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७६२ पाइअसहमहण्णवो
विप्फुरण-विभमण विप्फुरण न [विस्फुरण] १ विजृम्भरण, विब्बोअ ' [विव्योक] विलास, लोलाः (पव २२६ टी)। २ ज्ञान-विशेष (सूत्र २, विकास (श्रावक २४५; सुर २, २३७) । २ 'हेला ललिअं लीला विब्बोनो विन्भमो २, २५)। ३ विराधना, खण्डन । ४ मैथुन, स्पन्दन, हिलन (गउड) ।
विलासो य' (पान)। देखो बिब्बोअ।। अब्रह्म (पएह १. ४-पत्र ६६)। देखो विप्फुरिय वि [विस्फुरित विजृम्भित (सुपा |
विभंग देखो विभंग (भगः पव २२६, कम्म विहंग = विभंग :२०४: सरण)
४,१४, ४०)
विभंगु पुंस्त्री [दे] तृण-विशेषः 'एरंडे कुरुविंदे विभंगि वि [विभङ्गिन] विभंग-ज्ञानवाला करकरसुंठे तहा विभंगू य' (पएण १-पत्र विप्फुल्ल वि [विफुल्ल] विकसित, प्रफुल्ल; (भग) ।
३३) 'तह तह सुबहा विप्फुल्लगंडविवरंमुही हसई'
विभंत वि [विभ्रान्त] १ विशेष भ्रान्त, विभंगुर वि [विभङ्गर] विनश्वर (सुपा (वज्जा ४४) विष्फोड [विस्फोटक] फोड़ा (नाट
चक्कर में पड़ा हुआ (पाचा १, ६, ४, ३)। ६०५, प्रासू ६६; पुप्फ २२०)
२ पुं. प्रथम नरक-भूमि का सातवा नर- विभंज सक [वि + भन] भांग डालना, शकू २७; पि ३११; प्राप्र)
केन्द्रक-स्थान-विशेष (देवेन्द्र ४) । तोड़ना । संकृ. विभंजिऊण (काल) ।। विफद देखो विप्फंद। वकृ. विफंदमाण
विभंस[विभ्रंश अतिपात, हिंसा, प्राण-| विभंतडी (अप) स्त्री [विभ्रान्ति] विशिष्ट (प्राचा १, ४, ३, ३)। वियोजन (राज)।
भ्रम (हे ४, ४१४) विफाल सक [वि + पाटय ] १ विदारण विभट्ठ वि [विभ्रष्ट] विशेष भ्रष्ट (प्रति विभग्ग वि [विभन्न भाँगा हुआ, खण्डित करना। २ उखाड़ना। संकृ. विफालिय
(पउम ११३, २६) (प्राचा २, ३, २, ६) विब्भम पुं [विभ्रम] १ विलास (पानः |
विभज सक [वि+ भज] १ बाटना, विफुट्ट अक [वि + स्फुट ] फटना। वकृ. गउड ५५१९७कुमा)। २ स्त्री की शृंगार
विभाग करना। २ विकला से प्राप्त करना, चितंति किं विफुटुंत चंडबंभंडयस्स रखो' | के अंग-भूत चेष्टा-विशेष (गउड; गा ५)। ३
पक्षतः प्राप्ति करना- विधान और निषेध (सुपा ४५)। चित्त-भ्रम, पागलपन (राय)। ४ शृगार
करना । कर्म. विभज्जति (तंदु २)। कवकृ. विफुरण देखो विप्फुरण (सुपा २५) संबन्धी मानसिक अशान्ति (कप्पू)। ५ विशेष
विभज्जमाण (णाया १, १-पत्र ६०; विबंधक वि[विबन्धक] विशेष रूप से भ्रान्ति (सुपा ३२७ गउड)। ६ संदेह । ७
उप २६४ टी) । संकृ. विभजिऊण (धर्मवि बांधनेवाला (पंच २, १) आश्चर्य । ८ शोभा (गउड)। ६ भूषणों का
१०५)। देखो विभज्ज । विबद्ध वि [विबद्ध] १ विशेष बद्ध । २ | स्थान-विपर्यय (कुमा)। १० रावण का एक
विभजण न [विभजन] विभाग, भाग-बँटाई माहित (सूत्र १, ३, २, ६) सुभट (पउम ५६, २६)। ११ मैथुन,
(पव ३८)।विबाहग वि [विबाधक] विरोधी, बाधक
अब्रह्म । १२ काम-विकार (पएह १,४-पत्र
विभज्ज देखो विभज। विभज्ज (कम्म ६, ६६) (धर्मसं ४६६) विबुद्ध वि [विबुद्ध जागृत (सिरि ६१५)। विब्भल वि [विह वल] १ व्याकुल, व्यग्र
विभजवाद । पुं[विभज्यवाद] स्याद्वाद, विबुध (शौ) नीचे देखो (पि ३६१)।
(सुर ८, ५७; १२, १६८)। २ व्यासक्त,
विभजवाय अनेकान्तवाद, जैन दर्शन विबुह पुं[विवुध] १ देव, त्रिदश (पान, तल्लीन । ३ पृ. विष्णु, नारायण (षड् ४०;
(धर्मसं १२१, सून, १४, २२; उबर हे २, ५८) 10 सुर १, ४५)। २ पण्डित, विद्वान् (सुर १, ४५)। चंद पुं ['चन्द्र] एक प्रसिद्ध | विब्भलिअ वि [विह वलित] व्याकुल किया
विभत्त वि [विभक्त] १ विभाग-युक्त, बॉटा जैनाचार्य (सुपा ६५८) पहुj [प्रभु] हुआ (कुमा)।
हुपा (नाट--शकु ४६; कप्प)। २ भिन्न इन्द्र (सुर १, १७२)। "पुर न [पुर] स्वर्ग लिम्भवण न [दे] उपधान, ओसीसा (दे ७,
अलग, जुदाः 'विभत्तं धम्मं झोसेमाणे (प्राचा: (सम्मत्त १७५)।
कप्पः महा)। ३ न. विभाग (राज)। विबुहेसर पु[विबुधेश्वर इन्द्र (श्रावक ५:) विब्भाडिय वि [दे] नाशित (भवि)।
विभत्ति स्त्री [विभक्ति] १ विभाग, भेद विबोच पु[विबोध] जागरण (पंचा १, ४२) विब्भार देखो वेभार (पि २६६)।
(भग १२, ५.-पत्र ५७४, सूअनि ६६ विबोहग देखो विबोहय (कप्प)
विभिडि पुंदे] मत्स्य की एक जाति उत्तनि ३६); 'लोगस्स पएसेसु प्ररणंतरपरंपराविबोहण न [विबोधन] ज्ञान कराना; | (विपा १, ८ टी-पत्र ८३)।
विभत्तीहि (पंच २, ३६, ४०, ४१)। २ 'प्रबुहजणविबोहणकरस्स': (सम १२३) विभेइअ वि [दे] सूई से विद्ध (दे ७,
व्याकरण-प्रसिद्ध प्रत्यय-विशेष (ोघभा ४ विबोहय वि [विबोधक] १ विकासक; ६७)।
चेइय २६८ सूअनि ६६)। 'कुमुयवरणविबोहयं' (कप्प ३८ टि)। २ विभंग ' [विभङ्ग] १ विपरीत अवधिज्ञान, विभमण न [दे] उपधान, प्रोसीसा (दे ७. ज्ञान-जनक (विसे १७४) ।
| वितथ अवधिज्ञान, मिथ्यात्व-युक्त अवधिज्ञान । ६८ टी)।
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