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५८८ पाइअसहमहण्णवो
पात-पाय पात ! देखो पाय = पात्र (सून १, ४, २; पामा स्त्री [पामा] रोग-विशेष, खुजली, खाज | कंबल पुन [°कम्बल] पैर पोंछने का वस्त्रपाद पिएह २, ५-पत्र १४८) । बंधण न (सुपा २२७)।
खण्ड (उत्त १७, ७)। कुक्कुड पुं [बन्धन] पात्र बाँधने का वस्त्र-खण्ड, जैन- पामाड पु [पद्माट] पमाड़, पमार, पवाड, [कुक्कुट कुक्कुट-विशेष (गाया १,१७ मुनि का एक उपकरण (परह २, ५)। चकवड़, वृक्ष-विशेष (पास)।
टी-पत्र २३०)। घाय पुं[घात चरणपाद देखो पाय = पाद (विपा १, ३)। °सम पामिश्च सक [दे] उधार लेना। पामिच्चेज प्रहार (पिंग)। चार [चार] पैर से वि ["सम गेय-विशेष (ठा ७-पत्र | (प्राचा २, २, २, ३)।
गमन (णाया १,१) । चारिवि ['चारिन्] ३६४)। ढपय न [ौष्ठपद दृष्टिवाद पामिश्च न [दे. अपमित्य] १ घार लेना, पैर से यातायात करनेवाला, पाद-विहारी नामक बारहवें जैन आगम-ग्रन्थ का एक वापस देने का वादा कर ग्रहण करना । २ (पउम ६१, १६)। जाल, जालग न प्रतिपाद्य विषय (सम १२८)।
वि. जो उधार लिया जाय वह (पिंड १२; [जाल, क] पैर का प्राभूषण-विशेष (प्रौप; पादु देखो पाउ =प्रादुस् । पादुरेसए (पि ३१६; पाचा ठा ३, ४, ६; प्रौपः परह २, अजि ३१; पएह २,५)। त्ताण न [त्राण]
३४१) । पादुरकासि (सूम १, २, २, ७)। । ५; पव १२५; पंचा १३, ५, सुपा ६४३)। जूता, पगरखी (दे १, ३३)। पलंब पुं पादो देखो पाओ = प्रातस् (सुज १, ६)।
पामिञ्चिय वि [दे] उधार लिया हुआ (पाचा | [प्रलम्ब] पैर तक लटकनेवाला एक प्राभूपादोसिय वि [प्रादोषिक] प्रदोष-काल का, १, १०, १)।
षण पाया १,१-पत्र ५३)। पीढ देखो पामुक्त वि [प्रमुक्त] परित्यक्त (पान, स वीढ (णाया १, १; महा)। पुंछण न प्रदोष-संबन्धी (ोध ६५८)। ६५७)।
[प्रोञ्छन] रजोहरण, जैन साधु का एक पादव देखो पायव (गा ५३७ अ)।
पामूल न [पादमूल] पैर का मूल भाग, पाँव उपकरण (प्राचा; अोघ ५११, ७०६; भग, पाधन्न देखो पाहन्न (धर्मसं ७८६)।
का अग्न भाग (पउम ३, ६, सुर ८, १६६ उवा)। पडण न [°पतन पैर पर गिरना, पाधार सक [स्वा+ गम् , पाद + धारय ]
पिंड ३२८) । देखो पायमूल = पादमूल।। प्रणाम-विशेष (पउम ६३, १८)। मूल न पधारना, 'पाधारह निमगेहे' (श्रा १६)।
पामोक्ख देखो पमुह = प्रमुख (पाया १,५; पाबद्ध वि [प्राबद्ध] विशेष बँधा हुआ,
[मूल] १ देखो पामूल (कस) । २ मनुष्यों ८ महा)।
की एक साधारण जाति, नतंकों की एक पाशित (निचू १६)।
पातिः 'समागयाइं पायमूलाई', 'पुलइजमाणो पाभाइय वि प्राभातिक] प्रभात- पामोक्ख पुं [प्रमोक्ष मुक्ति, छुटकारा (उप पाभातिय
