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पाइअसहमहण्णवो
पोत्थिया-पोसग
पोत्थिया स्त्री [पुस्तिका] पोथी, पुस्तक; पोरव पुं[पौरव राजा पुरु की संतान (अभि पोलास न [पोलास] १ नगर विशेष, 'सरस्सइ व्व पोत्थियावलग्गहत्या' (काल)
पोलासपुर (उवा)। २ उद्यान-विशेष (राज) पोप्पय पुन [दे] हस्त-परिमर्षण, हाथ फिराना पोरवाड पुं [पौरवाट] एक जैन श्रावक- पुर न [पुर] नगर-विशेष (उवाः अंत)। (उप पृ ३५३) कुल (ती २)
पोलासाढ न [पोलाषाढ] श्वेतविका नगरी पोप्फल न [पूगफल] सुपारी (हे १, १७०० | पोराण देखो पुराण (पएण २८; प्रौपः भग; का एक चैत्य (विसे २३५७)। कुमा)। हे ४, २८७ उव; गा ३४.)।
पोलिअ पुं[दे] सौनिक, कसाई (३६, ६२)। पोप्फली स्त्री [पूगफली] सुपारी का पेड़ पोराण वि [पौराण] १ पुराण-सम्बन्धी पोलिआ स्त्री दे. पौलिका) खाद्य-विशेष, (हे १, १७०; कुमा)
(राय)। २ पुराण शास्त्र का ज्ञाता (राज) पूरी (?); 'सुणमो इव पोलियासत्तो (उप पोम देखो पउमः 'जहा पोर्म जले जाय' पोराणियवि पौराणिक पराण-शास्त्र- ७२८ टी राज) (उत्त २५, २७, सुख २५, २७ पउम
संबन्धी (स ३४४)।
| पोली देखो पओली; 'बद्धेसु पोलिदारेसु, ५३,७६)
पोरिस न [पौरुष] १ पुरुषत्व, पुरुषार्थ गवेसंतो म धुत्तयं' (श्रा १२; उप पृ८४; पोमर न [दे] कुसुम्भ-रक्त वस्त्र (द ६, ६३) (प्रास १७) (प्रासू १७) । २ पराक्रम (कुमा)।
धर्मवि ७७)। पोमाड पुं [दे. पद्माट ] पमाड, पमार, पोरिस वि [पौरुषेय पुरुष-जन्य, पुरुष
पोल्ल विदे] पोला, शुषिर, खाली, रिक्त चकवड़ का पेड़ (स १४४) । देखो पउमाड प्रणीत (धर्मसं ८६२ टी)।
'पोल्लो व्व मुट्ठी जह से असारें (उत्त २०, पोमावई स्त्री [पद्मावती] छन्द-विशेष पोरिसिमंडल न [पौरुषीमण्डल] एक जैन |
४२ रणाया १,१-पत्र ६३ पव ८१), (पिंग)।
'वंका कोडक्खइया चित्तलया पोल्लया य शास्त्र (गदि २०२)। पोमिणी देखो पउमिणी (सुपा ६४६; सम्मत्त
दड्डा य' (महा)। पोरिसिय देखो पोरिसीय; 'प्रत्थाहमतारम१७१) पोरिसियंसि उदगंसि अप्पाणं मुयति' (णाया
पोल्लड वि [दे] ऊपर देखो, 'वंका कोडक्वइया पोम्म देखो पउम (हे १, ६१,१, २, ११२; १, १४–पत्र १९०)
चित्तलया पोझडा य दड्ढा य' (मोष ७३५, गा ७५, कुमा; प्राकृ २८; कप्पू ; पि १६६)।
विचार ३३६)। पोम्मा देखो पउमा (प्राकृ २८, गा ४७१, पोरिसी स्त्री [पौरुषी] १ पुरुष-शरीर-प्रमाण
पोल्लर न दे] तप-विशेष, निर्विकृतिक तप पि १६६) 10
छाया । २ जो समय में पुरुष-परिमाण छाया पोम्ह देखो पम्ह % पक्ष्मन्, “जह उकिर हो वह काल, प्रहर (उवाः विपा २, १;
(संबोध ५८)। णालिगाए परिणय मिदुरूयपोम्हभरियाए' पाचा कप्प, पव ४)। ३ प्रथम प्रहर तक
पोस अक [पुष् ] पुष्ट होना । पोसइ (धात्वा भोजन मादि का त्याग, प्रत्याख्यान-विशेष,
१४५; भवि) (धर्मसं ९८०) पोर पू[पूतर] जल में होनेवाला क्षुद्र जन्तु तप-विशेष (पव ४ संबोध ५७)। पोस सक [पोषय ] १ पुष्ट करना । २ पालन (हे १, १७०; कुमा) पोरिसीय वि [पौरुषिक] पुरुष-प्रमाण,
करना। पोसेइ (पंचा १०, १४); ‘मायरं पुरुष-परिमित; 'कुंभी महंताहियपोरिसीया पोर वि [पौर] पुर में नगर में उत्पन्न,
पियरं पोस' (सूत्र १, ३, २, ४), पोसाहि
(सूम १, २, १, १९)। कवकृ. पोसिज्जत नागरिक (प्राकृ ३५)
(सूम १, ५, १, २४) ।
पोरुस ([पुरुष ] अत्यन्त वृद्ध पुरुष (सूत्र पोर देखो पुर - पुरस्। कव्व न ["काव्य]
(गा १३५) ।। १,७,१०)।
पोस वि [पोष] १ पोषक, पुष्टि-कारक; शीघ्रकवित्व (राज)।
पोरुस देखो पोरिस (स २०४, उप ७२८ 'मभिक्वणं पोसवत्थं परिहिति' (सूम १, ४, पोर पुन [दे. पर्वन् ] ग्रंथि, गाँठ (ठा ४, टी महा)।
१, ३) । २ पुं. पोषण, पुष्टि (संबोध ३६)। १ अनु) । °बीय वि [बीज] पर्व-बीज से
पोरेकच्चन [पौरस्कृत्य] पुरस्कार, कला-पोस पोस] १ अपान-देश, गुदा (पएह उगनेवाली वनस्पति, इक्षु आदि (ठा ४, १)ोग
Mपोरेगच्च विशेष (प्रौपा राया प्रौप १०७ टि) और
१.४–पत्र ७८ प्रोध ५५६; प्रौप) । २ पोरग 'न [पर्वका वनस्पति का एक भेद,गोत वयारोतित्व प्रसरता योनि (निचू६)। ३ लिग, उपस्था 'रणवसापर्ववाली वनस्पति (पएण १-पत्र ३३)। (प्रौपः सम ८६ विपा १, १; कप्प)।
तपरिस्सवा बोंदी पएणत्ता, तं जहा; दो पोरच्छ पुं [दे] दुर्जन, खल (दे ६, ६२ पोलंड सक [प्रोत + लङ्घ ] विशेष
सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुह, पोसे, पान)
। उल्लंघन करना। पोलंडेइ (गाया १.१. पाऊ' (ठा -पत्र ४५०)। पोरच्छिम देखो पुरच्छिम (सुपा ४१)।
पत्र ६१)।
पोस पुं. [पौष] पौष मास (सम ३५) ।। पोरत्थ विदे] मत्सरी, ईर्ष्यालु, द्वेषी (षड्) पोलच्या स्त्री [] खेटित भूमि, कृष्ट जमीन पोसग वि [पोषक] १ पुष्टि-कारक । २ पोरय न [दे] क्षेत्र (दे ६, २६)।- (दे ६, ६३)।
पालन-कर्ता (पएह १,२)।
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