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अंगवलिज-अंजण
पाइअसहमहण्णवो अंगवलिज्ज न [दे] शरीर को मोड़ना (दे १, | अंगुत्थल न [दे] अंगुठी, अंगुलीय (दे १, अंघो अ [अङ्ग] भय-सूचक अव्यय (प्रति ३६;
प्रयौ २०५)। अंगार पुं [अङ्गार] १ जलता हुआ कोयला अंगुब्भव वि [अङ्गोद्भव] संतान, बच्चा अंच सक [कृष् ] १ खींचना । २ जोतना, (हे १, ४७) । २ जैन साधुओं के लिए भिक्षा (उप २६४) ।
चास करना। ३ रेखा करना । ४ उठाना । का एक दोष (प्राचा) । मग पुं[मर्दक] अंगुम सक [पूरय ] पूत्ति करना, पूरा अंचइ (हे ४,१८७) । संकृ.अंचेइत्ता (प्राव)। एक प्रभव्य जैन-आचार्य (उप २५४) । वई करना । अंगुमइ (हे ४, ६८) । | अंच सक [अञ्च् ] पूजना, पूजा करना । स्त्री। बता] सुसुमार नगर के राजा धुन्धुमार | अंगमिय विपरिता पूर्ण किया हमा|
अंचए (वि)। की एक कन्या का नाम (धम्म ८टी)। (कुमा)।
अंच सक [अन् ] जाना । अंचति (पंचा अंगारग।[अङ्गारक] १-२ ऊपर देखो
अंगुरि, री स्त्री [अगुलि, ली] उंगली १६, २३); 'अञ्चु गइ पूयणम्मि य', अंगारय । (गा २६१)। ३ मंगल-ग्रह (परह (गा २७७)।
'सोधीए पारमंचई' (बृह ४)। १, ५) । ४ पहला महाग्रह (ठा २) । ५ राक्षस-वंश का एक राजा (पउम
अंगुल न [अङ्गुल] यव के आठ मध्यभाग | अंचल पुं [अञ्चल] कपड़े का शेष भाग
के बराबर का एक नाप, मान-विशेष (भग ३, (कुमा)। ५, २६२)।
७)। पोहत्तिय वि [पृक्त्व क] दो से अंचि पुं [अश्चि] गमन, गति (भग १५)। अंगारिय वि [अङ्गारित] कोयले की तरह
लेकर नव अंगुल तक का परिमारण वाला अंचि पुं[आश्चि] आगमन, पाना (भग १५)। जला हुआ, विवणं (नाट; प्राचा)।
अंचिय वि [अश्चित] १ युक्त, सहित (सुर अंगाल देखो अंगार; 'निदड्ढंगालनिभं (पिंड
(जीव १)। अंगुलि स्त्री [अङ्गुलि] उंगली (कुमा।)।
४, ६७)। २ पूजित (सुपा २१८)। ३ प्रशस्त, ६७५)। अंगालग देखो अंगारग (राज)।
कोस पुं[कोश] अंगुलि-त्राण, दास्ताना
श्वाचित (प्रासू १८)। ४ न. एक प्रकार का (राय)। °फोडण न [°स्फोटन] उंगली
नृत्य (ठा ४, ४; जीव ३)। ५ एक बार का अंगालियन [दे] ईख का टुकड़ा (दे १, फोड़ना, कड़ाका करना (तंदु)।
गमन (भग १५)। २८)।
यचि पुं[श्चि] १ अंगालिय देखो अंगारिय (प्राचा)। अंगुलिअन [अगुलीयक] अंगुठी
गमनागमन, आना-जाना (भग १५)। २
ऊंचा-नीचा होना (ठा १०)। अंगि [अङ्गिन] १ प्राणी, जीव (गण | अंगुलिजक (दे ५, ६; कप्प; पि २५२) ।
