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विप्परियासणा-विप्फुर
पाइअसद्दमण्णवो विपरियाणा स्त्री [विपर्यासना] व्यत्यय विष्पवर न [दे] भल्लातक, भिलाँवा (द ७, विप्पुस पुन. देखो विप्पुः 'असुइस्स विप्पुकरना (निचू ११)।
सेणवि' (पिंड १६५)। विप्परुद्ध वि[विप्ररुद्ध] तिरस्कृतः 'हयनिह विप्पवस अक [विप्र + वस् ] प्रवास में
| विप्पेक्ख सक [विप्र + ईक्ष ] निरीक्षण यविप्परुद्धो दूओ' (पउम ८, ८५)
जाना, देशान्तर जाना। संकृ. विप्पवसिय करना, देखना । वकृ. विपेक्खंत (पएह १, विप्पल देखो विप्प = विप्र (प्राकृ ३७)। (पाचा २, ५, २, ३)
१-पत्र १८) विप्पलंभ सक विप्र + लभ ] ठगना । विप्पवसिय वि [विप्रोषित देशान्तर में विप्पेक्खिअ वि [विप्रेक्षित ] निरीक्षित विप्पलंभेमि (स ५०६)।
गया हुमा, प्रवास में गया हया (णाया (पएह २, ४--43 १६१, भग ६, ३३-- विप्पलंभ [विप्रलम्भ] १ वञ्चना, ठगाई २-पत्र ७६, १,७–पत्र ११५)
पत्र ४६६)। (उप २४)। २ शृङ्गार की एक अवस्था--
विष्पवास [विप्रवास] प्रवास, देशान्तर- विष्पोसहि स्त्री [विप्रौपधि आध्यात्मिकजिसमें उत्कृष्ट अनुराग होने पर भी प्रिय गमन (प्रति १००)
शक्ति-विशेष, जिसके प्रभाव से योगी के समागम नहीं होता (सुपा १६४)। ३ विप
विप्पसन्न वि [विप्रसन्न] १ विशेष प्रसन्न, विष्ठा और मूत्र का बिन्दु पोषधि का काम र्यास, व्यत्यय, वैपरीत्य (धर्मसं ३०४)। विरह,
खुश। २ प्रसन्न-चित्त का मरण (उत्त ५, करता है (पराह २, १--पत्र ६६; प्रौपः वियोग (कप्पू) । १८)
विसे ७७६; संति २) विप्पलंभ वि [वित्रलम्भक प्रतारक, विपमा प्रकाविप्रसाफैलना। भका. विष्फंद प्रक [वि + स्पन्दू इधर-उधर ठगनेवाला (मृच्छ ४७) -
'बहवे हत्थी..."दिसो दिसं विप्पसरित्था' चलना, तड़फना । विप्पलं भअ वि [विप्रलम्भित] १ प्रतारित।
वकृ. विष्फंदमाण २ विरहित (सुपा २१६) (पि ५१७) ।
(प्राचा)। विप्पल वि [विप्रलब्ध] वञ्चित, प्रतारित | विप्पसाय सक [विप्र + सादय ] प्रसन्न विष्फंदिअ वि [विस्पन्दित ] इधर-उधर (चारु ४५: सं ४१८, ६८०)। करना । विप्पसायए (पाचा १, ३, ३, १) भटका हुआ, परिभ्रान्तः
'खज्जंतेरण जलथले सकम्मविप्पलय पुंन [दे] विविधता, विचित्रताः । विप्पसीअ अक [विप्र+स] प्रसन्न होना। 'तंद सो सर्व जाणइ संबंधविप्पलय' विप्पसीएज (उत्त ५, ३०, सुख ५, ३०)।
विप्फंडि(?दि एण जीवेणं ।
तिरियभवे दुक्खाई छुहतराहा(धर्मबि १२७)।
विप्पय वि [विप्रहत] आहत, जखमी (सुर विप्पलविद (शौ) न [विप्रलपित] निरर्थक
ईणि भुत्ताई। (पउम ६५, ५२)। ६, २२१)। वचन, बकवाद (स्वप्न ८१)
dिered विप्रभाजिता विभक्त विष्फरिस पृ [विस्पर्श] विरुद्ध स्पर्श (प्राप्र)। विप्पलाअ देखो विपलाअ । भूका, विप्पला- हमा (पीप)।
विप्फाडग वि [विपाटक] चीरनेवाला, इत्था (विपा १, २-पत्र २६)। वकृ. विष्पहीण वि[विहीण] रहित, वजित विदारक (पएह १, ४-पत्र ७२) । विप्पलादमाण (णाया १,१-पत्र ६५) Mविप्पहण (सं ७७; स १६१ पि १२० विप्फाडिअ वि [दे. विपाटित] नाशित विप्पलाअविप्रलाप] १ परिवेदन, ५०३) विष्पलावरोना, कन्दनः 'अविनोगो विप्प-विप्पावग वि [दे] हास्य-कर्ता, उपहास विष्फारिय वि[विर फारित] १ विस्तारित लानो (तंदु ८७ रयण ६४)। २ निरर्थक
करनेवाला (सुख १, १३)।
| (उप पृ १५२) । २ विकासित (सुपा ८३)। वचन, बकवाद (उत्त १३, ३३)। ३ विरहाविप्पिअ पुंन [विनिय] १ अप्रिय, अनिष्ट
विप्फाल सक [दे] पूछना, पृच्छा करना। लाप (पउम ४४, ६८)
(णाया १,१८-पत्र २१३; गा २५०; से
२०१७ विष्फालेइ (वव १) विप्पलिचिअ न विपरिकुश्चित] गुरु- ४, ३६ हे ४, ४२३) । २ अपराध, गुनाह विष्फाल देखो विकाल । संकृ. विष्फालिय वन्दन का एक दोष, संपूर्ण वन्दन न करके
(पान) । °आरय वि [ कारक] १ अप्रियबीच में बातचीत करने लग जाना (पव २
(राज)। कर्ता । २ अपराध-बाला (हे ४,३४३) । गाथा १५२)
विप्फाल पुंदे पृच्छा, प्रश्न (वव १ टी) विपिडिअ वि [दे] नाशित (दे ७, ७०)। विष्फालणास्त्री दे] ऊपर देखो (वव १ टी)। विप्पलंपग वि [विप्रलोपक] लूटनेवाला, लुटेरा (पग्रह १, ३-पत्र ४४)।
विप्पीइ स्त्री [विप्रीति] अप्रीति (पएह १, विष्फालिय देखो विष्फारिय (राज)। विप्पलोहण वि [विप्रलोभन] लुभानेवाला ___३-पत्र ४२)
विप्फुड वि [विस्फुट] स्पष्ट, व्यक्त (रंभा)।(स ७६३)।
विप्पु स्त्री [विप्रष] बिन्दु, अवयव, अंशः विप्फुर प्रक [वि + स्फुर ] १ होना। २ विप्पव [विप्लव १ देश का उपद्रव, | 'मुत्तपुरीसारण विप्पुसा विप्पा' (औपः विसे विकसना। ३ तड़फड़ना। ४ फरकना, क्रान्ति । २ दूसरे राजा के राज्य आदि से ७८१)।
हिलना । विष्फुरइ (संबोध ३४. काल; भवि)। भय (हे २,१०६)। ३ शरीर की विसंस्थु- | विप्पुअ वि [विप्लत] उपद्रुत, उपद्रव-युक्त वकृ. विष्फुरंत (उत्त १६, ५४३ पउम लता, अस्वस्थता (कुमा)
६३, ३)।
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