________________
पाढाविअ-पाणु पाइअसद्दमण्णवो
५८७ पाढाविअ वि [पाठित] अध्यापित (प्राकृ "पाणाणि चेवं विरिणहंति मंदा' (सूम १,७, स्वर्ग का इन्द्र (ठा ४, ४)। ४ प्राणत देव६१)।
१६, ठा ; प्राचा; कप्प) । ४ जीवित | लोक में रहनेवाला देव (अणु) । पाढाविअवंत वि [पाठितवत् ] जिसने जीवन (सुपा २६३, ५:३; कप्पू)। इत्त पाणहा स्त्री [उपानह ] जूता, 'पाणहारो पढ़ाया हो वह (प्राकृ ६१)।
वि [वत् ] प्राणवाला, प्राणी (पि ६००)। य छत्तं च णालीयं बालवीयए' (सूम १, ६, पाढाविउ । वि [पाठयितु] पढ़ानेवाला चय पुं [त्यय] प्राण-नाश (सुपा २९८ १८)। पाढाविर (प्राकृ ६१, ६०)।
६१६) चाय पुं["त्याग] मरण, मौत पाणाअअ दे] श्वपच, चाण्डाल (दे ६, पाढिअ वि[पाठित] पढ़ाया हुमा, अध्यापित
(सुर ४, १७०)। जाइय वि [जातिक] (प्राप्र)।
प्राणी, जीव, जन्तु (प्राचा १, ६, १, १)। पाणाम पुं [प्राण] निःश्वास (भग)। पाढिअवंत देखो पाढाविअवंत (प्राकृ ६१)। नाह पुं [°नाथ] प्राणनाथ, पति, स्वामी
| पाणामा स्त्री [प्राणामी] दीक्षा-विशेष (भग पाढिआस्त्री [पाठिका] पड़नेवाली स्त्री (कप्पू)। (रंभा)। प्पिया स्त्री [प्रिया] स्त्री, पत्नी पाढिउ । वि[पाठयित] प्रध्यापक, पढ़ाने(सुर १, १०८)। वह पु [वध] हिसा
पाणाली स्त्री [दे] दो हाथों का प्रहार (दे ६, पाढिर । वाला (प्राकृ ६१)।
(पएह १, १) । 'वित्ति स्त्री [वृत्ति] पाढीण पुं [पाठीन] मत्स्य-विशेष, 'पोठिया' जीवन-निर्वाह (महा)। सम पुं[सम
पाणि पुं [प्राणिन] जीव, प्रात्मा, चेतन मछली, मत्स्य की एक जाति (गा ४१४. विक्र पति, स्वामी (पान)। सुहुम न [सूक्ष्म]
(आचाः प्रासू १३६; १४४)। ३२)।
सूक्ष्म जन्तु (कप्प) । हिय वि [ हृत् ] पाढोआमास पुं[पृथगामर्श] बारहवें अंग- प्राण-नाशक (रंभा)। इंत वि [°वत् ]
पाणि पुं[पाणि] हस्त, हाथ (कुमाः स्वप्न ग्रंथ का एक भाग (गादि २३५) । प्राणवाला प्राणी (प्राप्र)। इवाइया स्त्री
५३; ६०)। गहण देखो 'ग्गहण (भवि) । [तिपातिकी] क्रिया-विशेष, हिंसा से होनेपाण सक [प्र + आनय ] जिलाना। वकृ.