पायमूलेहि पत्तो रहसमोवे', 'पणच्चियाई ६४८ टी)। संबन्धी (ोघभा ३११; अनु
पायमूलाई', 'सद्दावियाई पायमूलाई', 'पणपाय पुं[दे] १ रथ-चक्र, रथ का पहिया (दे। ६) धर्मवि ५८)। ६, ३७) । २ फणी, साँप (षड्)।
चंतेहि पायमलेहि' (स ७२१:७२२,७३४)। पाम सक [प्र+ आप] प्राप्त करना,
'लेहणिआ स्त्री [ लेखनिका] पैर पोंछने गुजराती में 'पामवु"।
पाय पुंपाक] १ पाचन-क्रिया। २ रसोई ।
(प्राकृ १६७ उप ७२८ टी)। 'कारावेइ पडिमं जिणाण जिअरोगदोसमोहाणं।
का जैन साधु का एक काष्ठमय उपकरण सो अनभवे पामइ भवमलणं धम्मवररयणं ।' पाय वि [पाक्य पाक-पोग्य (दस ७, २२)।
(ोघ ३६)। वंदय वि [°वन्दक] पैर पर (रयण १२)। कर्म. पामिजइ (सम्मत्त पाय देखो पाव (चंड)।
गिरकर प्रणाम करनेवाला (णाया १, १३) ।
वडण न [पतन] पैर पर गिरना, प्रणामपाय [पात] १ पतन (पंचा २, २५, से पामण्ण न [प्रामाण्य] प्रमाणता, प्रमाणपन
विशेष (हे १, २७०० कुमाः सुर २, १०६) । १, १६) । २ संबन्धः 'पुणो पुणो तरलदिट्ठि
'वडिया स्त्री [वृत्ति पाद-पतन, पैर छूना, (धर्मसं ७५)।
पाएहि' (सुर ३, १३८)। पामदा स्त्री [दे] दोनों पैर से धान्य-मर्दन (दे पाय पू[पाय] पान, पीने की क्रिया (श्रा
प्रणाम-विशेष; 'पायवडियाए खेमकुसलं
पुच्छंति' (गाया १, २, सुपा २५) । "विहार २३)। पामन्न देखो पामण्ण (विसे १४६६; चेइय पाय पुं[पाद] १ गमन, गति (श्रा २३)।
[विहार] पैर से गति (भग)। वीढ १२४)। २ पैर, चरण, पाव; 'चलणा कमा य पाया'
न [पाठ] पैर रखने का प्रासन (हे १, पामर पुं[पामर] कृषोबल, कर्षक, खेती का (पात्रः णाया १,१)। ३ पद्य का चौथा
२७०; कुमा; सुपा ६८)। सीसग न काम करनेवाला गृहस्थ, 'पामरगहवइसेप्राण- हिस्सा (हे ३, १३४; पिंग)। ४ किरण;
[शीर्षक ] पैर के ऊपर का भाग (राय) । कासया दोण्या हलिया' (पामः वजा १३४ 'अंसू रस्सी पाया' (पान, अजि २८)। ५
उलअ न [कुलक] छन्द-विशेष (पिंग)। गउड; दे ६,४१, सुर १६, ५३)। २ हलकी सानु, पर्वत का कटक (पास)। ६ एकाशन पाय देखो पत्त = पात्र (प्राचा; औप; प्रोधमा जाति का मनुष्य (कप्पू: गा २३८)। ३ मूर्ख तप (संबोध ५८)। ७ छः अंगुलों का एक ३६; १७४)। केसरिआ स्त्री [ केसरिका] बेवकूफ, अज्ञानी (गा १६४); 'को नाम नाप (इक)। कंचणिया स्त्री [ काचनिका] जैन साधुमों का एक उपकरण, पात्र-प्रमार्जन पामर मुत्तं वच्चा दुद्दमकद्दमे (श्रा १२)। । पैर प्रक्षालन का एक सुवर्ण पात्र (राज)। का कपड़ा (मोघ ६६८ विसे २५५२ टी)।
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