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पाय-पार
पाइअसद्दमण्णवो
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'ट्रवण, "ठवण न [ स्थापन] जैन मुनियों पायड न [दे] अंगण, माँगन (द६, ४०)। समुद्र के मध्य में स्थित कलशाकार वस्तु का एक उपकरण, पात्र रखने का वन-खण्ड पायड देखो पागड =प्रकट (हे १, ४४,
(अणु)। "पुर न [पुर नगर-विशेष (पउम (विसे २५५२ टी; मोघ ६६८)। "णिजोग, प्रातः प्रोघ ७३; जी २२, प्रासू ६४)।
४५, ३६)। मंदिर न [ मन्दिर] पाताल'निज्जोग पु[निर्योग जैन साधु का यह पायड देखो पागड = प्राकृतः 'अहंपि दाव |
स्थित गृह (महा)। हर न [गृह] वही उपकरण-समूह-पात्र, पात्रबन्ध, पात्रस्थापन, दिप्रसे परं परिभमिन प्रलद्धभोमा पान
अर्थ (महा)। पात्रकेशरिका, पटल, रजबाण और गुच्छक डगणिया विन रत्ति पस्सदो सइदुं प्रापच्छामि'
पायाल न [पाददल] पादात्य सैन्य, पैदल (पिंड २६; बृह ३; विसे २५५२ टी)। (अवि २६)।
सैनिक (चउप्पन्न पत्र. १८५)। 'पडिमा स्त्री [प्रतिमा] पात्र-संबन्धी
पायड वि [प्रावृत पाच्छादित (विसे २५७६ पायालकारपुर म [पाताललकापुर] पातालअभिग्रह-प्रतिज्ञा-विशेष (ठा ४, ३)। देखो | टी)।
लंका, रावण की राजधानी; 'पायालंकारपुर पाद = पात्र ।
पायडिअ वि[प्रकटित] व्यक्त किया हुमा | सिग्धं पत्ता भउन्विग्गा' (पउस ६, २०१)। पाय (अप) देखो पत्त = प्राप्त (पिंग)।
(कुप्र ४; से १, ५३; गा १९६; २६०; | पायावञ्च न [प्राजापत्य] अहोरात्र का चौदपाय अ [प्रायस् ] प्रायः, बहुत करके गउड; स ४६८)।
हवा मुहूर्त (सम ५१)। 'पायप्पारणं वणेइ त्ति' (पिंड ४४३)। पायडिल्ल वि [प्रकट] खुला (वज्जा १०८)। पायाविय वि [पायित] पिलाया हुमा (पउम "पाय पुं. ब. [पाद] पूज्य, 'सथुना प्राजन पायण न [पायन] पिलाना, पान कराना ११, ४१) । संतिपायया' (प्रजि ३४)। (णाया १, ७)। .
पायाहिण न [प्रादक्षिण्य १ वैटन (पव पायए देखो पा = पा।
पायत्त न [पादात] पदाति-समूह, प्यादों का ६१)। २ दक्षिण की मोर; 'पायाहिणेण पापं देखो पाय (स ७६१; सुपा २८, ५६६; लश्कर (उत्त १८, २; प्रौपः कप्प)। "णिय तिहि पंतिप्राहि झाएह लद्धिपए' (सिरि श्रावक ७३)।
न [नीक] पदाति सैन्य (पि ८०)। १९६)। पायं प्र[प्रातस् ] प्रभात (सूम १, ७,
पायपुंछण न [पादपुञ्छन] पात्र-विशेष, पायाहिणा देखो पयाहिणाः 'पायाहिणं शराव, सकोरा।
___ करितो' (उत्त ६, ५६, सुख ६,५९)। पायंगुट्ठ पुं [पादाङ्गुष्ठ] पैर का अंगूठा
पायप्पहण पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा (दे ६, पार प्रक[शक ] सकना, करने में समर्थ (णाया १, ८)।
४५)। पायंजलि [पातञ्जल] पतञ्जलिकृत शास्त्र,
होना । पारइ, पारेइ (हे ४, ८६; पान)। पातल योग-सूत्र (गदि १९४)।
पायय न [पातक] पाप (अच्चु ४३)। वकृ. पारंत (कुमा)।
पायय देखो पाव = पाप (पान)। पायंत न [पादान्त गीत का एक भेद, पाद
पार सक [पारय् ] पार पहुँचना, पूर्ण पायय देखो पागय (हे १, ६७)। वृद्धगीत (राय ५४)।
करना। पारेइ (हे ४, ८६; पात्र) हेकृ. पायय देखो पायव (से ६, ७)।
पारित्तए (भग १२, १)। पायंदुय पुं [पादान्दुक] पैर बाँधने का
पायय देखो पावय = पावक (अभि १२५)। काष्ठमय उपकरण (विपा १, ६-पत्र ६६)। पावय देखो पाय = पाद (कप्प)।
पार पुंन [पार] १ तट, किनारा (भाचा)।
२ पर्ला, किनाराः 'परतीरं पारं' (पाप), पायक देखो पायय = पातक (वव १)। पायरास [प्रातराश] प्रातःकाल का भोजन,
'किह म्ह होही भवजलहिपारं' (निसा ५)। पायक्क देखो पाइक्क (सम्मत्त १७६) । जलपान, जलखवा (प्राचा; गाया १.८)। पायल न [दे] चक्षु, पाँख (दे ६, ३८)।
३ परलोक, मागामी जन्म । ४ मनुष्य-लोकपायक्खिण्ण न [प्रादक्षिण्य] प्रदक्षिणा
भिन्न नरक आदि (सूत्र १, ६, २८)। ५ (पउम ३२, ६२)। पायव [पादप] वृक्ष, पेड़ (पान)।
मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण; 'पारं पुणगुत्तरं बुहा पायव्व देखो पा = पा। पायग न [पातक] पाप (श्रावक २४८)।
बिति' (बृह ४) । ग वि [ग] पार जानेपायस पुंन [पायस दूध का मिष्टान्न, खीर पायच्छित्त पुंन [प्रायश्चित्त] पाप-नाशन
पायसो खीरी' (पान सुपा ४३८)।
वाला (प्रौपा सुपा २५४)। गय वि [गत] कर्म, पाप-क्षय करनेवाला कर्म; 'पारंचियो
१ पार-प्राप्त (भगः मौप)। २ पुं. जिन-देव, पायसो प्र [प्रायशस] प्रायः, बहुत कर नाम पायच्छित्तो संवुत्तो' (सम्मत्त १४४,
भगवान् महन (उप १३२ टी)। 'गामि वि (उप ४४६; पंचा ३, २७)। उवा औप; नव २६)।
[गामिन् ] पर पहुँचनेवाला (प्राचा कप्प; पायड देखो पागड =प्र+ कटय । पायडइ __पायार पुं [प्राकार] किला, कोट, दुर्ग (पामः
प्रौप) । पाणग न ["पानक] पेय द्रव्य(भवि)। वकृ. पायर्डत (सुपा २५६)। हे १, २६८ कुमा)।
विशेष (णाया १, १७) "विउ वि ["विद्] कवकृ. पायडिजंत (गा ६८५)। हेकृ. पायाल न [पाताल] रसा-तल, अधो भुवन पार को जाननेवाला (सूम २,१, ६०)। पायडिउं (कुप्र १)।
. (हे १,१८० पाम)। कलश पुं[कलश] भोय वि [भोग] पार-प्रापक (कप्प)।
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