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था | ब्रह्मवाहसुत याज्ञवल्क्य (वायुपुराण, पूर्वार्ध ६१४१ ।।) के साथ इसका जो वाद हुआ था, उसका उल्लेख वायुपुराण पूर्वार्ध अध्याय ६० श्लोक ३२-६० में भी है । वायुपुराण के पूर्वार्ध अध्याय ६० के अनुसार इस देवमित्र शाकल्य (विदग्ध ) के पूर्वोत्तर कुछ ऋग्वेदीय आचार्यों की गुरुपरम्परा का चित्र निम्नलिखित है ।
पैल (ऋग्वेदाध्यापक)
इन्द्रप्रमति
बाप्कल
मार्कण्डेय
। अग्निमाठर पाराशर याज्ञवल्क्य
सत्यश्रवाः
सत्यहित
सत्यश्रिय
देवमित्रशाकल्य रथान्तर बाष्काले भरद्वाज
मुद्गल गोलक खालीय मत्स्य शैशिरी
पैल के शिष्य प्रशष्य होने से ये शाकल्य आदि आचार्य महाभारत-कालीन हो हैं । इन में से शाकल्य का विस्तृत वर्णन शतपथ में मिलता है । और शतपथ के प्रवचन कर्ता याज्ञवल्क्य के साथ इसका संवाद. भी हुआ था, अतः याज्ञवल्क्य और शतपथ दोनों महाभारत-कालान हैं।
___ इस विषय में और भी अनेक प्रमाण दिये जा सकते हैं, पर विद्वानों के लिये इतने ही पर्याप्त होंगे।
___ (ङ) ब्राह्मण ग्रन्थों का संकलन महाभारत काल में हुआ, इस में एक और प्रमाण है । काठक संहिता १० ॥ ६ ॥ के आरम्भ का यह वचन है
नैमिष्या वै सत्रमासत त उत्थाय सप्तविंशतिं कुरुपञ्चालेषु वत्सतरानवन्वत तान्बको दाल्भिरब्रवीयमेवैतान् विभजध्वमिममहं धृतराष्ट्रं वैचित्रवीर्यं गमिष्यामि ।
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