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'पुलय पुं [लय अंजुवि [ऋजाणं तह मुर
पाइअसहमहण्णवो
अंजणइसिआ अंत सुरमा बनता है ऐसा एक पार्थिव द्रव्य (जी रूप विनय, प्रणाम (प्रासू ११० स्वप्न ६३)। अंडय [दे, अण्डज] मछली, मत्स्य (दे ४)। मांलको प्रांजना (सूम १,६)। १० उड पु पुट] हाथ का संपुट (महा)।। १, १६)। तैल मादि से शरीर की मालिश करना (राज)। करण न [करण] विनय-विशेष, नमन | अंडाउय वि [अण्डज] अण्डे से पैदा होने११ लेप (स ५८२)। १२ रत्नप्रभा पृथिवी (दे)। "पग्गह [प्रग्रह] १ नमन, हाथ
वाला (पउम १०२, ९७)। के खर-काएड का दशव अंश-विशेष (ठा १०)। जोड़ना (भग १४, ३)। २ संभोग-विशेष
अंत पुं [अन्न] १ स्वरूप, स्वभाव (से ६, केसिया स्त्री [ केशिका] वनस्पति-विशेष | (राज)।
१८)। २ प्रान्त भाग (से ६, १८)। ३ (पएण १७, राय)। जोग पुं[योग]. अंजस वि (दे) ऋजु, सरल (दे १, १४)।
सीमा, हद (जी ३३)। ४ निकट, नजदीक कला-विशेष (कप्प)। दीव पुं[द्वीप] अंजिय वि [अञ्जित प्रांजा हुमा, अंजन-युक्त
(विपा १,१)। ५ भग, विनाश (विसे ३४५४, द्वीप-विशेष (इक)। 'पुलय पुं [पुलक] | किया हुआ ( से ६, ४८)।
जी ४८)। ६ निर्णय, निश्चय (ठा ३)। ७ एक जाति का रत्न (ठा १०)। २पर्वत-विशेष | अंजु विऋजु] १ सरल, भकुटिलः 'अंजुधम्म प्रदेश, स्थान; 'एगंतमंतमवक्कमई' (भग ३, का एक शिखर (ठा ८)। पहा स्त्री
जहा तच्चं, जिणाणं तह सुणेह में' (सूत्र १, २)। ८ राग और द्वेषः 'दोहिं अंतेहि [प्रभा] चौथी नरक-पृथिवी (इक)। रिट्ठ ११ , १, ४, ८)। २ संयम में तत्पर, अदिस्समायो' (माचा)। ६ रोग, बीमारी पुं ["रिष्ट] इन्द्र-विशेष (भग ३, ८)।
संयमी; 'पुट्ठोवि नाइवत्तइ अंजू' (प्राचा)। (विसे ३४५४)। १० वि. इन्द्रियों को प्रति'सलागा स्त्री [शलाका] १ जैन-मूर्तिकी ३ स्पष्ट, व्यक्त (सूत्र १, १)।
कूल लगनेवाली चीज, असुन्दर, नीरस वस्तु प्रतिष्ठा । २ अंजन लगाने की सलाई (सूम १, अंजआ स्त्री अञ्जका भगवान अनन्तनाथ (पएह २, ४)। ११ मनोहर, सुन्दर (से ६, ५) । "सिद्ध वि [सिद्ध] आंख में अंजन___ की प्रथम शिष्या (सम १५२)।
१८) । १२ नीच, क्षुद्र, तुच्छ (कप्प)। कर विशेष लगाकर अदृश्य होने की शक्तिवाला
अंजू स्त्री [अ] १ एक सार्थवाह की वि [कर उसी जन्म में मुक्ति पानेगला (निसी) । सुन्दरी स्त्री [सुन्दरी] एक सती
कन्या (विपा १, १०)। २ 'विपाकश्रुतं का (सूत्र १, १५)। करण वि [करण] नाशक स्त्री, हनूमान् की माता (पउम १५, १२)।
एक अध्ययन (विपा १,१)। ३ एक इन्द्राणी (पएह १, ६)। काल पुं [काल] १ अंजणइसिआ स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, श्याम (ठा ८)। ४ 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक मृत्यु काल । २ प्रलय काल (से ५, ३२)। तमाल का पेड़ (द १, ३७) । अध्ययन (णाया २)।
