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पोसण-फाल पाइअसहमहण्णवो
६१९ पोसण न [पोषण] १ पुष्टि (पएह १, २)। पोह पुं[दे] बैल आदि की विष्ठा का ढेर, | °Cपयास देखो पयास-प्रकाश (सुपा ६५७)। २ पालन । ३ वि. पोषण-कर्ता, 'लोग परं कच्छी भाषा में 'पोह (पिंड २४५)। आपलावि देखो पलावि (अभि ४६)। पि जहासिपोसणों (सूम १, २, १, १९) पोह [प्रोथ] प्रश्व के मुख का प्रान्त भाग | °प्पवत्तण देखो पवत्तण; 'अजिभजिण सुहपोसण न [पोसन] अपान, गुदा (जं ३)। (गउड)
प्पवत्तणं' (अजि ४)। पोसणया स्त्री [पोषणा] १ पोषण, पुष्टि । पोहण [दे] छोटी मछली (दे ६, ६२)। पवह देखो पवह (कुमा)। २ भरण, पालन (उवा)।
पोहत्त न [पुथुत्व] चौड़ाई (भग)। प्पवेस देखो पवेस (रंभा)। पोसय देखो पोस = पोस; 'पोसए ति' (ठा
पोहत्त देखो पुहत्त (पि ७८) - टी-पत्र ४५०; बृह ४)।
प्पवेसि देखो पवेसि (मभि १७५) । पोसय देखी पोसग (राज)।
| पोहनिय वि [पार्थक्त्विक] पृथक्त्व-संबन्धी प्पसर देखो पसर = प्र+स। वकृ. पसरत
(पएण २२-पत्र ६३६, ६४०; २३-पत्र (रंभा)। पोसह पोषध, पौषध] १ अष्टमी,
६६४)। चतुर्दशी आदि पर्वतिथि में करने योग्य जैन
पसर देखो पसर = प्रसर । पोहल देखो पोप्फल (षड् ) । श्रावक का व्रत-विशेष, प्राहार प्रादि के त्याग
प्पसब देखो पसव = (नाट-मालवि ३७) पूर्वक किया जाता अनुष्ठान-विशेष (सम १६ | प्प देखो प= प्र; "विप्पोसहिपत्ताणं (संति
प्पसाय देखो पसाय - प्रसाद (रंभा) । उवा प्रौपः महा, सुपा ६१६, ६२०)। २
२; गउड)।
|°प्पसुत्त देखो पसुत्त (रंभा)। पर्व-दिवस-प्रथमी, चतुर्दशी आदि पर्व- प्पआस देखो पयास = प्रयास (अभि ११७)ल.
| °प्पसूद (शौ) देखो पसूअ = प्रसूत (अभि तिथि; 'पोसहसदो रूढीए एत्थ पव्वाणुवायनो प्पउत्त देखो पउत्त = प्रवृत्त (मा ३)।
१४०)।भरिणो' (सुपा ६१६) पडिमा स्त्री प्पञ्चअ देखो पञ्चय (अभि १७६)
rwealमा
ताप्पहर देखो पहर-प्रहार (से २, ४ पि [प्रतिमा] जैन श्रावक को करने योग्य
प्पडवदि (पि २१६)। अनुष्ठान-विशेष, व्रत-विशेष (पंचा १०, ३)
२६७ ए)। 'वय न [व्रत] वही पूर्वोक्त पर्थ (पडि)।-प्पडिआर देखो पडिआर = प्रतिकार (मा | पहा देखो पहा (कुमा)। साला स्त्री [शाला] पौषध-व्रत करने का |
प्पहाण देखो पहाण (रंभा)। स्थान (णाया १,१–पत्र ३१; अंत: महा)।- पडिहा देखो पडिहा = प्रतिभा (कुमा) |
प्पहाय देखो पहाय = प्रभाव; 'प्पहाउ विवास पुगेपवास] पर्वदिन में उप- प्पणइ देखो पणइप्रणयिन् (कुमा)।
(रंभा)। वास-पूर्वक किया जाता जैन श्रावक का अनु- प्पणाम देखो पणाम प्रणाम (हे ३) °प्पहार देखो पहार (रंभा)। ष्ठान-विशेष, जैन श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत १०५)।।
प्पहाव देखो पहाव (अभि ११६)। (ौप; सुपा ६१६) प्पणास देखो पणास = प्रणाश (सुपा
| °Cपहु देखो पहु (रंभा)। पोसहिय वि [पौषधिक] जिसने पोषध
६५७)।। व्रत किया हो वह, पौषध करनेवाला (णाया 'प्पण्णा देखो पण्णा-प्रज्ञा (कुमा)।
पारंभ देखो पारंभ (रंभा)।१, १-पत्र ३०; सुपा ६१६; धर्मवि २७)।
प्पत्थाण देखो पत्थाण (अभि८१)। प्पिअदेखो पिअ%3D प्रिय (मभि ११८ मा
'पदेस देखो पदेस (नाट-विक्र ४)। १८) । पोसिअवि [दे] दुःस्थ, दरिद्र, दुःखी (दे
°प्पफुरिद (शौ) देखो पप्फुरिअ (नाट- | "प्पिआ देखो पिआ (कुमा)। मालती ५४)।
"प्पिव देखो इव (प्राकृ २६)।पोसिअ वि [पुष्ट] पोषण-युक्त (भवि)।
प्पबंध देखो पबंध (रंभा)।
| °प्पेम देखो पेम (पि ४०४)। पोसिअ वि [पोषित] १ पुष्ट किया हुआ। पभिदि देखो पभिइ (रंभा)।
प्पेम्म देखो पेम्म (कुमा)। २ पालित (उत्त २७, १४)।
प्पभूद (शौ) देखो पभूय (नाट–वेणी | 'प्पोढ देखो पोढ (रंभा)। पोसिद (शौ) वि [प्रोषित] प्रवास-विदेश में
"फंस देखो फंस = स्पर्श (काप्र ७४३; गा गया हुआ। भत्तुआ श्री [भर्तृका] जिसका | 'प्पमत्त देखो पमत्त (अभि १८५)। ४६२, ५५६)। पति प्रवास-परदेश में गया हो वह स्त्री | प्पमाण देखो पमाण (पि ३६६ ए) | प्फणा रेखो फणा (सुपा ५३५)।(स्वप्न १३४)।
प्पमुक्क देखो पमुक (नाट–उत्तर ५६)। फद्धा देखो फद्धा (कुमा)। पोसी स्त्री [पौषी] १ पौष मास की पूर्णिमा। °प्पमुह देखो पमुह (गउड)।
"प्फल देखो फल (पि२००)। २ पौष मास की अमावस (सुज १०, ६; प्पयर देखो पयर (कुमा)।
°फाल सक[स्फालय् ] १ आघात करना। इक) प्पयाव देखो पयाव (कुमा)।
२ पछाड़ना । फालउ (पिंग)।
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