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प्रश्न-इसी आरण्यकस्थ वाक्य के अनुवाद ( पृ० २१० टिप्पणी २ ) के एक नोट में कीथ महाशय लिखते हैं
This mention is enongla till prove that Mahidasa did not write the Aranyaka. But it is quite probable that he was the redactor of the Brahmuna, in its form of forty chapters."
क्या उनका अभिप्राय विश्वसनीय है।
उत्तर-कीथ साहेब का यह लेख सर्वथा भ्रमपूर्ण है । सब विद्वान् इस विषय में सहमत हैं कि शतपथ ब्राह्मण का प्रवचन याज्ञवल्क्य ने ही वि" था । जब उसी शतपथ ब्राह्मण मेंतदु होवाच याज्ञवल्क्यः ।
१।३।४।२१।।२।३11२१॥
२।४ । ३ । २ ॥१२ । ४ । १ । १०॥ इति ह स्माह याज्ञवल्क्यः ।
३1३।३।१०॥ स होवाच याज्ञवल्क्यः ।
१२ ।६।३।२।। इन लेखों के आने से किसी विद्वान् को शतपथ ब्राह्मण के याज्ञवल्क्य प्रोक्त होने में सन्देह नहीं हुआ, तो ऐतरेय आरण्यक में महिदास का नाम आ जाने से कीथ को सन्देह न होना चाहिये था । अनेकों पाश्चाल लेखक ऐसी ही भ्रममूलक कल्पनाएं कर के बहुत लोगों को भ्रम में डालते वा स्वयं संशय में पड़े रहते हैं । और यदि यह कहो कि ग्रन्थ-कर्ता स्वयं अपने को “विद्वान्” कैसे कह सकता है, तो इतना शब्द उसके किसी समीपवर्ती शिष्य ने धर दिया है, ऐसा मानने में कोई हानि नहीं।
प्रश्न----छान्दोग्य उपनिषद् के वाक्य का अर्थ ११६ वर्ष नहीं, प्रत्युत १६०० वर्ष है। तदनुसार महिदास ऐतरेय १६०० वर्ष जीवित रहा । न जाने उसने ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन इतने लम्बे जीवन के किस भाग में किया । अतः उस के प्रवचन किये हुए ब्राह्मण को महाभारत कालीन मानना उचित नहीं । मनु १।८३॥ पर भाष्य करते हुए मेधातिपि लिखता है
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