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पाइअसद्दमहण्णवो
विप्पगरिस-विपरियास
विप्पगरिस पृ [विप्रकप] दूरी, आसन्नता विप्पडिधाय पुं[विप्रतिघात] प्रतिबन्ध, विप्पमुंच सक [विप्र + मुच् ] छोड़ना, का अभाव; 'देसाइविप्पगरिसा' (धर्मसं - अटकाव (णाया १, १६–पत्र २४५)। मुक्त करना । कर्म. विप्पमुच्चइ (उत्त २५, १२१७)।
| विप्पडिपह पुं [विप्रतिपथ] विपरीत मार्ग ४१)। विपासक मागण, नि + पालय् ] (उप १०३१ टी)।
विप्पमुक्त वि [विप्रमुक्त विमुक्त (प्रौपः सुर नाश करना । विप्पगालइ (हे ४, ३१; पि विप्पडिवण्ण देखो विप्पडिवन्न (पव ७३ | २, २३७ सुपा ४४५) । ५५३)। टी)
विप्पय न [दे] १ खल-भिक्षा । २ दान । ३ विप्पगालिअ वि [नाशित, विप्रगालित] विपडिवत्ति स्त्री[विप्रतिपत्ति] १ विरोध वि. वापित । ४ पुं. वैद्य (दे ७, ८६) । नाशित (कुमा)
। (पिसे २४८०) । २ प्रतिज्ञा-भंग (उप ५१९) विप्पयार सक [विप्र + तारय ] ठगना । विप्पगिट्ट वि [विप्रकृष्ट] १ दूरवर्ती, दूरी पर विपडिवन्न वि [विप्रतिपन्न] १ जिसने विप्पयारंति, विप्पयारेमि (कुप्र ६:त्रि ८८)। स्थित (स २२६)। २ दीर्घ, लम्बा: 'णाइ- विशेष रूप से स्वीकार किया हो वह; "मिच्छ- कर्म. विप्पयारीग्रइ (कुप्र ४४) । संकृ. विप्पगिठेहि श्रद्धाणेहि (गाया १, १५) । २.पजवेहिं परिवड्ढमाणेहिं २ मिच्छत्तं विप्प- विप्पआरिअ (त्रि ८८)। विप्पचय सक [विप्र + त्य] छोड़ना, डिवन्ने जाए जाए यावि होत्था' (णाया १, विप्पयारणा स्त्री [विप्रतारणा] वंचना, त्याग करना । कृ. विप्पचइयव्व (तंदु १३–पत्र १७८) । २ विरोध-प्राप्त, विरोधी ठगाई (कुप्र ४४; मोह ६४) ३५) बना हुआ (पाचा १, ८, १, ३, सूअ १, ३,
विप्पयारिअ वि [विप्रतारित] वञ्चित, ठगा विप्पञ्चय पुं[विप्रत्यय] १ संदेह, संशय
हुआ (मोह १०१)। (उत्त २३, २४) । २ वि. प्रत्यय-रहित,
विप्पडिवेअ) सक [विप्रति + वेदय ] विप्पडिवेद । १ जानना। २ विचारना।
विप्परद्ध वि [दे] विशेष पीड़ित; 'करचरणअविश्वसनीय (उव)। विप्पडिवेएइ (प्राचा १, ५, ४, ४), विप्पडि
दंतमुसलप्पहारेहिं विप्परखें समाणे तं चेव विप्पजढ वि [विप्रहीण] परित्यक्त (गाया वेदेति (सूत्र २, १, १५)।
महद्दहं पाणीयं पादेउं (?पाउं) समोयरेति' १, २--पत्र ८४: पंचा १४, ६; पव विप्पडिसिद्ध वि [विप्रतिषिद्ध] आपस में
(णाया १,१-पत्र ६४) । देखो परद्ध ।। १२३)। विप्पजह सक विप्र + हा] परित्याग करना,
असंमत (उवर ३) ।
विप्परामुस देखो विपरामुम; 'प्रावंती केयावती
लोगंसि विप्परामुसंति प्रढाए अट्ठाए वा. छोड़ देना । विप्पजहइ, विप्पजहंति, विप्पजहे विष्णडीव वि [विप्रतीप] प्रतिकूल (माल
एएसु चेव विप्परामुसंति' (आचा)। (कसः उवाः सूत्र २,१,३८, उत्त ८:४)। १७७)।भवि विप्पहिस्सामो (पि ५३०)। वकृ.
विप्परिणम देखो विपरिणम । भवि. विप्परिविप्पण? वि [विप्रनष्ट] पलायित, नाश
णमिस्सति (भग)। विप्पजहमाण (ठा २, २–पत्र ५६ पि प्राप्त (स ३५३; उवा)।
विप्परिणय देखो विपरिणय (भग ५,७ विप्पणम | सका विष+ णम्] १ नमना। ५००) । संकृ विप्पजहित्ता, विप्पजहाय
विप्पणव २ अक. तत्पर होना । विप्पणवंति (उत्त २६, ७३; भग)। कृ. विप्पजणिज्ज,
टी--पत्र २३६; काल)। विप्पजहियव्व (गाया १,१-पत्र ४८
(सून १, १२, १७)। वकृ. विप्पणमंत विप्परिणाम देखो विपरिणाम = विपरि + पि ५७१गाया १,१८-पत्र २४१)। (राज)।
णमय । विप्परिणामंति, विप्परिणामेति विप्पजह न [विप्रहाण] परित्यागों सेणिया
विप्पणस्स अक विप्र + नश ] नष्ट होना, (प्राचा) । संकृ. विपरिणामइत्ता (भग)।
विनाश-प्राप्त होना । विप्पणस्सइ (कस) विप्परिणाम देखो विपरिणाम = विपरिणाम स्त्री [श्रोणका] बारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का
भवि. विप्पणस्सिहिइ (महानि ४)एक परिकम--अंश-विशेष (सम १२६)
(प्राचाः भग ५, ७ टी-पत्र २३६) विप्पजणा । स्त्री [विप्रहाणि] प्रकृष्ट
विप्पणास ' [विप्रणाश] विनाश (धर्मवि विष्परिणामिय देखो विपरिणामिय (भग ६, विप्पजहन्ना त्याग, परित्याग (उत्त २६, ५७)
१--पत्र २५०)। ७३, औपः विसे ३०८६; परण ३६-पत्र
विप्पतार सक [विप्र+तारय ] ठगना। विप्परियास सक [विपरि + आसय ] ८४७)
विप्पतारसि (धर्मवि १४७)। कम. विप्पता- व्यत्यय करना, उलटा करना । विप्परियासेइ विप्पजहिय वि [विप्रहीण] परित्यक्त (पि
रीअदि (शौ) (नाट--शकु ७५)। (निघू ११)। वकृ. विपरियासंत (निचू ५६५)
विप्पदीअ) (शौ) देखो विप्पडीव (नाट- ११)। विप्पजोग देखो विप्पओअ (चंड)
विप्पदीव । मालती १०६; ११६ मृच्छ विप्परियास पुं [विपर्यास] १ व्यत्ययः ४८)।
विपरीतता (प्राचाः सूप्र १, ७, ११)। २ विप्पाड अक विपरि +इ] विपरीत होना, विप्पमाय पुं [विप्रमाद] विविध प्रमाद परिभ्रमण (सूत्र १, १२, १३, १, १३: उलटा होना । विप्पडिएइ (सूत्र १,१२,१०) (सूअ १, १४, १)।
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