'किरिया स्त्री [क्रिया] मुक्ति, संसार का अंजणई स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पएण)। अंठि पुन [अस्थि] हड्डी, हाड़. (षड्);
अन्त करना (ठा ४, १)। कुल न [कुल] अंजणईस न [दे] देखो अंजणइसिआ
'अहिप्रमहुरस्स अंबस्स अजोग्गदाए गएठी न क्षुद्र कुल (कप्प)। गड वि [कृत् ] उसी (दे १, ३७ । भक्खीमदि' (चारु ६)।
जन्म में मुक्ति पानेवाला (उप ४६१)। अंजणग देखो अंजण। अंड । न [अण्ड, क] १ अंडा (कप्प
'गडदसा स्त्री [कृद्दशा] जैन अंग-ग्रंथों में अंजणा स्त्री [अंजना] १ हनूमान की माता अंडअ औप) । २ अंड-कोश (महानि ४)।
पाठवा अंग-ग्रंथ (अणु १)। 'चर वि (पउम १, ६०)। २ स्वनाम-ख्यात चौथी अंडग | ३ 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का तृतीय [चर] भिक्षा में नीरस पदार्थों की ही खोज नरक-पृथिवी (ठा २, ४)। ३ एक पुष्करिणी
अध्ययन (गाया १,१)। कड करनेवाला (पएह २,१)। (जं ४)। तणय पुं [तनय हनूमान्
वि [कृत] जो अण्डे से बनाया | अंत वि [अन्त्य अन्तिम, अन्त का (परण (पउम ४७, २८)। सुन्दरी स्त्री [°सुन्दरी]
गया हो; 'बंभरणा माहणा एगे, पाह | १५)। क्खरिया स्त्री [rक्षरिका] १ हनूमान् की माता (पउम १८, ५८)।
अण्डकडे जगें (सूत्र १, ३)। ब्राह्मी लिपि का एक भेद (परण १)। २ अंजणाभा स्त्री [अअनाभा] चौथी नरक
बंध पुं[बन्ध] मन्दिर के शिखर कला-विशेष (कप्प)। पृथिवी (इक)।
पर रखा जाता अण्डाकार गोला अंत न [अन्त्र] प्रांत (सुपा १८२, गा अंजणिआ स्त्री [दे] देखो अंजणइसिआ (गउड)। वाणियय पुं[वाणि- ५८५ )। (दे १, ३७)।
जक अण्डों का व्यापारी (विपा | अंत [अन्तर] मध्य में, बीच में (हे १, अंजणी स्त्री [अञ्जनी] कजल का प्राधार
। १४) । °उर न [पुर] देखो अंतेउर पात्र (सूत्र १, ४)।
अंडग अण्डज] १ अण्डे से पैदा (नाट)। करण, करण [करण] मन, अंजलि, ली पुंस्त्री [अञ्जलि] १ हाथ का |
अंडय ।
होनेवाले जंतु, पक्षी, सांप, हृदय; 'करुणारसपरवसंतकरणेण' (उप ६ संपुट (हे १, ३५)। एक या दोनों संकुचित मछली वगैरह (ठा ३, १८)। टी; नाट) । ग्गय वि [गत] मध्यवर्ती, हाथों को ललाट पर रखना; 'एगेण वा दोहि
२ रेशम का धागा। ३ रेशमी वस्त्र बीचवाला (हे १, ६०)। द्धा स्त्री [धा] वा मउलिएहि हत्यहिं रिगडालसंसितेहिं अंजली
(उत्त २६)। ४ शण का वस्त्र १ तिरोधान । २ नाश (पाचू)। "द्धाण न भएणति' (निचू)। ३ कर-संपुट, नमस्कार
(सूम २, २)।
[धान अदृश्य होना, तिरोहित होना
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