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अंत-अंतरेण
पाइअसहमहण्णवो
(उप १३६ टी)। 'द्धाणी स्त्री [र्धानी] | अंतब्भाव देखो अंत-भाव (मझ १४२)। | अंतरापह पुं[अन्तरापथ] रास्ता का बीचला जिससे अदृश्य हो सके ऐसी विद्या (सूप अंतर न [अन्तर] १ मध्य, भीतरः 'गामंतरे | भाग (सुख १, १५)। २, २) । "द्धाभूअ वि [धाभूत] नष्ट, पविट्ठो सो (उप ६ टी)। २ भेद, विशेष, अंतराय पुन. [अन्तराय] देखो अंतराइय विगतः 'नट्ठत्ति वा विगतेत्ति वा अंतद्धाभूतेत्ति । फरक (प्रासू १६८) । ३ अवसर, समय | (ठा २, ४ ; स २०३)। वा एगट्ठा (प्राचू)। °प्पा पुं [पात] (णाया १,२)। ४ व्यवधान (जं १) अंतराल [अन्तराल] अंतर, बीच का भाग अन्तर्भाव, समावेश (हे २, ७७)। °भाव पुं ५ अवकाश, अन्तराल (भग ७,८)। ६ विवर, (अभिने। [भाव] समावेश (विसे)। मुहुत्त न छिद्र (पास)। ७ रजोहरण । ८ पात्र । ६ पुं.. [°मुहूर्त] कुछ कम मुहूर्त, न्यून मुहूर्त (जी |
| अंतरावण पुंन [अन्तरापण] दूकान, हाट
प्राचार, कल्प । १० सूत के कपड़े पहनने का १४)। 'रद्धा स्त्री [धा] १ तिरोधान । प्राचार, सौत्र कल्प (कप्प)। कप्प पुं २ नाश, 'वुड्ढी सइअन्तरद्धा' (श्रा १६) ।
अंतरावास पुं [अन्तरवर्ष, अन्तरावास] [कल्प] जैन साधु का एक आत्मिक प्रशस्त 'रद्धा स्त्री [अद्धा] मध्य-काल, बीच का आचरण (पंचू) कंद पुकन्द] कन्द की
वर्षा-काल (कप्प)। समय (गचा)। रप्प पुं [आत्मन] एक जाति, वनस्पति-विशेष (पएण१)।
अंतरिक्ख पुंन [अन्तरिक्ष] अन्तराल, प्रात्मा, जीव (हे १,१४)। रहिय, रिहिद करण न [करण] आत्मा का शुभ अध्य
प्राकाश (भग १७, १०, स्वप्न ७०)। जाय (शौ) वि [हित] १ व्यवहित, अंतराल-युक्त | वसाय-विशेष (पंच)। गिह न [गृह]
वि [जात] जमीन के ऊपर रही हुई प्रासाद, (प्राचा)। २ गुप्त, अदृश्य (सम ३६; उप १ घर का भीतरी भाग। २ दो घरों के बीच
मंच आदि वस्तु (प्राचा २, ५)। पासणाह १६६ टी; अभि १२०) । वेिइ पुं [ वेदि] का अंतर (बृह ३)। कई स्त्री [नदो]
पुं[पार्श्वनाथ] खानदेश में अकोला के गंगा और यमुना के बीच का देश (कुमा)। छोटी नदी (ठा ६)। दीव पुं [द्वीप]
पास का एक जैन-तीर्थ और वहाँ की भगवान "अंत वि [°कान्त] सुन्दर, मनोहर (से १, १ द्वीप-विशेष (जी २३)। २ लवरण समुद्र
श्रीपाश्र्वनाथ की मूर्ति (ती)। ५६)।
के बीच का द्वीप (परण १)। सत्तु पुं अंतरिक्ख वि [आन्तरिक्ष] १ प्राकाशअंतअ वि [आयात् ] प्राता हुअा (से ६, [शत्रु] भीतरी शत्रु, काम-क्रोधादि (सुपा संबंधी, आकाश का (जी ५)। २ ग्रहों के
परस्पर युद्ध और भेद का फल बतलानेवाला अंतअ वि [अन्तग] पार-गामी, पार-प्राप्त (से अंतर सक [अन्तरय ] व्यवधान करना, बीच
शस्त्र (सम ४६)। | में डालना । अंतरेहि, अंतरेमि (विक्र १३६)। अंतरिज न [अन्तरीय] १ वस्त्र, कपड़ा। अंतअ वि [अन्तद] १ अविनाशी, शाश्वत ।
२ शय्या का नीचला वस्त्र; 'अंतरिजं रणाम अंतर वि [आन्तर] १ अभ्यन्तर, भीतरी 'सय२ जिसकी सीमा न हो वह (से ६,१८)। | लमुराणपि अंतरो अप्पारणो' (अच्चु २०)।२
रिणयंसणं, प्रहवा अंतरिजं नाम सेजाए हेढिल्लं
पोत्त' (निचू १५)। अंतअवि [अन्तक] १ मनोहर, सुन्दर मानसिक (उवर ७१)।
अंतरिज न [दे] करधनी, कटीसूत्र (दे १, अंतग (से ६, १८)। २ अन्तर्गत, अंतरंग वि [अन्तरङ्ग] भीतरी (विसे | समाविष्ट (सूत्र १, १५)। ३ पर्यन्त, प्रान्त | २०२७)। भागः 'जे एवं परिभासंति अन्तए ते समाहिए'
अंतरिजिया स्त्री [अन्तरीया] जैनीय अंतरंजी स्त्री [आन्तरी] नगरी-विशेष (विसे | (सूम १,३)। ४ यम, मृत्यु (से ६,१८ उप
वेशवाटिक गच्छ की एक शाखा (कप्प)। | २३०३)। ९९६ टी); 'समागमं कंखति अन्तगस्स (सूत्र अंतरपल्ली स्त्री [अन्तरपल्ली] मूल स्थान से अंतरित वि[अन्तरित व्यवहित, अंतर
१ वाला (सुर ३, १४३; से १, ढाई गव्यूत की दूरी पर स्थित गाँव (पव७०), अंतरिय २७) अंतग वि [अन्तग] १ पार-गामी । २
अंतरमुहुत्त देखो अंत-मुहुत्त (पंच २,१३)। दुस्त्यज, जो कठिनाई से छोड़ा जा सके |
अंतरिया स्त्री [दे] समाप्ति, अंत (जं २)। 'चिच्चारण अन्तगं सोयं निरवेक्खो परिचए'
अंतरा प्र[अन्तरा] १ मध्य में, बीच में (उप | तरिया श्री रिता नोटा (सूत्र १, ६)।
६५४ )। २ पहले, पूर्व में (कप्प)।
__थोड़ा व्यवधान (राय)। अंतगय देखो अंत-ग्गय (वव १)।
अंतराइय न [आन्तरायिक] १ कर्म-विशेष, | अंतरीय न [अन्तरीप द्वीप, 'सरवरगिहंत'अंतण न यिन्त्रणा बन्धन, नियन्त्रण (प्रयौ। जो दान प्रादि करने में विघ्न करता है (ठा | राले जिणभवणं पासि अंतरीयं वधर्मवि २४)।
- २)। २ विघ्न, रुकावट (पएह २,१)। १४३)। अंतद्धाण वि[अन्तर्धान] तिरोधान-कर्ता(पिंड अंतराईय न [अन्तरायीय] ऊपर देखो (सुपा | अंतरेण प्र[अन्तरेण] बिना, सिवाय (उत्त
६०१)। २
३५)।
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