________________
इसी कथा का उद्देख महाभारत शल्य पर्व अध्याय ४१ में हैययौ राजंस्ततो रामो बकस्याश्रममन्तिकात् । यत्र तेपे तपस्तीनं दाल्भ्यो बक इति श्रुतिः ॥ ३२ ॥ नथा अध्याय ४२ मेंयत्र दाल्भ्यो बको राजन्पश्वर्थ सुमहातपाः । जुहाव धृतराष्ट्रस्य राष्ट्र कोपसमन्वितः ॥ १॥
तानब्रवीद्धको दाल्भ्यो विभजध्वं पशूनिति ॥५॥
इस से निश्चय होता है कि काठक संहिता में विचित्रवीर्य के पुत्र धृतराष्ट्र का वर्णन है । वह भी लगभग महाभारत-कालीन ही था । उसका उल्लेख करने वाली संहिता और तदुपरान्त प्रवचन होने वाला ब्राह्मण अवश्य महाभारत काल के हैं ।
प्रश्न-धृतराष्ट्र वैचित्रवीर्य कोई पुराकाल का राजा होसकता है । उसी का यहां वर्णन है।
उत्तर-यह कल्पना असत्य है । काठक संहिता में धृतराष्ट्र वैचित्रवीर्य के साथ जिस ऋषि "बको दाल्भ्य" *का कथन है, वह महाराज युधिष्ठिर के समय में विद्यमान था । देखो महाभारत वनपर्व, अध्याय २६
अथाब्रवीद्वको दाल्भ्यो धर्मराज युधिष्टिरम् ।
सन्ध्यां कौन्तेयमासीनमृषिभिः परिवारितम् ॥ ५॥ इत्यादि । और मनु के
ऋषयो दीर्घसन्ध्यत्वात् दीर्घमायुरवाप्नुयुः । ४।९४ ॥
इस वचन के अनुसार यद्यपि ऋषि जन दीर्घजीवी थे, तथापि उनका आयु १०० वर्ष से लेकर ३०० या ४०० वर्ष तक ही होता था । यदि इस से अधिक आयु होता तो भगवान् पतअलि यह क्यों लिखता
* सम्भवतः यही बको दाल्भ्य छान्दोग्य उपनिषद् १॥ १२ ॥ १ ॥ में स्मरण किया गया है । इसी बकोदाल्भ्य का वर्णन जै० उपनिषद् ब्राह्मण १।९ । ३ ॥ ४। ७१२ ॥ में भी है। । अपि हि भूयासि शतावर्षेम्बः पुरुषो जीवति ।
शतपथ १।९।३ । १९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org