________________
कोषान्तर्गत वाक्य क्रम । वाक्यों के संग्रह होजाने पर उनको क्रम देने का काम बज कठिन था । बहुत विचारानन्तर यही निश्चित किया गया कि यदि किसी शब्द का निर्वचन ब्राह्मण ग्रन्थों में विद्यमान है, तो वह आरम्भ में धरना चाहिये । अन्ततः ऐसा किया भी गया है । तत्पश्चात् अनेक सदृश वा समानार्थ वाक्य एकत्र रखे गये हैं । यह शैली ब्राह्मण-ग्रन्थों के भावी सम्पादकों के लिये बड़ी उपयोगी होगी, एक ही दृष्टि से उन्हें तुल्य-वाक्यों वा भ्रष्टपाठों का ज्ञान होजायगा ।
माडर्न रीव्यू अकतूबर सन् १९२४ में हमारे कोष की समालोचना करते हुए पं० विधुशेखर भट्टाचार्य ने लिखा था कि 'ये वाक्य भी अकारादि क्रम से देने चाहिये थे ।' यह प्रस्ताव सर्वथा अनुचित प्रतीत होता है । हमारा पूर्व-प्रदर्शित अभिप्राय इससे पूर्णतया सिद्ध नहीं होता था । हमारे सामने यह विचार आया था, परन्तु अतिउपयोगी न होने से इसको कार्य में नहीं लाया गया ।
कोष के सम्बन्ध में इतना लिखने के उपरान्त ब्राह्मणों के इतिहास सम्बन्ध में भी ब्राह्मणों की भूमिका रूप में कुछ लिखना आवश्यक है ।
अनुसन्धान विभाग दयानन्द ऐंगलों वैदिक कालेज, लाहौर ।।
२० अगस्त १९२५
भगवद्दत्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org