________________
६२० पाइअसहमहण्णवो
°फालण-फडा फालण न [स्फालन] आघात (गउड; गा प्रस्स (अप) देखो पस्स = दृश् । प्रसाद (हे प्रिय (अप) देखो पिअ = प्रिय (हे ४, ३६८) ५४६)। ४. ३९३)
कुमा)।
प्रेकिअन [दे वृष रटित, बैल की चिल्लाहट प्फुड देखो फुड (कुमाः रंभा)।
प्राइम्वा (अप) देखो पाय= प्रायस् (हे ४, प्राइव
(षड्) "फोडण देखो फोडण (गा ३८१)।
| प्रेयंड वि [दे] धूर्त, ठग (द १, ४)
प्राउ
४१४ कुमा)
।। इअ सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि पाराइसहसंकलणो
सत्तावीसइमो तरंगो परिसमत्तो।।
फ पुं [फ] प्रोष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष फंस सक [स्पृश् ] छूना । फैसइ, फंसेइ (हे । फग्गु पुं. [ दे. फल्गु] वसन्त का उत्सव, (प्राप्र)
४, १८२, प्राकृ २७)। कर्म, फंसिजइ फगुना (दे ६, ८२)। फंद प्रक[स्पन्दु ] थोड़ा हिलना, फरकना। (कुमा)।
फग्गुण पुं [फाल्गुन] १ मास-विशेष, फंदइ, फंदति (हे ४, १२७; उत्त १४, ४५)। फंस ' [स्पर्श] स्पर्श, छूना (पान प्राप्र; | फागुन का महिना (पान; कप्प)। २. अर्जुन, वकृ. फंदंत, फंदमाण (सूम १,४,१,६ प्राकृ २७; गा २६६)
मध्यम पण्डुपुत्र (वजा १३०) ठग ७–पत्र ३८३, कप्प)।
फंसण न [स्पर्शन] छूना, स्पर्श करना (उप फागुणी स्त्री [फाल्गुनी] १ फागुन मास की फंद पुं [स्पन्द] किञ्चित् चलन (षड् ; सण)
३३० टी धर्मवि ४३, मोह २९)। पूर्णिमा (इक; सुज १०, ६) । २ फागुन मास फंदण न [स्पन्दन] ऊपर देखो (विसे १८४७; |
फंसा वि [पांसन] अपसद, अधम, 'कुल- | की अमावस्या (सुज १०, ६)। ३ एक गृहहे २, ५३; प्राप्र)
फंसपों' (सुख २, ६ स १९८; भवि) पति की स्त्रो (उवा)। फंदणा स्त्री [स्पन्दना] ऊपर देखो (सूअनि
| फंसण वि [दे] १ युक्त, संयत । २ मलिन, फग्गुणी स्त्री [फल्गुनी] नक्षत्र-विशेष (ठा ८ टी)
मैला (दे ६, ८७)। फैदिअ वि [स्पन्दित] १ कुछ हिला हुमा,
फंसुल वि [दे] मुक्त, त्यक्त (द ६, ८२) | फट्ट अक [ स्फट ] फटना, टूटना। फट्टइ
फंसुली स्त्री [दे] नवमालिका, पुष्प-प्रधान फरका हुआ (पास)। २ हिलाया हुआ, ईषत्
(भवि):चालित (जीव ३)। वृक्ष-विशेष (दे ६, ८२)।
फड सक[स्फट ] १ खोदना । २ शोधना। फंफ (अप) अक [ उद् + गम् ] उछलना। फकिया स्त्री [फक्किका] ग्रन्थ का विषम |
वकृ. 'गतं फडमाणीसो (सुपा ६१३)। फंफाइ (पिंग १८४, ५) स्थान, कठिन स्थान (सुर १६, २४७)।
हेकृ. फडिउं (सुपा ६१३)। फग्गु वि [फल्गु] १ असार, निरर्थक, तुच्छ
फड न [दे] साँप का सर्व शरीर (दे ६, फंफसय पुं [दे] लता-भेद, वल्ली-विशेष (दे
(सुर ८, ३, संबोध १६; गा ३६६ अ)। २ स्त्री. भगवान् अजितनाथ की प्रथम शिष्या
फड पुन [दे. फट] साँप की फणा (दे ६, फंफाइ (अप) वि [कम्पायित, कम्पित]
(सम १५२), "मित्त पृ["मित्र स्वनाम- ८६ कुप्र ४७२)। कपाया हुमा, कम्प-प्राप्त (पिंग)।
ख्यात एक जैन मुनि (कप्प)। रक्खिय पुं फडही [दे] देखो फलही (गा ५५० प्र) फंस प्रक [विसम् + व प्रसत्य प्रमाणित [रक्षित] एक जैन मुनि (प्राव १) "सिरी फडा स्त्री [फटा] साँप की फन, सप-फणा होना, प्रमाण-विरुद्ध होना, अप्रमाण साबित स्त्री ["श्री] इस अवसर्पिणी काल के पंचम (गाया १,६ पउम ५२, ५, पाम प्रौप)। होना। फंसइ (हे ४, १२६)। प्रयो., भूका. मारे में होनेवाली अन्तिम जैन साध्वी (विचार __°ल बि [वत् ] फनवाला (हे २, १५६; फंसाविही (कुमा) ५३४)
चंड)।
Jain Education Intemational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
.