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किं पुनरद्यत्वे यः सर्वथा चिरं जीवति स वर्षशतं जीवति ।
__ (महाभाष्य कीलहान सं० प्रथम भाग पृ. ५) और भगवान् कात्यायन यह क्यों लिखतासहस्रसंवत्सरममनुष्याणामसम्भवात* ॥ १३८ ॥ नादर्शनात् ॥ १४३॥
श्रौतसूत्र अध्याय ॥ अर्थात् मनुष्य का सामान्य आयु १०० वर्ष ही श्रुति आदि में दिखाई देता है । इसलिये जब बको दाल्भ्य युधिष्ठिर कालीन है, तो इसी बको दाल्भ्य का युधिष्ठिर के पूर्वज धृतराष्ट्र वैचित्रवीर्य से वार्तालाप हुआ था । अतः उसकी कथा का प्रसंग कठसंहिता में आजाने से कठब्राह्मण धृतराष्ट्र के कुछ पीछे अर्थात् महाभारत-काल में संकलित हुआ। हम कह चुके हैं कि सब ब्राह्मण ग्रन्थों का सङ्कलन एक समय में हुआ था। अतः यदि कठब्राह्मण महाभारत कालीन हो, तो दूसरे ब्राह्मण भी उसी काल में संगृहीत हुए।
(च) आरण्यक ग्रन्थ या तो ब्राह्मणों के विभाग हैं, या उन के साथ के ही ग्रन्थ हैं । तैत्तिरीय आरण्यक, तैत्तिरीय ब्राह्मण का साथी ग्रन्थ है । इस में १।९।२ ॥ पर पाराशर्य व्यास का एक मत उद्धृत किया है । तैत्तिरीय आरण्यक का प्रवक्ता तित्तिरिरी भी महाभारत कालीन था, अतः तित्तिरि का प्रवचन होने वा पाराशर्य व्यास का कथन करने से तैत्तिरीय आदि ब्राह्मण वा आरण्यक महाभारत कालीन ही हैं।
(छ) भगवान् जैमिनि सामवेद की जैमिनि संहिता का प्रवक्ता हे । यही जैमिनि पाराशर्य व्यास का प्रिय शिष्य था । इसे ही वेदव्यास ने साम शाखाओं का सबसे पहले पाठ पढ़ाया। इसी ने तलवकार-जौमिनि ब्राह्मण का प्रवचन किया था । पाराशय व्यास शिष्य होने से यह महाभारत-कालीन है और इसका प्रवचन किया हुआ
यहां मनुष्य शब्द का प्रयोग देव के मुकाबले में है। देवी सृष्टि में तो कल्प पर्यन्त ही यज्ञ होरहा है। मनुष्य में ऋषियों की गणना भी है। मीमांसासूत्र ६।७। ३१-४० ॥ का भी यही अभिप्राय है।
+ इसी तित्तिरि का उल्लेख अष्टाध्यायी ४ । ३ । १०२ ॥
तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखाच्छण् । में है । इसी के कहे हुए किन्हीं श्लोकविषेशों के सम्बन्ध में पतमाले ४ । २ । ६६ ।। पर कहना है—तिचिरिणा प्रोक्ताः श्लोका इति ।
* देखो सामविधान ब्राह्मणम्-व्यासः पाराशर्यो जैमिनये । ३ । ९ । ३ ॥
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