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यह शाखा आथर्वणों की थी |* आश्वलायन इसी शौनक का शिष्य था | शौनक शिष्य होने से ही आश्वलायन अपने श्रीतसूत्र वा गृह्यसूत्र के अन्त में
नमः शौनकाय । नमः शौनकाय ॥ लिखता है।
शाखा प्रवर्तक होने से भगवान् शौनक व्यास का समीपवर्ती ही है । अतएव महिदास ऐतरेय भी कृष्ण-द्वैपायन व्यास से अनतिदर है। इस माहेदास ऐतरेय का प्रवचन होने से ऐतरेय ब्राह्मण महाभारत-कालीन है । और इसी महिदास का उल्लेख करने से छान्दोग्य उपनिषद् वा ब्राह्मण भी महाभारत कालीन हैं । हां, उपनिषद भाग कुछ पीछे का भी हो सकता है । याज्ञवल्क्यादि ऋषियों ने एक दिन में ही तो सारा ब्राह्मण नहीं कह दिया था । इन के प्रवचन में कई कई वर्ष लगे होंगे। इस से प्रतीत होता है कि ताण्डय आदि ऋषि जब छान्दोग्यादि उपनिषदों का प्रवचन अभी कर रहे थे, तो महिदास ऐतरेय का देहान्त होचुका था। महिदास इन दुसरे ऋषियों की अपेक्षा कुछ कम ही जिया ।
जैमिनि उपनिषद. ब्राह्मण ४ । २ । ११ ॥ के निम्नलिखित वाक्य की भी यही संगाते है
एतद्ध तद्विद्वान् ब्राह्मण उवाच माहिदास ऐतरेयः। ......। स ह षोडशशतं वर्षाणि जिजीव ।
ऐतरेय आरण्यक ऐतरेय ब्राह्मण का ही अन्तिम भाग है । उस में भी महि. दास ऐतरेय का नाम आया है
एतद्ध स्म वै तद्विद्वानाह महिदास ऐतरेयः।२।१।८॥ इससे हमारा पूर्वोक्त कथन ही सिद्ध होता है।
* शौनक का शिष्य आश्वलायन, प्रधानतया ऋग्वेदी है । शौनक ने आप भी अनेक ऋग्वेद सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे थे । इस से यह सन्देह न होना चाहिये कि उसने आथर्वण शाखा का प्रवचन कैसे किया । महाभारत काल के आचार्य किसी शाखाविशेष से हा सम्बद्ध न रहते थे । शौनिक-शिष्य कात्यायन ने चारों ही वेदों पर अपने ग्रन्थ लिखे हैं।
+ देखो षड्गुरुशिष्य कृत सर्वानुक्रमणी वृत्ति की भूमिकाशौनकस्य तु शिष्योऽभूत् भगवानाश्वलायनः ।
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