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अईअ-अंकवाणिय
पाइअसहमहण्णवो
१, १०; साधं ४ विसे ८०८)। ४ जो दूर | [पश्चाशत् ] उनपचास, ४६ (जी ३०; पउम हो गया हो (उत्त १५)। १०२, ७०)। देखो एगूण !
य गए बाएंकसुनोडुवें (सुर १६, २४६)। अईअ)[अतीव] बहुत, विशेष, अत्यन्त अउणतीसइ स्त्री देखो अउण-त्तीस (उत्त
४ संख्या-दर्शक चिह; १, २, ३ (पएण अईव (भग०, १; पएह १, २)। ३६, २४०)।
२)। ५ नाटक का एक अंश; 'सुराणा मणुअईसंत वि [अ+ दृश्यमान] जो दिखता | अउणप्पन्न देखो अउणापन्न (जीवस २०८)।
स्सभवणाड़एसु निज्झाइमा मंका' (धरण ४५)। न हो (से १, ३५)। अउणासट्रि देखो अउण-सट्रि (सुज्ज ६)।
६ सफेद मणि की एक जाति (उत्त ३४)। अईसय देखो अइसय (पउम ३,१०५; ७५, अउणोणिउत्ति स्त्री [अपुनर्निवृत्ति] अन्तिम
७ चिह्न, निशान (चंद २०)। ८ मनुष्य के २६)। निवृत्ति, मोक्ष (अच्चु १०)।
बत्तीस प्रशस्त लक्षणों में से एक (पएह १, अईसार पुं [अतीसार] रोग-विशेष, संग्रहणी अउण्ण न [अपुण्य] १ पाप (सुर ६,
४)। ६पासन-विशेष (चंद ४)। कण्ड रोग (सुख १,३)। | अउन्न । २) । २ वि. अपवित्र । ३ पुण्य
पुंन. [काण्ड] रत्नप्रभा पृथ्वी के खर-काण्ड अईसार पुं[अतीसार] १ संग्रहणी रोग ।
रहित, पापी (पउम २८, ११२;
का एक हिस्सा, जो अंक रत्नों का है (ठा २ इस नाम का एक राजा (ठा ५,३)।
सुर २, ५१)।
१०)। अरेल्लुग, करेल्लुअ पुं[करेल्लुक] अउ देखो आउ = स्त्री; 'उल्लसियो तमरूवो अउम देखो ओम (गुभा १४)।
पानी में होनेवाली एक जाति की वनस्पति वलयागारो भउक्कामो' (पव २५५)।
(प्राचा)। दुइ स्त्री [स्थिति] अंक रेखाओं अउमर वि [अमर खानेवाला, भक्षक (प्राक अउअ न [अयुत] १ दस हजार की संख्या ।
की विचित्र स्थापना, ६४ कलाओं में एक २'अउअंग को चौरासी लाख से गुणने पर अपल विअितुल असाधारण, अद्वितीय (उप
कला (कप्प)। धर पुं[धर] चन्द्रमा (जीव जो संस्था लब्ध हो वह (ठा २, ४)।
३) । धाई स्त्री [ धात्री] पांच प्रकार की ७२८ टी; पएह १, ४)।
धाई-माताओं में से एक, जिसका काम बालक अउअंग न [अयुताङ्ग] 'अच्छरिणउर' को | अउलीन वि [अकुलीन] कुल-हीन, कुजाति,
को उत्संग में ले उसका जी बहलाना है (णाया चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध संकर (गा २५३)।
१, १)। "लिवि स्त्री [लिपि] अठारह हो वह (ठा २, ४)। अउव्य वि [अपूर्व] अनोखा, अद्वितीय (गा
लिगियों में की एक लिपि, वर्णमाला-विशेष अउंठ वि [अकुण्ठ] निपुण, कार्य-दक्ष
(सम ३५) । वणिय [ वणिक] अंक(गउड)। अउस पुं[दे] उपासक, पूजारी (प्रयौ ५२)।
रत्नों का व्यापारी (राय)। वालि, वाली अउचित्त न [औचित्य] उचितपन (प्राकृ भए अ [अये] आमन्त्रण-सूचक अव्यय |
स्त्री [पालि, पाली] आलिंगन (काप (कप्पू)।
१६४) । हर देखो धर (जीव ३)। अउज्म वि [अयोध्य] १ युद्ध में जिसका | अओ अ [अवस्] १ यहां से लेकर (सुपा
अंक [दे अङ्क निकट, समीप, पास (दे १, सामना न किया जा सके वह (सम१३७) । । ४७८)। २ इसलिए, इस कारण से (उप २ जिस पर रिपु-सैन्य आक्रमण न कर सके ७३०)। ऐसा किला, नगर आदि (ठा ४)।
अंक पुन [अङ्क] एक देव-विमान (देवेन्द्र अओं [अयस्] लोह । घण पुं [घन]
१३२)। अउज्झा स्त्री [अयोध्या] नगरी-विशेष, इक्ष्वा- | लोहे का हथौड़ा; 'सोसंपि भिदंति अयोध
अंककरेलुअ, ग देखो अंक-करेल्लुअ (प्राचा कुवंश के राजाओं की राजधानी, विनीता, _ हिं' (सूत्र १, ५, २, १४)। 'मय वि कोसला, साकेतपुर आदि नामोंसे विख्यात [मय लोहे की बनी हुई चीज (सूम २,
२, १, ८, ५)। नगरी, जो आजकल भी अयोध्या नाम से ही २)। मुह पुं[मुख] १-२ इस नाम का
| अंकण न [अङ्कन] १ चिहित करना (भाव)। प्रसिद्ध है (ठा २)। अन्तर्वीप और उसके निवासी (ठा ५) । ३ वि.
२ बैल आदि पशुमों को लोहे की गरम सलाई अउण वि [एकोन] जिसमें एक कम हो लोहे की माफिक मजबूत मुंह वाला; 'पक्खीहिं
प्रादि से दागना (पएह १,१)। ३ वि. अंकित खजंति प्रोमुहेहि (सूत्र १, ५, २, ४)।
करनेवाला, गिनती में लानेवाला: 'अंकणं जोइवह । यह शब्द बीस से लेकर तीस, चालीस प्रादि दहाई संख्या के पूर्व में लगता है और मुही स्त्री [मुखी] एक नगरी (उप ७६४)।
सस्स.''सूर' (कप्प)। जिसका अर्थ उस संख्या से एक कम होता
अओग्ग वि [अयोग्य] नालायक (स ७६४)। अंकणा स्त्री [अङ्कना] ऊपर देखो (णाया १, है। 'ठ्ठि स्त्री [°षष्टि] उनसाठ, ५६
अओझा देखो अउज्झा (प्रति ११५)। | १७)। (कप्प)। त्तरि स्त्री [सप्तति] उनसत्तर,
अंम[दे] स्मरण-द्योतक अव्यय; 'अं दटुब्वा | अंकदास पुं[अङ्कदास] बालक को उत्संग ६६ (कप्प)त्तीस स्त्रीन [त्रिंशत् उनतीस,
__ में लेकर उसका जी बहलानेवाला नौकर २६ (णाया १, १३) । सहि स्त्री [षष्टि] अंक पुं [अङ्क १ उत्संग, कोला (स्वप्न (सम्मत्त २१७)। उनसाठ, ५६ (कप्प)। पन्न, वन्न स्त्रीन २१९)। २ रत्न की एक जाति (कप्प)। अकवाणिय देखो अंक-बणिय (राय १२९)।
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