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प्रतीप के इस सिरे पुत्र बाहलीक का वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता हैतदु ह बल्हिकः प्रातिपीयः शुश्राव कौरव्यो राजा।
१२।९।३।३॥ यह व्यक्ति महाभारत कालीन ही है, और इसका उल्लेख करने से शतपथ भी लगभग उसी काल का हैं ।
प्रश्न-और तो सब बातें उचित प्रतीत होती हैं, पर वाल्मीकि रामायण में एक ऐसा स्थल है जो ब्राह्मण ग्रन्थों को महाभारत कालीन मानने नहीं देता। दाशरथि राम का काल महाभारत से लाखों वर्ष पहले का है । कठ, कालाप और तैत्तिराय आदि लोग जब राम के काल में थे, तो ये ब्राह्मण ग्रन्थ जो इन्हीं ऋषियों का प्रवचन हैं, महाभारत काल के कैसे हो सकते हैं । देखो रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ३२ ( दाक्षिणात्य संस्करण ) में क्या लिखा है
कौसल्यां च य आशीभिर्भक्तः पर्युपतिष्ठति । आचार्यस्तैत्तिरीयाणामभिरूपश्च वेदवित् ॥ १५ ॥ पशुकाभिश्च सर्वाभिर्गवां दशशतेन च । ये च मे कठकालापा बहवो दण्डमाण्वाः ॥ १८ ॥
उत्तर--ये श्लोक अवश्यमेव प्रक्षिप्त है । वङ्गीय वाल्मकि रामायण सर्ग ३२ में ये ऐसे हैं
सुहृन्मां परया भक्तया य उपास्ते तु देवलः । आचार्यस्तैत्तिरीयाणां तमानय यतव्रतम् ॥ १७ ॥ ये च मे वन्दिनः सन्ति ये चापि परिचारकाः । सर्वांस्तर्पय कामैस्तान् समाहूयाशु लक्ष्मण ॥ २० ॥
और पश्चिमोत्तरीय वाल्मीकि रामायण सर्ग ३५ में यह श्लोक ऐसे वैं । सुहृन्मां परया भक्तया य उपास्ते सदैव सः । आचार्यस्तौत्तिरीयाणां तमानय यतव्रतम् ॥ १७ ॥ ये च मे वन्दिनः सन्ति ये. चान्ये परिचारिकाः। सर्वास्तपर्य कामैस्तान् समाहूयाशु लक्ष्मण ॥ २०॥ इन दो श्लोकों में से पहला श्लोक तीनों पाठों में कुछ २ मिलता है। परन्तु
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