कोषीतकि उप०, बृहदारण्यक उप०, ताण्डी और पैङ्गी ब्राह्मण, तथा काठक संहिता की श्रुतियों का क्रमशः वर्णन है।
हम कह चुके हैं कि व्यास और उन के शिष्य प्रशियों ने ही ब्राह्मणों का सङ्कलन आरम्भ किया था । वेदान्त सूत्रा में इन सब के प्रमाण आ जाने से यह निश्चय होता है कि व्यास जी के जीवन काल में ही यह सङ्कलन समाप्त हो चुका था । वेदान्त पूत्र भगवान् व्यास का अन्तिम ग्रन्थ प्रतीत होता है । इस प्रकार भी यही निश्चय होता है कि ब्राह्मण ग्रन्थ महाभारत काल में ही सङ्कलित हुए।
प्रश्न-वेदान्त सूत्र ३ | ४ | ३० ॥ ३ । ४ । ३८ ॥ इत्याद में मनुस्मृति का उल्लेख है । मनुस्मृति तो बहुत नया ग्रन्थ है । पाश्रात्य लेखक इसे ईसा का प्रथम शताब्दी के समीप का मानते हैं । मनु का उल्लेख करने से वंदान्तसूत्र भी बहुत नीन हैं । ऐसे सूत्रों के साक्ष्य के आधार पर ब्राह्मण-ग्रन्थों का काल निश्चय करना क्या भूल नहीं है।
उत्तर-मनुस्मृति के कुछ श्लोक अवश्य नवीन हैं, परन्तु मूल ग्रन्थ महाभारत से सहस्रों वर्ष पूर्व का है । इस लिये ऐसी कल्पनाऐं निरर्थक हैं।
( ट ) महाभारत आदि पर्व अध्याय ६३ में कहा है
प्रतीपस्तु खलु शैव्यामुपयेमे सुनन्दी नाम । तस्यां त्रीन पुत्रानुत्पादयामास । देवापिं शन्तनुं बालकिं चेति । ४७॥
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