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ननु “स ह षोडशं वर्षशतमजीवत्" इति परममायुर्वेदे भूयते ।
इस का अभिप्राय १६०० वर्ष प्रतीत होता है । महामहोपाध्याय पं० गङ्गानाथ झा मेधातिथिभाध्य के अङ्गरेजी अनुवाद में लिखते हैं
___ "But we find the highest age described as 16t)) years, in the Chhandogya Upanisad (3:16. 71. where it is said the lived for sixteen hundred years."
राजेन्द्रलाल मित्र भी ऐतरेय आरण्यक के Introduction पृ० ३ के नोट में छान्दोग्य के वाक्य का अर्थ 'for sixteen hundred years' करते हैं ।
इतने बड़े २ विद्वानों का अर्थ कैसे अशुद्ध हो सकता है ?
उत्तर-"षोडश वर्षशतं" का अर्थ ११६ वर्ष ही है। पं० गङ्गानाथ झा नं अनुवाद में भूल की है। वही भूल राजेन्द्रलाल मित्र ने दिखाई है । मेधातिथि का अभिप्राय भी पं० गङ्गानाथ झा वाला नहीं है । वहां अर्थ तो लिया ही नहीं | यह कल्पना झा महाशय की अपना ही है । छान्दोग्य के उपस्थित वाक्य का अर्थ सब प्राचीन आचार्यों ने भी ११६ वर्ष ही किया है । देखो--
षोडशोत्तरवर्षशतम्-शङ्कर । षोडषाधिकं वर्षशतम्-रामानुज । षोडशोत्तरं शतम्-मध्व ।
मैक्समूलर का भी यही अर्थ है । जैमिनि उपनिषद् ब्राह्मण में Haunt 0ertel ने मी ११६ वर्ष ही अर्थ किया है। बहुत खेंच तान करके १६०० अर्थ यदि कर भी लें तो एक और आपत्ति आ पड़ती है। छान्दोग्य के इस प्रकरण में पुरुष को यशरूप मान कर उसे सवना से तुलना दी है | तानों सवनों के कुल वर्ष भी २४+४४+४८=११६ ही बनते हैं । अतः १६०० वर्ष अर्थ प्रकरणानुकूल भी नहीं झा महाशय यही नहीं, अन्यत्र भी ऐसे ही अर्थ करते हैं । मेधातिथि के शाखाभेट्निरूपक--
एक शतमध्वऍणां। वाक्य का अर्थ "a hundred Recensions'' करते हैं । परन्तु समस्त आर्य वाङ्मय में ऐसे वाक्य का अर्थ १०१ ही लिया गया है। अतः ऐसे अनुवादों के लिये शा. महाशय को ही साधुवाद । उन की भूल से हम. १.१६ से १६०० का असम्भव अर्थ नहीं मान सकते ।
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