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पाइअसहमहण्णवो
अंकार-अंगवड्ढण अंकार पंदे] सहायता, मदद (दे १,६)। अंकेल्लण न [दे] घोड़ा आदि को मारने का [रक्ष, रक्षक] शरीर को रक्षा करनेवाला अंकावई स्त्री [अङ्कावती] १ महाविदेह क्षेत्र चाबुक, कोड़ा, औंगी (जं ४)।
(सुपा ५२७; इक)। 'राग, राय पुं[राग] के रम्य नामक विजय की राजधानी (ठा २)। अंकेल्लि पुं[दे] अशोक-वृक्ष (दे१, ७)। शरीर में चन्दनादि का विलेपन (प्रौप; गा मेरु की पश्चिम दिशा में बहती हुई शीतोदा अंकोल्ल पुं[अङ्कोठ] वृक्ष-विशेष (हे १,२००)।
१८६)। राय पुं[ राज] १ अंगदेश का महानदी की दक्षिण दिशा में वर्तमान एक
राजा (उप ७६५)। अंग देश का राजा कर्ण वक्षस्कार पर्वत (ठा ५, २)। . अंग ब. पुं[अङ्ग] १ इस नाम का एक देश,
(णाया १,१६; वेणी १०४)। "रिसि देखो अंकिअन [दे] प्रालिंगन (दे १,११)। जिसको आजकल बिहार कहते हैं (सुर २,
इसि । रुह वि [रुह] देखो "
य ज अंकि वि [अङ्कित] चिहित, निशानवाला ६७)। २ रामका एक सुभट (पउम ५६,३७)।
(सुपा ५१२; पउम ५६, ३२)। रुहा स्त्री (औप)। ३ न. प्राचारांग सूत्र आदि बारह जैन आगम
[रुहा] पुत्री, लडकी (सुपा १५०)। विज्जा अंकिइल्ल पुं[दे] नट, नर्तक, नचवैया (गाया ग्रंथ (विपा २,१)। ४ वेदांग, वेद के शिक्षादि
स्त्री [विद्या] १ शरीर के स्फुरण का शुभाछः अंग (प्राचू) । ५ कारण, हेतु (पव १)।
शुभ फल बतलानेवाली विद्या (उत्त८)। २ उस ६ प्रात्मा, जीव (भवि)। ७ मॅन. शरीर अंकुडग पुं[अकुटक] नागदन्तक, खूटी,
नाम का एक जैन ग्रंथ (उत्त ८)। 'वियार ' (प्रासू ८४)। ८ शरीर के मस्तक आदि अवयव ताख (जं १)।
[विचार] देखो पूर्वोक्त अर्थ (उत्त १५)। (कम्म १, ३४)। अ. मित्रता का प्रामअंकुर पुं [अङकुर] प्ररोह, फुनगी (जी ६)।
संभूय वि [संभूत] संतान, बच्चा (उप न्त्रण, सम्बोधन (राय) । १० वाक्यालंकार अंकुरिय वि [अङ्कुरित] अंकुर-युक्त, जिसमें
६.४८)। हारय पुं [हारक] शरीर के में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (ठा ४) । इ पुं अंकुर उत्पन्न हुए हों वह (उवा)।
अवयवों के विक्षेप, हाव-भाव (अजि ३१) । [जित्] इस नामका एक गृहस्थ, जिसने अंकुस पु[अकुश] १ प्रांकडी, लोहे का
"गदाण न [दान] पुरुषेन्द्रिय, पुरुष-चिह्न भगवान् पार्श्वनाथ के पास दीक्षा ली थी एक हथियार, जिससे हाथी चलाये जाते हैं;
(निसी)। (निर)। "इसि पुं["र्षि] चंपा नगरी का 'अंकुसेण जहा रणागो धम्मे संपडिवाइयो' एक ऋषि (प्राचू)। [चूलिया] स्त्री
अंग पुं[अङ्ग] भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र (उत्त २२)। २ ग्रह-विशेष (ठा २, ३)। ३ [चूलिका] अंग-ग्रंथों का परिशिष्ट (पक्खि)।
का नाम (ती १४) । २ न. लगातार बारह सीता का एक पुत्र, कुस (पउम ९७, १६)। च्छहिय वि [छिन्नाङ्ग] जिसका अंग
दिनों का उपवास (संबोध ५८)। °ज देखो ४ नियन्त्रण करनेवाला, काबू में रखनेवाला
4 (धर्मवि १२६)। हर वि. [धर] अङ्गकाटा गया हो वह (सूत्र २, २, ६३)। (गउड)। ५ एक देव-विमान (राज)। ६ पुंन.