अंचियरिभिय न अश्चितरिभित] एक ८)। २ वि. शरीरवाला। ३ अंग-ग्रन्थों का | अंगुलिज्जग )
तरह का नाच ( राय ५३)। ज्ञाता (कप्प)।
अंगुलिणी स्त्री [दे] प्रियंगु, वृक्ष-विशेष (दे अंचिया स्त्री [अश्विका आकर्षण (स१०२)। अंगिरस न [अङ्गिरस एक गोत्र, जो गोतम१, ३२)।
अंछ सक [कृष्] १ खींचना; 'अंछति वासुगोत्र की शाखा है (ठा ७)।
अंगुली स्त्री [अङ्गली] देखो अंगुलि (कप्प)। देवं प्रगडतडम्मि ठियं संत' (विसे ७६४)। अंगिरस वि [आङ्गिरस १ अंगिरस-गोत्र में उत्पन्न (ठा ७)। २ पुं. एक तापस (पउम ४,
न [अगुलीयका अंगुठी २ अक. लम्बा होना। वकृ. अंछमाण (विसे अंगुलीय
! (सुर १०, १४); 'पायवडि- ७६५)। प्रयो. अंछावेइ (गाया १,१)। ८६)।
अंगुलीयग। अंगीकड ! वि [अङ्गीकृत] स्वीकृत (ठा ५;
| एण सामिय ! समप्पियो
अंछण न [कर्षण] खींचाव (पएह २, ५) । अंगुलीयय अंगीकय । सुपा ५२६)।
अंगलीयनो तीए (पउम ५४,
अंछिय वि [दे] आकृष्ट, खींचा हुमा (दे अंगुलेजक अंगीकर । सक [अङ्गी+] स्वीकार
। ६; सुर १, १३२; पि २५२; १, १४)। अंगीकुण । करना । अंगीकरेइ (महा; नाट)। अंगुलयय । पउम ४६, ३५)।
अंज सक [अ ] प्रांजना । कृ. अंजियव्य अंगीकरेहि (स ३०६) संकृ. अंगीकरेऊण
अंगुलेयग देखो अंगुलेयय (सुख २, २६)। (विसे २६४२)।
अंगुवंग न [अङ्गोपाङ्ग] १ शरीर के | अंजण पुं[अञ्जन] १ कृष्ण पुद्गल-विशेष अंगुअ पुं [इगुद] १ वृक्ष-विशेष । २ न.
अंगोवंग । अवयव (पएण २३)। २ नख (सुज २०)। २ देव-विशेष (सिरि ६६७)। इंगुद वृक्ष का फल (हे १, ८६)।
वगैरह शरीर के छोटे-छोटे अवयव; 'नहकेसम- अंजण पुं[अञ्जन] १ पर्वत-विशेष (ठा ५)। अंगुठ्ठ पु [अङ्गुष्ट] अंगूठा (ठा १०), सुभंगुलीप्रोट्टा खलु अंगोवंगाणि (उत्त ३)। २ एक लोकपाल देव (ठा ४)। ३ पर्वत
पसिण ([प्रश्न] १ एक विद्या । २ °णाम न [ नामन्] शरीर के अवयवों के विशेष का एक शिखर, जो दिग्हस्ती कहा 'प्रश्न-व्याकरण' सूत्र का एक लुप्त अध्ययन निर्माण में कारण-भूत कर्म-विशेष (कम्म १, जाता है (ठा २, ३, ८)। ४ वृक्ष-विशेष (ठा १०)।
३४; ४८)।
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(प्राव)। ५ न. एक जाति का रत्न (णाया अंगुट्ठी स्त्री [दे] सिरका अवगुण्ठन, चूंघट | अंगोहलि स्त्री [१] शिर को छोड़कर बाकी १, १)। ६ देवविमान-विशेष (सम ३५) । (दे १, ६; स २८४)। । शरीर का स्नान (उप पू२३)।
७ काजल, कजल (प्रासू ३०)। ८ जिसका
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