। 'गह पुं [ग्रह] विवाह (सुपा ३७३; धर्मवि
वाला कर्म-बन्ध (नव १७) । पाणअंत (नाट-मालती ५)।
१२३)। ग्गहण न [प्रण] विवाह,
इवाय पुं [तिपात ] हिंसा (उवा)। उ पुन
शादी (विपा १, स्वप्न ६३; भवि)। पाण पुंस्त्री [दे] श्वपच, चण्डाल (दे ६, ३८
[आयुस् ] ग्रन्यांश-विशेष, बारहवाँ पूर्व (सम
पाणिअ न [पानीय] पानी, जल (हे १, उप पृ १५४० महा: पान ठा ४,४; वव
२५, २६) । पाण, पाणु पुन [पान] १)। श्री. णी (सुख ६, १; महा)। उडी
१०१ प्राप्र पण्ह १, ३; कुमा)। धारिया उच्छ्वास और निःश्वास (धर्मसं १०८
स्त्री [धरिका] पनिहारीः 'जियसत्तुस्स रएणो स्त्री [°कुटी] चाण्डाल की झोंपड़ी (गा
६८) । याम पुं [ीयाम] योगाङ्ग२२७) । 'विलया स्त्री [वनिता] चाण्डाली
पारिणयघ(? ध)रिय सद्दावेई (णाया १, (उप ७६८ टी)। डिंबर पुं[डम्बर] विशेष-रेचक, कुम्भक
१२–पत्र १७५)। हारी स्त्री [हारी]
और पूरक नामक
प्राणों को दमने का उपाय (गउड)। यक्ष-विशेष (वव ७)। हिवइ पुं [धि
पनिहारी (दे ६, ५६; भवि)। देखो पाणी। पति चाण्डाल-नायक (महा)।
पाणंतकर वि [प्राणान्तकर] प्राण-नाशक पाणिणि पुं[पाणिनि] एक प्रसिद्ध व्याकरण(सुपा ६१४)।
कार ऋषि (हे २, १४७)। पाण न [पान] १ पीना, पीने की क्रिया (सुर
पाणंतिय वि [प्राणान्तिक] प्राण-नाशवाला, पाणिणीअ वि [पाणिनीय] पाणिनि-संबन्धी, ३, १०)। २ पीने की चीज, पानी मादि
'पाणंतियावई पहु!' (सुपा ४५२)। पाणिनि का (हे २, १४७)। (सुज २० टी; पडि; महा; प्राचा)। ३ पुं.
पाणग पुन [पानक] १ पेय-द्रव्य-विशेष गुच्छ-विशेष, ‘सणपाणकासमद्दगप्रग्घाडगसा
पाणी देखो पाण = (द)। (पंचभा १; सुज २० टी; कप्प)। २ मसिंदुवारे य (पएण १)। पत्त न [ पात्र]
पाणी स्त्री [पानी] वल्लो-विशेष, 'पाणी सामावि. पान करनेवाला (?); 'ण पारणगो जं । पीने का भोजन, प्याला (द) गार न
वल्ली गुंजावल्ली य वत्थाणी' (पएण १-पत्र ततो प्रगणो' (धर्मसं ८२७८)। [गार] मद्य-गृह (णाया १, २, महा)। हार पुं[हार] एकाशन तप (संबोध
पाणद्धि स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे ६, ३९)।पणीअ देखो पाणिअ (हे १, १०१, प्रासू
पाणम अक [प्र+ अण] निःश्वास लेनाः १०५)। धरी स्त्री [धरी] पनिहारी (णाया पाण पुन [प्राण] १ जीवन के प्राधार-भूत ये नीचे सांसना । पारणमंति (सम २: भग)। १, १ टी-पत्र ४३)। दश पदार्थ-पांच इन्द्रियाँ, मन, वचन और पाणय न [पानक] देखो पाण = पान (विसे पाणु पुन [प्राण] १ प्राण वायु । २ श्वासोशरीर का बल, उच्छ्वास तथा निःश्वास (जी २५७८) ।
च्छ्वास (कम्म ५, ४०; प्रौप, कप्प)। ३ २६, परण १; महा ठा १६)।२ समय- पाणय पुं[प्राणत] स्वर्ग-विशेष, दसवाँ देव- समय-परिमाण-विशेष, 'एगे ऊसासनीसासे एस परिमारण विशेष, उच्छवास-नि श्वास-परिमित लोक (सम ३७; भगः कप्प)। २ विमानेन्द्रक, पारगत्ति वुच्चइ। सत्त पागूरिण से थोवें काल (इक मण)। ३ जन्तु, प्राणी, जीक देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १३५)। ३ प्राणत (तंदु ३२)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org