जाय वि [जात] बच्चा, लड़का (उप
ग्रंथों का जानकार (विचार ४७३ )। गुरु-वन्दन का एक दोष (पव २)। ६४८) । द देखो य% °द (ठा ८)।
अंग वि [आङ्ग] १ शरीर का विकार (ठा अंकुस पुन [अक्कुश] १ एक देव-विमान पविद्रन [प्रविष्ट] १ बारह जैन अंग-ग्रन्थों
८)। २ शरीर-संबंधी, शारीरिक (सुम २, (देवेन्द्र १४०)। २ पृ. अंकुशाकार खूटी में से कोई भी एक (कम्म १, ६) । २ अंग
२)। ३ न. शरीर के स्फुरण आदि विकारों के (राय ३७)।
ग्रंथों का ज्ञान (ठा २, १)। बाहिर न शुभाशुभ फल को बतलानेवाला शास्त्र, निमित्तअंकुसइय न दे. अंकुशित] अंकुश के प्राकार- r°बाह्य] १ अंग-ग्रंथों के अतिरिक्त जैन आगम शास्त्र (सम ४६)। वाली चीज (दे १, ३८; से ६, ६३)। (प्राचू)। २ अंग-ग्रंथों से भिन्न जैन पागमों का | अंग वि [चङ्ग] सुन्दर, मनोहर (भवि) । अंकुसय पु [अबकुशक] देखो अंकुस । २ |
ज्ञान (ठा २)। मंग न [rङ्ग] १ अंग-प्रत्यंग अंगइया स्त्री [अङ्गदिका] एक नगरी, तीर्थसंन्यासी का एक उपकरण, जिससे वह देव
(राय)। २ हर एक अवयव (षड्)। मंदिर | विशेष (उप ५५२)। पूजा के वास्ते वृक्ष के पल्लवों को काटता है
न[ मन्दिर] चम्पा नगरी का एक देव-गृह अंगंगीभाव अङ्गाङ्गीभाव अभेद-भाव, (प्रौप)। (भग १, १)। मद, मद्दय पुं[ मर्द,
अभिन्नता; 'अंगंगीभावेण परिणएपन्नसरिसमर्दक १ शरीर की चंपी करनेवाला नौकर। अंकुसा श्री [अकुशा] चौदहवें तीर्थंकर श्री
जिणधम्मे (सुपा २१८)। २ वि. शरीर को मलनेवाला, चंपी करनेवाला अनन्तनाथ भगवान् की शासन-देवी (पव २८)।
अंगण न [अङ्गण] प्रांगन, चौक (सुर ३, (सुपा १०८, महा; भग ११, १)। य पुं अंकुसिअ वि [अङ्कुशित] अंकुश की तरह
७१)। [द] १ नाली नामक विद्याधरराज का मुड़ा हुमा (से १४, २६)। पुत्र (पउम १०, १०; ५६, ३७)। २ न.
अंगणा स्त्री [अङ्गना] स्त्री, औरत (सुर ३, अंकुसी स्त्री [अकुशी] देखो अंकुसा बाजू बंद, केहुंटा (पएह १, ४)। य वि - (संति १०)। [ज] १ शरीर में उत्पन्न । २ पुं. पुत्र,
अंगदिआ देखो अङ्गइया (ती)। अंकूर देखो अंकुरः 'सा पुण विरतमित्ता लड़का (उप १३४ टी)। 'या स्त्री [जा] अंगवड्ढण न [दे] रोग, बीमारी (दे १, निबंकूरे विसेसेई (सूअनि ६१ टी)। __ कन्या, पुत्री (पास)। रक्ख, रक्खग वि ४७)।
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